चेर्नोबिल त्रासदी ने जैसे सोवियत संघ को खत्म कर दिया था ठीक वैसे ही, कोरोना चीन की कम्युनिस्ट पार्टी को खत्म कर देगा

त्रासदी भले ही अलग हो लेकिन, सत्ता का विरोध एक जैसा है

PC: Foreign Policy

26 अप्रैल 1986। स्थान – चेर्नोबिल, यूक्रेन। सोवियत संघ का एक विशाल परमाणु संयंत्र अपने एक अहम प्रयोग के लिए पूरी तरह तैयार था, परन्तु चौथे रिएक्टर में एक धमाके ने सबकुछ बदल कर रख दिया। रखरखाव में हुई लापरवाही के कारण उस रिएक्टर में अप्रत्याशित रिएक्शन हुए, जिसके कारण ना सिर्फ ब्लास्ट हुआ, अपितु कुछ ही महीनों में पूरा पश्चिमी यूरोप घातक रेडिएशन की चपेट में आ गया।

परन्तु हम आज इस त्रासदी के बारे में क्यों बात कर रहे हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि चेर्नोबिल की त्रासदी आज के वुहान वायरस की त्रासदी से ज़्यादा भिन्न नहीं है। तब इस त्रासदी की विश्व से छुपाने के कारण सोवियत संघ का विघटन हुआ था और आज वुहान वायरस के कारण चीन की वैश्विक छवि पूरी तरह नष्ट हो चुकी है। दोनों त्रासदी जिस कम्यूनिस्ट पार्टी द्वारा शासित सरकारों के अन्तर्गत हुई थी उसकी भयावहता को विश्व से छुपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी।

चेर्नोबिल की परमाणु त्रासदी के कारण सोवियत संघ 5 वर्षों के अंदर अंदर पूरी तरह बिखर गया। अन्तिम सोवियत अध्यक्ष मिखाईल गोर्बाचोव ने भी स्वीकारा था कि शायद चेर्नोबिल की परमाणु त्रासदी सोवियत संघ के विघटन का एक प्रमुख कारण रही थी ।

इसी प्रकार से अब कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि वुहान वायरस का प्रकोप चीन के कम्यूनिस्ट शासन का विनाश सुनिश्चित कर चुका है। चेर्नोबिल मानव इतिहास की सबसे भयानक मानव त्रासदी थी। परन्तु इसकी भयावहता तुरंत जनता के समक्ष नहीं अाई थी।

मई के प्रारंभ तक  लोगों को ये भी नहीं  पता था कि चेर्नोबिल में कोई त्रासदी भी हुई है। परन्तु जब स्वीडन ने परमाणु क्लाउड अपनी ओर आते देखा, तो फिर चेर्नोबिल त्रासदी की भयावहता सबके समक्ष उजागर हुई।

उस समय शीत युद्ध अपने चरम पर था। ऐसे में सोवियत संघ ये बिल्कुल नहीं चाहता था कि दुनिया को इस त्रासदी की भनक तक लगे। परन्तु जब यह समस्या स्वीडन, डेनमार्क, फिनलैंड और नॉर्वे तक पहुंच गई, तो अंतत USSR को सच्चाई बतानी ही पड़ी।

इसी प्रकार से चीन ने वुहान वायरस की भयावहता को दुनिया से छुपाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। उल्टे उसने WHO के साथ मिलकर पूरे विश्व को इस महामारी के बारे में गुमराह किया। WHO तो पहले ये मानने को तैयार ही नहीं था कि वुहान वायरस का मानव से मानव में संक्रमण  होता है। जब भारत और अमेरिका जैसे देश चीन से आने वाली फ्लाइट्स पर रोक लगाने लगे, तो WHO इन्हे अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा था।

इतना ही नहीं, चीन ने हर उस व्यक्ति को कुचलना प्रारंभ किया, जो विश्व को इस महामारी की भयावहता से अवगत कराना चाहता था। डॉ अाई फेन और डॉ ली वेनलियंग पर क्या अत्याचार किए गए होंगे, इसका हम लोग अंदाज़ा नहीं लगा सकते हैं। कुछ पत्रकार वुहान से इस महामारी की भयावहता को रिपोर्ट कर रहे थे, और से भी जल्द ही गायब हो गए।

अब ये सामने आया है कि वुहान वायरस का पहला केस तो नवंबर मेज ही डिटेक्ट हो चुका था, परन्तु चीन ने इसके बारे में 31 दिसंबर 2019 में सूचित किया था।

हालांकि चेर्नोबिल और वुहान वायरस की त्रासदी बिल्कुल भिन्न है, परन्तु दोनों में एक बात समान है, और वह है निरंकुश सत्ता द्वारा इस त्रासदी की भयावहता का दबाया जाना। इसके कारण दोनों ही जगह सत्ताधारी प्रशासन से जनता की भिड़ंत हुई है, और यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि चीन में कम्यूनिस्ट शासन भी जल्द ही यूएसएसआर की भांति पतन की ओर अग्रसर है।

अपने ही नागरिकों से जानकारी छुपाना, दुनिया को भ्रमित करना और चाटुकार मीडिया द्वारा अपनी जय जयकार करना, ये सब दर्शाता है कि कैसे कोविड 19 और चेर्नोबिल भिन्न होकर भी कई मायनों में समान

चेर्नोबिल के कारण सोवियत संघ और उसकी विचारधारा से जनता का मोहभंग होने लगा, और इसीलिए उसका विघटन हुआ। अब चीन में भी सत्ताधारी प्रशासन के विरुद्ध विद्रोह उमड़ रहा है, और किसी को हैरान नहीं होना चाहिए, यदि कुछ वर्षों बाद ये खबर आए कि चीन में कम्यूनिस्ट शासन हमेशा के लिए समाप्त हो गई।

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