कम्युनिस्ट-कॉमरेड : कोरोना काल में आखिर क्यों पुतिन और जिनपिंग सदाबहार दोस्त की तरह बर्ताव कर रहे हैं

पहले से ज्यादा करीब...आखिर क्यों?

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कोरोना वायरस के कारण चीन पूरी दुनिया का महा-विलेन बनकर उभरा है। अफ्रीका से लेकर दक्षिण-पूर्वी एशिया तक, हर जगह देशों में चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ता ही जा रहा है। हालांकि, अभी भी दुनिया का एक ऐसा देश है जो चीन के साथ लगातार नज़दीकियाँ बढ़ा रहा है, और UN सुरक्षा परिषद से लेकर आम वैश्विक राजनीति तक सिर्फ चीन के ही गुण गा रहा है, और देश का नाम है रूस!

रूस और चीन दोनों कम्युनिस्टों का गढ़ माने जाते हैं, और पश्चिमी देशों द्वारा लगातार हो रहे हमलों के बीच दोनों देशों को एक दूसरे का बड़ा सहारा मिल रहा है। रूस पर अमेरिका के आर्थिक प्रतिबंध लगे हैं तो चीन कोरोना के कारण दुनिया का दुश्मन बन चुका है, ऐसे में इन दोनों देशों की दोस्ती नए आयाम पर पहुँच चुकी है।

इसका नमूना हमें हाल ही में तब देखने को मिला जब यूरोपियन यूनियन ने चीन और रूस पर कोरोना के संबंध में झूठी जानकारी फैलाने का आरोप लगाया। रूस के विदेश मंत्री Sergey Lavrov ने ना सिर्फ रूस का बचाव किया, बल्कि उन्होंने चीन के पक्ष में भी बात कही। इसके अलावा रूस कोरोना वायरस की उत्पत्ति के मुद्दे पर भी चीन के साथ ही खड़ा दिखाई देता है। रूस ने हाल ही में कहा था कि कोरोना चीन से फैला ज़रूर है पर इसकी उत्पत्ति के बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।

इन दोनों देशों का यही साथ हमें UNSC में भी देखने को मिलता है। चीन शुरू से ही UNSC में कोरोना को लेकर चर्चा करने का विरोध करता रहा है और इसमें उसे रूस से भरपूर समर्थन मिला है। पिछले महीने जब एस्टोनिया ने UNSC में कोरोना को लेकर चर्चा करने का प्रस्ताव रखा था, तो चीन ने इसे वीटो से ब्लॉक कर दिया था, और उसे रूस का समर्थन भी मिला था।

आखिर बड़ा सवाल यह उठता है कि कोरोना के समय इन दोनों देशों की नजदीकी का क्या कारण है। इसका जवाब है कि पश्चिमी देशों द्वारा जिस प्रकार दोनों ही देशों पर एक तरह के आरोप और प्रतिबंध लगा दिये गए हैं, उससे इन देशों के बीच सहयोग लगातार बढ़ रहा है। ट्रेड से जुड़ा मामला हो या फिर सुरक्षा से जुड़ा। कोरोना ने तेल के दामों को अपने निचले स्तर पर ला दिया है, जिसके कारण रूस की इकॉनमी को तगड़ा झटका पहुंचा है। अब रूस चाहता है कि वह चीन के सहारे अपनी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त कर ले, और चीन को अपने साथ ही रखे।

उधर चीन को भी एक ऐसे साझेदार की ज़रूरत है जो मजबूत भी हो और जो पश्चिमी देशों के खिलाफ खुलकर स्टैंड ले सके और चीन का साथ दे सके, क्योंकि अभी चीन पूरी दुनिया में अकेला पड़ चुका है।

हालांकि, इन दोनों देशों के बीच विवाद भी कुछ कम नहीं है। दोनों देशों के बीच बहुत पुराना सीमा विवाद है, इसके अलावा यूरेशिया के देशों पर प्रभाव को लेकर भी दोनों देशों के बीच तनातनी रहती है। arctic में जैसे-जैसे ग्लोबल warming के बाद बर्फ पिंघलती जा रही है, वैसे-वैसे वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों पर चीन और रूस दोनों की नज़र टिक चुकी है, और वहाँ पर भी चीन अपनी गुंडागर्दी दिखाने से बाज़ नहीं आने वाला।

ऐसे में बेशक चीन और रूस के बीच थोड़ी दूरियाँ रही हों, लेकिन हाल-फिलहाल में ये दोनों देश एक दूसरे का भरपूर साथ दे रहे हैं और ये दोनों ही देश अपने सम्बन्धों को बढ़ाने पर फोकस कर रहे हैं।

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