1000 कंपनियां चीन छोड़कर भारत आना चाहती हैं, कोरोना काल में सिद्ध हो गया कि आखिर भारत निवेशकों के लिए क्यों बेस्ट है

चीन से भागकर भारत में बिजनेस करना चाहती हैं दुनियाभर की कंपनियां

भारत

कोरोनावायरस ने दुनिया के देशों में चीन के खिलाफ गुस्सा भर दिया है, और यही कारण है कि अब चीन में मौजूद सभी कंपनियां जल्द से जल्द अपना सारा सामान समेटकर वहाँ से बाहर निकलना चाहती हैं। उन्हें डर है कि अगर दुनिया के देश चीन पर किसी प्रकार का प्रतिबंध लगाते हैं, तो उन्हें एकदम चीन से बाहर निकलकर किसी और देश में व्यापार स्थापित करने का समय नहीं मिलेगा। इसीलिए हजारों कंपनियां अब चीन से बाहर निकलने का विचार कर रही हैं और भारत को इसमें सबसे बड़ा फायदा हो सकता है, क्योंकि ये कंपनियां चीन के मुक़ाबले भारत को ही सबसे बढ़िया इनवेस्टमेंट डेस्टिनेशन मानती हैं। भारत के साथ-साथ वियतनाम और मेक्सिको जैसे देशों को भी बड़ा फायदा होने का अनुमान हैं।

Business Standard की एक रिपोर्ट के मुताबिक लगभग 1 हज़ार कंपनियां लगातार भारत सरकार के संपर्क में हैं और वो अपना व्यापार चीन से हटाकर भारत में स्थापित करना चाहती हैं। सरकारी सूत्रों के मुताबिक इन एक हज़ार कंपनियों में से लगभग 300 कंपनियां मोबाइल, मेडिकल और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों से जुड़ी हैं। सरकार ने पिछले साल आर्थिक मंदी से निपटने के लिए कई आर्थिक सुधारों को अंजाम दिया था, जिनमें सबसे बड़ा बदलाव corporate tax को कम करना था। सरकार ने इसे घटाकर 25.17 प्रतिशत कर दिया था, इसके साथ ही नए उत्पादकों के लिए यह corporate tax सिर्फ 17 प्रतिशत कर दिया गया था, जो कि दक्षिण पूर्व एशिया के देशों के मुक़ाबले सबसे कम है।

सरकार के इन आर्थिक सुधारों का ही परिणाम है कि अब बड़े पैमाने पर दक्षिण कोरियन, अमेरिकी और जापानी कंपनियां चीन को छोड़कर भारत आने को लेकर उत्साहित हैं। इकोनोमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट की माने तो लगभग 200 अमेरिकी कंपनियां अपनी मैन्युफैक्चरिंग यूनिट्स को भारत शिफ्ट कर सकती हैं। US-India Strategic and Partnership Forum के अध्यक्ष मुकेश अघी के मुताबिक अमेरिका की ये कंपनियां लगातार इस मामले पर मंथन कर रही हैं कि कैसे भारत में निवेश कर भारत को चीन के समक्ष एक अच्छे विकल्प के तौर पर उबारा जा सकता है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक कोरिया की कंपनी भी चीन को छोड़कर भारत आने को इच्छुक हैं। इसको लेकर चेन्नई में मौजूद कोरियन कांसुलेट के साथ कई कोरियन कंपनियां लगातार संपर्क बनाए हुए हैं।

पिछले कुछ सालों में मोबाइल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के क्षेत्र में भारत दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बनकर उभरा है। Indian Cellular & Electronics Association के मुताबिक वर्ष 2014-15 में जहां भारत हर साल फोन के सिर्फ 60 मिलियन यूनिट ही बना पा रहा था, वह अब 2016-17 में बढ़कर 225 मिलियन यूनिट हो गया है। इसी के साथ-साथ पिछले कुछ सालों में भारत में प्रतिदिन औसत मजदूरी दर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी देखने को मिली हैं।

वर्ष 2013 में जहां प्रतिदिन औसत मजदूरी दर सिर्फ 250 रुपये थी, वह आज बढ़कर 350 रुपये होने को है। वहीं वर्ष 2023 में यह बढ़कर 400 रुपये होने के अनुमान है। जैसे-जैसे देश में देश में manufacturing सेक्टर का विकास होता जाएगा, वैसे-वैसे यह मजदूरी दर भी बढ़ती ही चली जाएगी।

ऐसे में यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कोरोना काल के बाद चीन को सभी देश बड़ा झटका देने की तैयारी में है और इसमें सबसे बड़ा फायदा भारत को होने की उम्मीद है। अभी कुछ दिनों पहले ही भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जापान के PM शिजों आबे के बीच फोन पर बातचीत हुई थी जिसमें दोनों देशों के बीच कोविड-19 के दौर में आर्थिक सहयोग बढ़ाने पर चर्चा हुई थी। बता दें कि चीन में काम करने वाली जापानी कंपनियों को वहां से अपना बोरिया-बिस्तर समेट कर जापान में उत्पादन शुरू करने के लिए आबे सरकार ने 2 अरब डॉलर का फंड दिया है। जापान ने चीन से बाहर किसी अन्य देश में जाकर उत्पादन करने पर उन जापानी कंपनियों को 21.5 करोड़ डॉलर की सहायता का प्रस्ताव रखा है। भारत सरकार अब इन्हीं कंपनियों को भारत लाना चाहती है और अगर वह अपनी कोशिशों में सफल रहती है तो जल्द ही चीन की जगह भारत दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब बन सकता है।

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