जैसे ही मोदी सरकार ने देश व्यापी लॉकडाउन को बढ़ाने पर विचार कर रही है वैसे ही Chennai Institute of Mathematical Sciences (CIMS) के कई शोधकर्ताओं ने यह कहा है कि कोरोना वायरस के संक्रामण का कर्व हल्का, लेकिन स्पष्ट रूप से फ्लैट हुआ है। इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक दिन संक्रमित हो रहे लोगों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हो रही है।
चीन के वुहान से निकला COVID-19 वायरस ने पूरी दुनिया में फैल चुका है। इस वायरस से अभी तक लगभग 2 मिलियन लोग संक्रमित हो चुके हैं और 1 लाख 14 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है। भारत में भी इस वायरस ने कहर बरपया है लेकिन अन्य देशों की तुलना में काफी कम प्रभाव है। अब द इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार सौम्या ईश्वरन और सीताभरा सिन्हा द्वारा इस वायरस के पॉज़िटिव केस के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि इस महामारी के भारत में शुरू होने के बाद से, प्रत्येक रोगी औसतन 1.83 व्यक्तियों को संक्रमित कर रहा था, लेकिन 6 अप्रैल और 11 अप्रैल के बीच, यह संक्रमण दर 1.55 तक कम हुआ है।
सीताभरा सिन्हा ने कहा है कि यह शायद देशव्यापी लॉकडाउन का नतीजा है। उन्होंने कहा कि यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी लेकिन इस ग्रोथ रेट में कमी लॉकडाउन की वजह से ही है।
उन्होंने आगे कहा, “महाराष्ट्र का ग्रोथ कर्व 6 अप्रैल के आसपास थोड़ा धीमा दिखाई दे रहा था, लेकिन अब हम देख सकते हैं कि यह एक मामूली झटका था।” उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में अभी भी मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
सिन्हा के अनुसार, भारत में कुल मामलों की संख्या दोगुनी हो सकती थी अगर 21 दिनों के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा नहीं की गई होती। सिन्हा की टीम के अनुसार, अभी भारत में 300 मौतों के साथ 9,000 से अधिक मामले हैं, और 20 अप्रैल तक यह आंकड़ा 20,000 तक पहुंचने की उम्मीद है। उनकी टीम ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अगर लॉकडाउन नहीं लगाया गया होता, तो यह संख्या 35,000 से ऊपर हो सकती थी।
संक्रमण दर में कमी का मतलब है कि अगले कुछ दिनों में नए मामलों की कुल संख्या में काफी कमी आएगी। मोदी सरकार लॉकडाउन को आगे भी बढ़ा सकती है क्योंकि लगभग हर अध्ययन ने बताया है कि लॉकडाउन के कारण बीमारी फैलने से रोकने में मदद मिली है। कई राज्यों ने तो 30 अप्रैल तक लॉकडाउन बढ़ाने की घोषणा पहले ही कर दी है।
सबसे अच्छी खबर यह है कि वामपंथी ब्रिगेड के लगातार हमलों के बावजूद कोरोना के पॉजिटिविटी रेट यानि पॉज़िटिव मामलों का दर अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। कुल टेस्ट में से 4 प्रतिशत से भी कम केस कोरोना पॉज़िटिव निकल रहे हैं जो कि बड़े देशों की तुलना में काफी कम है।
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल साइंसेज के वैज्ञानिक तरुण भटनागर ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ को बताया कि पॉजिटिविटी रेट से आपको यह पता चलता है कि बीमारी कितनी फैली हुई है। उन्होंने कहा, “अभी हम रोजाना 16 हजार से 17 हजार टेस्ट कर रहे हैं। यह काफी बड़ी संख्या है। लेकिन अभी देखना होगा कि टेस्ट का आंकड़ा कहां तक जा कर रुकता है। यदि हमने रोजाना होने वाले टेस्ट की संख्या बढ़ाई और पॉजिटिविटी रेट पहले जैसी ही रही, तो यह पता चलेगा कि संक्रमण में कमी आई है। यदि टेस्ट बढ़ने पर मामले बढ़े तो फिर चिंता की बात होगी।”
भारत केवल गंभीर लक्षणों वाले लोगों का परीक्षण कर रहा है और इसके बावजूद, दुनिया और अंतरराष्ट्रीय मीडिया के वैज्ञानिकों के लिए 4 प्रतिशत का आंकड़ा आश्चर्य कर देने वाला है।
अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि कोरोना वायरस से भारतीयों को बचाने में क्या मदद कर रहा है, जबकि पश्चिम के देश जिनका मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर उच्चतम स्तर का है फिर भी कोरोना से तबाह हो चुके हैं।
क्या BCG का टीका काम कर रहा रहा या फिर लॉकडाउन या कुछ भारतीयों के Gene में ही कुछ ऐसा है जो उन्हें कोरोना से बचा रहा है।
अब इस शोध से यह जरूर स्पष्ट हुआ है कि लॉकडाउन ने न सिर्फ कोरोना वायरस के संक्रामण का कर्व फ्लैट करने में मदद की है बल्कि, मेडिकल इनफ्रास्ट्रक्चर को भी दुरुस्त करने में मदद की है।