चीन से कई गुणा छोटे ताइवान ने चीन और WHO की बैंड बजा रखी है

Taiwan's President Tsai Ing-wen gestures while registering as the ruling Democratic Progressive Party (DPP) 2020 presidential candidate at the party's headquarter in Taipei on March 21, 2019. (Photo by SAM YEH / AFP) (Photo credit should read SAM YEH/AFP/Getty Images)

आज हम बात करने जा रहे हैं एक ऐसे टापू यानि द्वीप की जो देश है भी, और नहीं भी। इस देश का अपना झंडा भी है, राष्ट्रपति भी है, लेकिन इस देश का आधिकारिक नाम अपना नहीं है। जी हाँ! आज हम बात करने जा रहे ताइवान की जिसने कोरोना जैसे वैश्विक महामारी में अपनी आवाज को ऊंचा किया और विश्व को यह बता दिया कि “हाँ! हम हैं” और आप सभी को हमसे सीखने की जरूरत है। यही नहीं जब WHO के प्रमुख टेड्रोस गेब्रेयेसस ने ताइवान पर नस्ली या रंगभेदी टिप्पणी करने का आरोप लगाया तो ताइवान ने पलट कर जवाब भी दे दिया।

चीन के लाख दबाने के बाद भी ताइवान कोरोना के समय में ऐसे देश के रूप में उभरा है जिसने चीन द्वारा कोरोना फैलाने के बाद किए जा रहे PR को तहस नहस कर दिया है, और अब वह चीन की आंखो में आंखे डाल कर बात कर रहा है। कोरोना के समय में ताइवान ने सिर्फ अन्य देशों की न केवल कोरोना से लड़ने के तरकीब और मास्क के जरीय मदद की है बल्कि अपने लिए देश का दर्जा पाने की ओर बड़ी छलांग लगाई है।

ताइवान का असली नाम ताइवान नहीं बल्कि रिपब्लिक ऑफ़ चाइना है। चीन ने वर्ष 1949 से ही इस देश की संप्रभुता पर हमला कर अपने कब्जे में रखा हुआ है। यही नहीं चीन के ही दबाव से WHO जैसे कई वैश्विक संगठनों में ताइवान को सदस्यता नहीं मिली है। बावजूद इसके ताइवान एशिया की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदान देता है।

जब से चीन में कोरोना का कहर शुरू हुआ यानि दिसंबर में, उसी समय ताइवान ने WHO को अपनी एक रिपोर्ट में इस भयंकर वायरस के बारे में बताया था लेकिन फिर भी WHO ने ताइवान की इस रिपोर्ट को नज़रअंदाज़ कर दिया। इसके बाद जब कोरोना पूरे विश्व में जंगल की आग की तरह फैला तब ताइवान को वैश्विक स्तर पर चीन और WHO की साँठ गांठ की पोल खोलने और बाकी देशों से अपने संबंध बढ़ाने का मौका मिल गया। हालांकि, ताइवान को इस वायरस के बारे में पहले से ही पता था इस वजह से उसने अपने देश में तैयारी कर रखी थी इसी का परिणाम था कि ताइवान के कोरोना को नियंत्रित करने के आइडिया को पूरे विश्व में वाहवाही मिली।

कोरोना के समय में ताइवान ने हर वो चीज़ की है जिससे चीन और WHO का पारा चढ़ जाए। कोरोना फैलाने के बाद चीन ने PR को और बड़े स्तर पर ले जाने के लिए मास्क डिप्लोमेसी शुरू की और अन्य देशों को मास्क, वेंटिलेटर और अन्य मेडिकल सामान देने लगा। अपने PR के लिए चीन फेक न्यूज़ तक फैलाने से पीछे नहीं रहा और फेक अकाउंट से अपनी पीठ थपथपाता रहा। लेकिन कुछ ही दिनों में चीन के PR की पोल खुल गयी। कई देशों ने चीन से मिले खराब quality के मास्क और टेस्टिंग किट भी लौटा दिया। हालांकि, बाद में यह भी खुलासा हुआ कि चीन जिन देशों को मेडिकल सुविधा दे रहा था, उनसे या तो पैसे वसूल रहा था या फिर अपनी कंपनियों जैसे हुवावे के लिए रास्ता बना रहा था।

इसके बाद ताइवान ने देखा कि यहाँ भी उसके पास मौका है तो उसने 10 मिलियन मास्क भी दान में देकर अन्य देशों को मदद करने का ऐलान कर दिया। इससे चीन की मास्क डिप्लोमेसी को तगड़ा झटका लगा और सभी देश ताइवान की वाहवाही करने लगे। ताइवान के विदेश मंत्रालय के अनुसार एक दिन में 13 मिलियन फेस मास्क का उत्पादन करने की क्षमता के साथ, ताइवान यूरोप को 7 मिलियन मास्क दान कर रहा है, जिसमें इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम और यूके हैं और साथ ही अमेरिका को भी 2 मिलियन मास्क शामिल हैं। इस मदद के बाद यूरोपीय यूनियन सहित कई देशों ने ताइवान की खूब तारीफ की।

इसके बाद ताइवान द्वारा कोरोना को रोकने के लिए उठाए जा रहे कदमों को अभी तक 35 से अधिक देशों ने मान्यता भी दे दी है। ताइवान के सफलता की पूरे विश्व में प्रशंसा ने इस द्वीप को बहुत आवश्यक वैश्विक एक्सपोजर प्रदान किया है, जिसने इस देश को अंतर्राष्ट्रीय समर्थन हासिल करने और एक लोकतंत्र के रूप में पहचान हासिल करने की अपनी रणनीति में सफलता मिलेगी। इसी समर्थन के कारण से WHO में शामिल होने के लिए ताइवान की अपील को बल मिला है। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि ताइवान ने कोरोना वायरस के खिलाफ चीनी मॉडल को काउंटर किया है जिससे बीजिंग को गहरा झटका लगा है। यही कारण है कि चीन के ताइवान अफेयर मिनिस्टर ने ताइवान के मास्क डिप्लोमेसी को गलत बताते हुए यह कहा  “taking the wrong path of ‘worshipping everything foreign’ and engaging in a confrontation with the Motherland.” यही नहीं बीजिंग ने तो ताइवान के संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ  सहयोग को एक नीच कदम और स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए COVID-19 महामारी का उपयोग करने के लिए राजनीतिक साजिश  का नाम दिया है।

ताइवान ने सिर्फ राजनयिक संबंध ही नहीं बढ़ाए बल्कि, चीन के खिलाफ पूरी तरह से मोर्चा खोल दिया है। रिपोर्ट के अनुसार ताइवान ने पूर्वी एशियाई देशों के उन नागरिकों के लिए मैं चीन से नहीं हूँ, ताइवान से हूँ”, “मैं कोरिया से हूँ, Fu*k china”, जैसे कोट्स के साथ T-Shirts बनाई है जो अपने आप को चीन से जोड़कर देखे जाने को पसंद नहीं करते हैं।

ताइवान के इस T-SHIRT प्रहार से चीन की भी साँसे फूल चुकी हैं और चीनी मीडिया ने इसको लेकर ताइवान की निंदा की है और साथ ही यह दावा किया है कि सोशल मीडिया पर इन T-shirts की आलोचना की जा रही है, जबकि सच्चाई यह है कि यह विचार सोशल मीडिया पर कई लोगों को पसंद आ रहा है।

WHO ने चीन के दबाव में आकर जिस तरह से ताइवान को नजर अंदाज किया है वह इतिहास के पन्नो में दर्ज किया जाएगा। पहले तो WHO ने ताइवान द्वारा कोरोना वायरस जैसे नए वायरस के बारे में दिसंबर 2019 में दी गई रिपोर्ट को नजर अंदाज किया।

उसके बाद जब कोरोना फरवरी के अंत तक पूरे विश्व में फैल गया तब भी ताइवान ने अपने देश में लिए गए सुरक्षा तरीकों को WHO के साथ साझा किया था, लेकिन तब भी WHO ने उसे किसी भी सदस्य देश के साथ साझा नहीं किया। ताइवान WHO का सदस्य भी नहीं है और अगर WHO आज तक इस देश को सदस्यता नहीं दे पाया है तो वह सिर्फ चीन की वजह से। WHO और टेडरोस को तो बस चीन का बचाव करना था और वे वही करते रहे। जबसे ताइवान ने WHO के साथ बीजिंग के सम्बन्धों पर प्रहार करना शुरू किया है तब से तिमिलाए डॉ टेडरोस विक्टिम कार्ड और अल्पसंख्यक कार्ड खेलना शुरू कर चुके है। एक प्रेस कोन्फ्रेंस में WHO के प्रमुख ने ताइवान के विदेश मंत्रालय पर उन्हें नीग्रो कह कर “नस्लवादी हमले” करवाने का आरोप लगा दिया। हालांकि, बाद में ताइवान ने टेडरोस को पलट कर जवाब दिया और इस बयान का खंडन करते हुए इसे आधारहीन बताया।

WHO किस तरीके से ताइवान को नजरंदाज करता है उसका नजारा हमे रेडियो टेलीविजन हॉन्ग-कॉन्ग RTHK के एक कार्यक्रम में भी देखने को मिला था। जब एक पत्रकार ने वीडियो कॉल पर WHO से ताइवान की स्थिति के बारे में पूछा तो डब्लूएचओ के महानिदेशक के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. ब्रूस आयलवर्ड ने वीडियो कॉल ही काट दिया । इस खबर को ताइवान की राष्ट्रपति की प्रवक्ता ने भी ट्वीट किया था।

 

ताइवान ने अपने प्रतिकूल वातावरण में चीन के दबाव को सहकर जिस प्रकार कोरोना से टक्कर ली है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए, उतनी कम है। एक तरह से देखा जाए तो कोरोना ताइवान के लिए वरदान साबित हो रहा है, क्योंकि जिस तरह से इस द्वीप देश को विश्व भर के देश से मान्यता मिल रही है वह कभी नहीं हुआ था। कोरोना के खिलाफ शानदार लड़ाई लड़ने वाले ताइवान को अब पूरी दुनिया सलाम कर रही है। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में ताइवान की वैश्विक स्थिति कैसी रहती है और यूरोप तथा USA किस तरह से अपने संबंध ताइवान से बढ़ा कर उसे मजबूत करते है जिससे उसे चीन के चंगुल से छुटकारा मिले।

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