चीन: दुनियाभर में महामारी फैलाई, लोगों की जानें ली, अब मानवाधिकार परिषद के एक पैनल में शामिल

ये हजारों लोगों का हत्यारा है इसे UN से लात मारकर निकालो!

संयुक्त राष्ट्र

(PC: Quartz)

आज कोरोना महामारी जैसी स्थिति में सबसे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है? कई लोग कई प्रकार के जवाब देंगे। लेकिन इसका उत्तर है चीन को मानवाधिकार परिषद में स्थान मिलना। यह सभी को पता है कि कोरोना की उत्पति चीन के वेट मार्केट से हुई थी इसके बाद न तो चीन ने कभी इसके बारे में सही जानकारी दी और न ही यह स्वीकार किया कि इस वायरस की उत्पति चीन में हुई थी। आज कोरोना वायरस पूरे विश्व में 13 लाख से अधिक लोगों को संक्रमित कर चुका है, और लगभग 70 हजार के करीब लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन फिर भी चीन को संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार परिषद के एक पैनल में नियुक्त किया गया है, जहां वह महत्वपूर्ण पदों के लिए उम्मीदवारों की मदद करेगा। चीन को यह पद मानव अधिकारों के दुरुपयोग करने और फिर कोरोनोवायरस महामारी को बढ़ावा देने भयंकर रिकॉर्ड के बावजूद दिया गया है। इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है। जिस चीन पर वर्षों से मानवाधिकार के दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं वही अब मानवाधिकार के एक पैनेल में बैठेगा।

जिनेवा में चीनी मिशन के मंत्री जियांग डुआन को यू.एन. मानवाधिकार परिषद के सलाहकार समूह में नियुक्त किया गया था – जहाँ वे एशिया-प्रशांत राज्यों के प्रतिनिधि के रूप में काम करेंगे। वह इन देशों के ब्लॉक के पांच प्रतिनिधियों में से एक के रूप में काम करेंगे जिसमें स्पेन, स्लोवेनिया और चाड के प्रतिनिधि भी हैं।

कोरोना को लेकर इस कम्युनिस्ट देश पर कई प्रकार के आरोप लगाए गए हैं जैसे कोरोना वायरस का खुलासा करने वाले डॉक्टरों को दंडित करना, पत्रकारों को गायब करवा देना, इस वायरस की खबर को दबाने की कोशिश करना और अंततः वायरस की गंभीरता को छिपाना शामिल है। चीन के इस मानवाधिकारों के हनन से ही दुनिया को कोरोना जैसी भयंकर बीमारी के बारे में देर से पता चला जिससे यह एक वैश्विक महामारी बन गई।

जिनेवा-आधारित मानवाधिकार वॉचडॉग यूएन वॉच ने संयुक्त राष्ट्र के इस कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि चीन को मानवाधिकार अधिकारियों का चयन यूएन के लिए “बेतुका और अनैतिक” था। इस संस्था का कहना था कि अब चीन उन सभी 17 मानवाधिकार जांचकर्ता के चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा। चीन ने सभी तरह के मानवाधिकार का हनन किया है जो इन जांचकर्ताओं के चुनाव में अहम भूमिका निभाएगा।

पिछले कुछ वर्षों में, UNHRC की खूब बदनामी हुई है और कारण है मानवाधिकार का हनन करने वाले देशों को ही इसमें सदस्यता देना। कश्मीर पर पाकिस्तान समर्थक रिपोर्ट प्रकाशित करने से लेकर वेनेजुएला को सीट देने तक UNHRC ने निकोलस मादुरो की अध्यक्षता में अपनी सारी विश्वसनीयता खो दी है।

2018 में, USA ने UNHRC को छोड़ दिया है। अमेरिका की UN में तत्कालीन राजदूत निक्की हेली ने UNHRC को “मानवाधिकारों का हनन करने वाला, और a cesspool of political bias तक कह दिया था। चीन को मिलने वाले इस पद से न सिर्फ वह अन्य देशों पर आरोप लगा सकेगा बल्कि अपने देश में होने वाले उइगर मुस्लिमों पर किये अत्याचार को ढक सकेगा।

बता दें कि हाल ही में सामने आई कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में इस बात का उल्लेख किया गया था कि चीन ने उस डॉक्टर के साथ कैसा बर्ताव किया जिसने सबसे पहले “किसी नई बीमारी” के आने के बारे में मेडिकल क्षेत्र से जुड़े अपने कुछ दोस्तों को बताया था। आई फेन नाम की इस डॉक्टर ने जब अपने हॉस्पिटल में अन्य स्टाफ वर्कर्स को इसके बारे में बताया तो अस्पताल की ओर से उसे इस बारे में कुछ भी बोलने और “अफवाह फैलाने” से बाज़ आने को कहा था। इसके अलावा जब फेन ने एक मैगज़ीन को इस वायरस से संबन्धित इंटरव्यू दिया, तो चीनी अधिकारियों ने चीन की सोशल मीडिया से उस इंटरव्यू को हटाने की भरपूर कोशिश की। इसके बाद कुछ दिनों पहले ही चीनी सरकार को वुहान वायरस के लिए आड़े हाथों लेने वाले एक बिजनेस टाइकून Ren Zhiqiang गायब हो गए थे और उनका अभी तक कोई पता नहीं चल पाया है। ऐसे ही दो पत्रकार गायब हो चुके हैं जो वुहान वायरस का केंद्र कहे जाने वाले वुहान शहर में ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहे थे। इन दोनों पत्रकारों के नाम थे फांग बिन और चेन कियुषी। इससे पहले चीन ने उस डॉक्टर को दंडित कर मौत की नींद सुला दिया जिसने सबसे पहले इस वायरस के होने की खबर को सार्वजनिक किया था। तब वुहान शहर की पुलिस ने उस डॉक्टर को ‘अफवाह’ फैलाने के दोष में पकड़ा और उसे हर तरीके से परेशान किया, और फलस्वरूप वह डॉक्टर वुहान वायरस की वजह से दम तोड़ चुका है।

इससे पहले भी चीन इसी तरह का मानवाधिकारों का हनन करता आया है। संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी अधिकारियों के मुताबिक, चीन के नजरबंदी शिविरों में उइगर मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदाय से करीब 10 लाख से ज्यादा लोगों को शिविरों में बंधक बनाकर रखा गया है। इस दौरान उन पर कम्युनिस्ट प्रोपेगेंडा का राग अलापने और इस्लाम की आलोचना करने के लिए दबाव बनाया जाता है। इसके साथ ही उन्हें सूअर का मांस खाने और शराब पीने के लिए मजबूर किया जाता है जो मुस्लिम धर्म में वर्जित माना जाता है।

यहीं नहीं इन उइगर मुस्लिमों के अंगों को चीऩ के बीमार लोगों में प्रत्यारोपित भी कर दिया जाता है।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संघ की टीम ने चीन का दौरा किया था। टीम ने कहा था और चीन में मुसलमानों की स्थिति पर चिंता व्यक्त किया था। उन्होंने कहा था कि ये समझ के बाहर है कि उइगर समुदाय के लोगों को चीऩ ने री-एजुकेशन कैंप में क्यों रखा है? इसपर अमेरिका के दोनों प्रमुख दल रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसदों ने अपनी चिंता भी व्यक्त की थी। पिछले महीने भी अमेरिका के नेतृत्व में संयुक्त राष्ट्र महासभा में शिनजियांग प्रांत में मुस्लिमों के साथ बुरे बर्ताव की आलोचना की गई थी

यह मानवाधिकार का हनन नहीं है तो क्या है? अगर ऐसे देश को मानवाधिकार के पैनल में संयुक्त राष्ट्र द्वारा स्थान दिया जाता है तो इससे यही पता चलता है कि UN पूरी तरह से चीन के कब्जे में है और वह चीन के विरुद्ध किसी भी प्रकार का कोई कदम नहीं उठाने वाला है।

ऐसा लगता है कि संयुक्त राष्ट्र ने महामारी से कुछ नहीं सीखा है और डॉ टेड्रो के नेतृत्व में WHO ने पूरी तरह से चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के आगे घुटने टेक दिए हैं। संयुक्त राष्ट्र और WHO जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों की निष्क्रियता फिर से सामने आ गया है। एक तरफ जहां WHO चीन के साथ मिला हुआ है और वायरस के प्रसार में सहायता कर रहा है, तो वहीं संयुक्त राष्ट्र चीन पर किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं कर सका है।

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