फर्जी माल बेचकर करोड़ों कमाया, अब कोरोना की आड़ में दूसरे देशों की कंपनियों पर कब्जा जमाना चाहता है चीन

PC: Free Beacon

पूरी दुनिया के लिए कोरोनावायरस एक महामारी का रूप ले चुका है, लेकिन ऐसा लगता है चीन के लिए यह कोई महामारी नहीं बल्कि कोई सपना है जो सच हो चुका है। कोरोना के कारण पूरी दुनिया चीन का घटिया सामान खरीदने को मजबूर है, और कोरोना के कारण चीन अच्छा खासा पैसा कमा रहा है। शायद यही कारण है कि चीन के अरबपति कोरोना के कारण अपनी संपत्ति को बढ़ाने में लगे हैं। ज़ी न्यूज़ की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में पिछले कुछ समय में सिर्फ 9 प्रतिशत अरबपतियों की संपत्ति ही बढ़ी है, और ये सभी अरबपति चीन के नागरिक हैं। इसका अर्थ यह है कि कोरोना काल से जहां दुनिया के अमीरों का पैसा बर्बाद होता जा रहा है, तो वहीं चीनी अरबपति भारी मुनाफे में चल रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, अब ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि चीन अपनी सरकारी कंपनियों के माध्यम से निवेश करके स्पेन और इटली में कमजोर कंपनियों पर अपना प्रभुत्व बढ़ाना चाहता है, ताकि इन देशों की कई कंपनियों का सीधा कंट्रोल चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथ में चला जाये।

दरअसल, भारत के एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय TV न्यूज़ चैनल WION ने अपनी एक रिपोर्ट में यह दावा किया है कि चीन कोरोना के कारण वित्तीय तौर पर कमजोर हो चुकी स्पेनिश और इटालियन कंपनियों में निवेश करने के लिए बहुत आतुर है। कोरोना के कारण आज स्पेन और इटली की कई ऐसी कंपनियाँ हैं जिन्हें निवेश की ज़रूरत है, और चीन इसी फिराक में बैठा है कि कैसे भी मौका पाकर इनमें निवेश कर लिया जाए। ये सभी कंपनियाँ इसके बाद चीनी सरकार की मुट्ठी में हो जाएंगी। इस खतरे का अहसास अब यूरोप की सरकारों को भी चुका है।

यूरोप की कई सरकारें कोरोना महामारी के बीच ही अपने विदेशी निवेश (FDI) से जुड़े नियमों में बदलाव कर रही हैं। इसका एक उदाहरण हमें तब देखने को मिला जब बीते सोमवार को इटली की सरकार ने नियमों में बदलाव कर किसी विदेशी कंपनी द्वारा बैंक, ट्रांसपोर्ट, बीमा, ऊर्जा और स्वास्थ्य क्षेत्रों की कंपनियों के टेकओवर पर प्रतिबंध लगा दिया। कुछ इसी तरह के नियम स्पेन ने बनाए हैं। स्पेन के नियमों के मुताबिक अगर किसी देश को स्पेन की कंपनी में 10 प्रतिशत से ज़्यादा निवेश करना है, तो उसे पहले स्पेन की सरकार से इजाज़त लेनी होगी। इसी तरह के नियम जर्मनी ने भी बनाए हैं जिसके बाद किसी विदेशी कंपनी द्वारा जर्मनी की कंपनी को टेकओवर करना मुश्किल हो जाएगा।

इससे स्पष्ट होता है कि कोरोना के कारण चीन का प्रॉफ़िट कमाने का प्लान सिर्फ मास्क या मेडिकल सप्लाई बेचने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह इसके माध्यम से दुनिया पर अपना कब्जा करना चाहता है, फिर चाहे वह विदेशी कंपनियों पर कब्जा करके हो या फिर वहाँ हुवावे जैसी विवादित कंपनियों के पक्ष में ज़मीन तैयार करने के माध्यम से हो।

चीन अभी कोरोना से ग्रसित देशों को मेडिकल सप्लाई बेच रहा है और फिर अपने आप को इनके दोस्त की तरह प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहा है। कोरोना की तबाही के बाद जब इन देशों के पास पैसों की कमी होगी, तो चीन अपने इसी प्रभाव और नकली दोस्ती को दिखाकर इन्हें बड़े-बड़े लोन देगा और इस प्रकार जैसे उसने OBOR के जरिये दुनिया के कई देशों को कर्ज़ जाल में फंसाया, वैसे ही अब भी वह कई देशों को अपने कोरोना-जाल में फंसा लेगा।

स्पष्ट है कि चीन का यह सहयोग स्वार्थ से भरा है और चीन इस संकट के समय में भी अपने आर्थिक और रणनीतिक एजेंडे को ही प्राथमिकता दे रहा है। ऐसे में सभी देशों के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वे कोरोना के साथ-साथ चीन के आर्थिक आक्रमण से भी बचें। कहीं ऐसा ना हो कि दुनिया चीनी वायरस से तो निजात पाले, लेकिन उनके देश की अर्थव्यवस्था पर चीनी सरकार वायरस बनकर हमले करना शुरू कर दे और फिर ये देश चाहकर भी कुछ नहीं कर पाएंगे।

Exit mobile version