21 दिनों के लॉकडाउन में घर को गोदाम बना रहे हैं लोग, यह किसी चोरी से कम नहीं है

अकाल नहीं पड़ा है, देश में इतना अनाज है कि सालों तक खाओगे

सरकार

PC: Naidunia

कल यानि 24 मार्च को कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा करते हुए लोगों को अपने घरों में रह कर सोशल डिस्टेन्सिंग को बढ़ावा देने का संदेश दिया। जैसे ही पूरे देश में लॉकडाउन की खबर आई सरकार ने तुरंत गृह मंत्रालय के हवाले यह खबर दी कि कौन कौन से अवश्यक सेवाओं का परिचालन चालू रहेगा और किन किन कार्यों को पूरी तरह से रोका जाएगा।

हालांकि, बावजूद इसके लोग थोड़े परेशान दिखे और देखते ही देखते दुकानों पर भीड़ लगने लगी। इंटरनेट पर भी कुछ लोगों ने यह झूठ फैलाया कि देश में खाने की कमी हो जाएगी और 21 दिन गरीबों को भूखा रहना पड़ेगा। प्रशांत भूषण और आकार पटेल जैसे लोगों ने ट्विटर पर तुरंत सरकार के इस कदम के खिलाफ विष उगलना शुरू कर दिया। इन्हीं झूठों से लोग परेशान होकर दुकान जाकर खूब अधिक मात्रा में ख़रीदारी करने लगे। लोगों को शायद यह लग रहा था कि 21 दिन तक कुछ नहीं मिलने वाला हैं। हालांकि, ऐसा कुछ नहीं होने वाला है।

 

केंद्र सरकार ने सभी नागरिकों के हित में ही ये फैसला लिया है जिससे इस महामारी को और फैलाने से रोका जा सके। प्रधानमंत्री ने स्वयं यह कहा है किसी को परेशान हो कर ख़रीदारी करने की जरूरत नहीं है। दूसरी बात यह है कि देश में खाने की कमी नहीं होने वाली है। देश पास इतना अनाज है कि वह अगले 2 से 3 वर्ष तक अपना काम चला सकता है। वहीं सरकार ने आवश्यक चीजों की खरीद बिक्री पर कोई रोक नहीं लगाया है। गृह मंत्रालय द्वारा जारी किए गए दिशा निर्देशों में स्पष्ट लिखा था कि भोजन, किराने का सामान, फल, सब्जियां, डेयरी और दूध बूथ, मांस और मछली, पशु चारा के साथ कम करने वाली दुकानें खुली रहेंगी। लॉकडाउन के दौरान बैंक, एटीएम और फार्मेसियों भी सामान्य रूप से कार्य करेंगे। इसके अतिरिक्त, पेट्रोल पंप भी खुले रहेंगे। इसी वजह से किसी को परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। अगर फिर भी कोई जरूरत से अधिक सामान खरीद रहा है तो वह किसी अपराध से कम नहीं है। आदेशों का उल्लंघन करने वाले लोग आईपीसी की धारा 188 के अलावा, आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51-60 के तहत कानूनी कार्रवाई का सामना कर सकते हैं।

कुछ लोगों का यह भी सवाल है कि आखिर इन दौरान रोज कमाने खाने वाले गरीबों और मंडियों में अपना सामान बेचकर जीवन यापन करने वाले लोगों का क्या होगा। इस प्रश्न का भी जवाब है। कई राज्य सरकारों ने जैसे उत्तर प्रदेश की योगी सरकार, राजस्थान की राज्य सरकार ने जरूरतमंदों को डायरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर के जरिये रूपए और एक महीने तक मुफ्त राशन देने का फैसला किया है।

कोरोना वायरस के वजह से उत्पन्न हुए स्थिति के कारण सभी अधिक प्रभावित होने वालों में किसान और रोज मजदूरी करने वाले मजदूर और छोटे मोटे व्यापार करने वाले व्यापारी हैं। इस वजह से केंद्र सरकार और राज्य सरकार को मिलकर इन सभी लोगों की मदद करनी होगी। किसानों (भूमिहीन और भूमिहीन) और कृषि मजदूरों को आर्थिक राहत और income support measures में शामिल करना ही होगा जो केंद्र और राज्य सरकारें चला रही हैं। केंद्र और राज्यों दोनों ने कृषि किसानों के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) विकसित किए हैं, और इनका अब उपयोग किया जाना चाहिए। साथ ही, हमारे लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि हम अपने विशाल और एक दूसरे से जुड़े हुए कृषि उत्पादन marketing system  का समर्थन और संरक्षण कैसे कर सकते हैं। इसके बारे में जल्दी सोचना होगा जिससे भारत सुरक्षित रूप से आगे बढ़ सके।

हमें सार्वजनिक और निजी खाद्य वितरण प्रणाली दोनों पर ध्यान केंद्रित करने और यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता होगी कि वे यथासंभव समान रूप से काम करें। ऐतिहासिक रूप से, कोरोना जैसे संकट के समय में, खाद्य बाज़ार ही सबसे पहले प्रभावित होते हैं और यहीं से डर और झूठी खबरें भी बाहर जाती है।

भारत ने कोरोना वायरस महामारी के समय में भी में अपनी खाद्य आपूर्ति का प्रबंधन करने में अच्छा प्रदर्शन किया है। अब तक, खाद्य पदार्थों की कमी की शायद ही कोई रिपोर्ट है। हालांकि, अब चुनौती यह है कि अगले 21 दिन तक बिना किसी समस्या के खाद्य और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति का प्रबंधन किया जाए।

सरकार के पास पूरे देश में फैले 533,897 उचित मूल्य की दुकानों का एक विस्तृत नेटवर्क है। केंद्र सरकार ने 23.8 मिलियन अंत्योदय अन्न योजना (एएवाई) परिवारों को 35 किलो गेहूं और चावल (2 रुपये और 3 रुपये प्रति किलो) आवंटित किए। लगभग 710 मिलियन व्यक्तियों, (प्राथमिकता वाले घरों के रूप में वर्गीकृत) को 5 किलोग्राम गेहूं या चावल दिया जाता है। अगर सब कुछ सही रहा तो इसी तरह से बाकी प्रभावित लोगों तक भी आवश्यक राशन और बाकी चीजों की आपूर्ति की जाएगी।

केंद्र सरकार के पास गेहूं और चावल का अत्यधिक भंडार है और रबी खरीद के लिए भंडारण स्थान की कमी है, जो तीन सप्ताह में शुरू हो जाएगी। केंद्र आसानी से AAY परिवारों के आवंटन को 35 किलोग्राम से बढ़ाकर 70 किलोग्राम प्रति माह कर सकता है क्योंकि ये सभी घरों में सबसे गरीब और सबसे योग्य है। भारत में दालों और खाद्य तेलों की पर्याप्त उपलब्धता है। इस तरह से देखा जाए तो भारत में खाने की कमी नहीं होने वाली है और गरीब और प्रभावित लोगों तक भी खाद्य पदार्थ आसानी से पहुंच जाएगा। किसी को भी परेशान होने की आवश्यकता नहीं है और न ही परेशान होकर एक साथ अधिक अनाज यह बाकी चीजों को खरीदने की जरूरत हैं। कई राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 या आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 144 के तहत commercial operations and movement  को प्रतिबंधित करने के आदेश जारी किए हैं।

इसलिए सभी के लिए यही अच्छा होगा कि इस मुश्किल समय में जरूरत से अधिक सामान न खरीदें और बाकी लोगों को, गरीब जो कोरोना की वजह से अधिक समस्या का सामना कर रहे हैं, उन्हें मौका दे जिससे सभी को जरूरी सामान मिल सके।

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