मस्जिद के कुरान-वॉरियर्स खुद ही अपनी लंका जलाने में लगे हैं, शुक्रवार को फिर जुटाई मस्जिदों में भीड़

कोरोना से बच भी जाएंगे, लेकिन इनसे कैसे निपटे?

पश्चिम बंगाल

PC: Navbharat Times

एक कहावत बड़ी चर्चित है, आ बैल मुझे मार। इसका अर्थ स्पष्ट है, अपने हाथों से मुसीबत को गाजे बाजे सहित न्योता देना।  लगता है कि एक समुदाय पूर्ण रूप से इसी काम में लगा हुआ है। आए दिन लॉकडाउन के नियमों का उल्लंघन करना हो, बड़ी संख्या में इकट्ठा होना हो, या फिर स्वास्थ्य एवम् सुरक्षा कर्मियों के काम में बाधा डालनी हो, ये लोग कभी निराश नहीं करते। हाल ही में मुसलमानों ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि आखिर वे इतना आलोचना का शिकार क्यों बन रहे हैं। पश्चिम बंगाल के  मुर्शिदाबाद शहर में शुक्रवार की नमाज़ के लिए बड़ी संख्या में लोग उपस्थित हुए, और नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए भीड़ भी इकट्ठा की। इसके अलावा वे अफसरों की बातों तक को अनसुना कर रहे थे। एक वीडियो में आप देख सकते हैं कि कैसे सादे कपड़ों में एक पुलिस अधिकारी इन्हें समझा रहा है, पर ये लोग हैं कि सुनते ही नहीं।

इससे स्पष्ट पता चलता है कि कैसे एक समुदाय के लिए केवल उनका मजहब मायने रखता है। तब्लीगी जमात की इन्हीं हरकतों के कारण देशभर में वुहान वायरस के मामलों में अप्रत्याशित उछाल आया है। वर्तमान के लगभग 7600 संक्रमित मामलों में से कम से कम 40 प्रतिशत मामले तो तब्लीगी की ही देन है। ऐसे में पश्चिम बंगाल पुलिस यहां पर असहाय महसूस कर रही थी, क्योंकि इस समुदाय के व्यवहार के कारण सभी के लिए समान दृष्टि रखना इतना आसान काम भी नहीं।

पश्चिम बंगाल के घटना पर कटाक्ष करते हुए बाबुल सुप्रियो ट्वीट करते हैं, “ये पश्चिम बंगाल है जी, जब सीएम ही लापरवाही की हद पार कर दें और लोग बेफिक्र घूमें, तो क्या कह सकते हैं?”

परन्तु मुर्शिदाबाद अकेला नहीं है। गुजरात के बड़ौदा से 9 लोग इसी कारण हिरासत में लिए गए हैं, जबकि इससे पहले तेलंगाना में एक महिला ने नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ना सिर्फ हज़ारों किलोमीटर स्कूटी पर यात्रा की, अपितु अपने बेटे को भी वापिस लाने का प्रबंध किया।  अब भी आपको प्रमाण चाहिए?

ये विशेष समुदाय वुहान वायरस के फैलाव में एक अहम कारक के रूप में उभरा है। यह एकमात्र संयोग नहीं हो सकता है कि एक ही कट्टरपंथी संगठन ने दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया के देशों में चार बड़े-बड़े जलसे आयोजित किया जिसमें से मलेशिया में श्री पेटालिंग मस्जिद सम्मेलन में 16,000 लोगों का शामिल होना, इंडोनेशिया में 8 हजार से अधिक लोगों का शामिल होना,  निजामुद्दीन मरकज सम्मेलन में 9 हजार से अधिक जमातीओं का शामिल होना,  कोरोनवायरस के प्रकोप के बीच पाकिस्तान के लाहौर में 80 देशों के हजारों तबलीगी का शामिल होना। भारत में  इसका सबसे ज़्यादा असर तमिलनाडु, बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र और दिल्ली में पड़ा है। इसके बावजूद कुछ मौलवी अपनी हरकतों से बाज़ नहीं आ रहे हैं और लोगों को शुक्रवार की प्रार्थना में भाग लेने के लिए उकसा रहे हैं।

यदि ये ऐसे ही जारी रहा, तो पश्चिम बंगाल जल्द ही महाराष्ट्र को वुहान वायरस के मामलों में पीछे छोड़ देगा। कई चेतावनियों के बावजूद भी मुस्लिम समुदाय की हरकतों को देखकर ऐसा लगता है कि उन्होंने स्वयं धर्म को अपनी जान से ऊपर रख इस महामारी को निमंत्रित किया है। ये लोग ऐसा करके भारत की कोरोना के खिलाफ लड़ाई को भी कमजोर कर रहे हैं।

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