‘चीन का वेट मार्केट जहरीला, Taiwan के साथ मिलकर काम करेंगे’, फंडिंग बंद होते ही औकात में आया WHO

'चीनी चमचा अब लाइन पर आ रहा है'

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विश्वभर में WHO के ऊपर दबाव बढ़ने का असर अब दिखने लगा है। WHO और उसके अध्यक्ष टेड्रोस के सुर अचानक से बदले-बदले नज़र आने लगे हैं। कल तक जो WHO ताइवान का नाम तक सुनना पसंद नहीं करता था, वो आज ताइवान की तारीफ कर रहा है। दुनियाभर की सरकारों ने जिस तरह WHO की फंडिंग को रोकने और WHO की जांच करने की बात को उठाया है, शायद उसी दबाव का यह नतीजा है कि अब WHO को अपनी आँखों पर बंधी चीन की पट्टी को उतारना पड़ा है।

17 अप्रैल को अपनी प्रेस ब्रीफिंग में टेड्रोस ने खुलकर चीन के वेट मार्केट्स के बारे में बात की। उन्होंने कहा-

“बेशक ये वेट मार्केट्स लाखों लोगों के लिए जीवनरेखा के रूप में काम करते हों, लेकिन दुनिया में कई जगहों पर इनका रखरखाव सही से नहीं किया जाता है, और सफाई और गुणवत्ता के मानकों पर ये वेट मार्केट्स खरे नहीं उतरते हैं। चूंकि दुनियाभर में आने वाले 70 प्रतिशत नए वायरस जानवरों से ही आते हैं, ऐसे में इन मार्केट्स का सही से नियंत्रण करना ज़रूरी हो जाता है, ताकि ये वायरस जानवरों से इन्सानों के शरीर में प्रवेश ना कर सकें”।

इसी तरह WHO के एक अधिकारी ने ताइवान पर पूछे गए एक सवाल का जवाब देने भी मुंह नहीं छिपाया। जब उस अधिकारी ने ताइवान को लेकर सवाल पूछा गया तो उसने जवाब दिया

“हम कोरोना की रोकथाम के लिए ताइवान के स्वास्थ्य प्रशासन और लोगों की सराहना करते हैं। हम लगतार ताइवान से विशेषज्ञ लोगों को अपनी टेक्निकल टीम, सहायकों और सहयोगियों के तौर पर शामिल करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं

WHO की ओर से इस तरह का जवाब आना बेशक हैरानी भरा था क्योंकि जब पिछले दिनों हाँग काँग के एक न्यूज़ चैनल ने WHO के एक अधिकारी से ताइवान को लेकर सवाल पूछा था तो उसने उस सवाल को नकार दिया था और अगले सवाल पर बढ़ने के लिए कहा था।

अब सवाल है कि WHO के इस रुख में इतना बड़ा बदलाव आया कैसे। दरअसल, पिछले कुछ समय में कई सरकारों ने और खासकर अमेरिका की सरकार ने WHO को लेकर बेहद कडा रुख अपनाया है। WHO फंड में उसके बजट का 14.67 फीसदी योगदान देने वाला अमेरिका पहले ही WHO की फंडिंग को रोकने का ऐलान कर चुका है। इसके अलावा राष्ट्रपति ट्रम्प WHO पर चीन के पक्ष में रुख अख़्तियार करने का आरोप लगा चुके हैं।

ऐसे में अमेरिका की ओर से दी जाने वाली मदद के ना मिलने से WHO काफी हद तक कमज़ोर हो जाएगा और उसकी आर्थिक कमर टूट जाएगी। इतना ही नहीं, जापान के PM शिजों आबे भी अमेरिका की तर्ज पर WHO की फंडिंग रोकने के संकेत दे चुके हैं। अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन के मुताबिक- आबे ने साफ इशारा किया कि अमेरिका के बाद जापान भी डब्लुएचओ की फंडिंग रोक सकता है। आबे के मुताबिक-

WHO राजनीतिक कदम क्यों उठाता है। जापान कई साल से मांग कर रहा है कि ताईवान को सदस्य बनाया जाए। लेकिन, ऐसा नहीं हुआ। आबे का स्पष्ट इशारा चीन की तरफ था जो ताईवान को डब्लुएचओ में शामिल नहीं होने देता”।

यानि जापान की ओर से भी WHO के लिए कोई अच्छी खबर नहीं है। वहीं अमेरिका के कई सांसद कांग्रेस द्वारा WHO की जांच करने की बात भी कह चुके हैं। शायद यही कारण है कि अब WHO पर इतना दबाव बना है कि उसे ताइवान के साथ-साथ चीन के वेट मार्केट्स पर भी बोलना पड़ा है।

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