‘मजहबी लोगों ने केरल में मजदूरों की भीड़ जुटाई’, केरल के CM ने PFI के सहयोगी दल पर जबरदस्त हमला बोला

पहले इस्लामिक संगठनों को पाला, अब भोग रहे हैं!

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पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार इन पर आरोप किसी और ने नहीं, बल्कि स्वयं केरल सरकार ने लगाया है। लाइवमिंट की रिपोर्ट के अनुसार पीएफ़आई के राजनीतिक दल एसडीपीआई के कार्यकर्ताओं ने अफवाहें फैलाकर केरल के कोट्टायम जिले में भीड़ इकट्ठा करने का प्रयास किया था। इस प्रदर्शन में दिहाड़ी मज़दूरों को जुटाने हेतु एसडीपीआई ने कुछ फेक वीडियो और मैसेज शेयर किए, जिसमें उन्होंने दिल्ली से मजदूरों के पलायन को अपने निजी फायदे के लिए भुनाने का प्रयास किया।

इस खबर से केरल सरकार पूरी तरह सकपका गई है। हो भी क्यों न, वुहान वायरस से संक्रमण के मामले में केरल भारत में दूसरे स्थान पर है। इसी संबंध में अभी केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन ने हिन्दी और अंग्रेज़ी में लोगों को चेतावनी देते हुए बोला कि जो भी असामाजिक तत्व केरल की संप्रभुता को मिटाने की कोशिश करेंगे, उन पर पुलिस कड़ी कार्रवाई करने से ज़रा भी नहीं हिचकेगी।

इसे भाग्य का फेर कहिए या फिर कुछ और, परंतु जिन वामपंथियों और कट्टरपंथी गुटों को केरल की वर्तमान सरकार ने हमेशा से आश्रय दिया था, वही केरल सरकार आज इन्हें समाज के लिए खतरा समझ रही है। इससे पहले CPIM के नेता पी मोहनन ने माओवादियों और कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों के बीच की सांठगांठ को लेकर आगाह किया था।

बता दें कि प्रतिबंधित संगठन सिमी से प्रेरित होकर पीएफ़आई का गठन हुआ था। केरल में इसकी पहुंच सबसे ज़्यादा है, और यहां से वह नित्य ही कई कट्टरपंथी युवाओं की दुर्दांत आतंकी संगठन आईएस में भर्ती कराता है। 2017 में पीएफ़आई को प्रतिबंधित करने की मांग एनआईए ने उठाई थी।

आतंकी हमले कराने हो, देश में दंगे भड़काने हों या फिर हाल ही में काबुल में सिक्खों पर आत्मघाती हमले ही क्यों न करने हो, हर जगह आपको पीएफ़आई का हाथ कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में तो अवश्य दिखेगा। पीएफ़आई किस तरह से केरल में कट्टरपंथी इस्लामियों को बढ़ावा देता आया है, इसके लिए हमें गूढ अनुसंधान करने की आवश्यकता नहीं। केरल में जिहाद को बढ़ावा देने में पीएफ़आई का बहुत बड़ा हाथ रहा है, और सीएए विरोध के नाम पर देश में अराजकता फैलाने में वो कहीं से पीछे नहीं रहा है। शाहीन बाग में अराजकता फैलानी हो, या फिर पूर्वोत्तर दिल्ली में दंगे भड़काने हो, पीएफ़आई की भूमिका हर जगह उजागर हुई है।

सितंबर 2017 में एनआईए द्वारा सब्मिट की गयी एक रिपोर्ट के अनुसार पीएफ़आई आतंकी गतिविधियों में काफी शुरू से शामिल रहा है, जिसके कारण इसे बिना विलंब UAPA के तहत एक आतंकी संगठन घोषित किया जा सकता था। ऐसे में ये समझना मुश्किल हो जाता है कि आखिर क्यों भारत पीएफ़आई के विरुद्ध कोई ठोस निर्णय नहीं लेता?

दुर्भाग्य की बात तो यह है कि अब तक किसी भी सरकार ने इस आतंकी संगठन को प्रतिबंधित करने का साहस नहीं दिखाया है। रघुबर दास के नेतृत्व में झारखंड की तत्कालीन सरकार ने पीएफ़आई पर बैन लगाया था, परंतु झारखंड का चुनाव में झामुमो के गठबंधन के विजयी होते ही इस बैन को भी लगभग हटा दिया गया।

रिपोर्ट अब आ रही है कि पीएफ़आई अपनी खुद की सेना तैयार कर रही है, जिसके साथ पाकिस्तान के आईएसआई के तार भी जुड़े हुए हैं। इससे भी ज़्यादा चिंताजनक बात तो यह है कि काँग्रेस इस संगठन के साथ खुलकर अपने संबंध मजबूत करने का प्रयास कर रही है, जो पूर्व उपराष्ट्रपति मुहम्मद हामिद अंसारी द्वारा पीएफ़आई के एक विशेष अधिवेशन को अटेण्ड करने में स्पष्ट नज़र आई। अब देखना यह होगा कि क्या पी विजयन अपने वादे के अनुरूप पीएफ़आई पर लगाम कसते हैं या फिर पीएफ़आई को यूं ही केरल में उत्पात मचाने दिया जाएगा। इसके साथ ही केंद्र सरकार को भी पीएफ़आई पर अविलंब प्रतिबंध लगाना चाहिए।

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