Brexit वाले भारतीयों को गाली देते थे, आज भारत वाले ही उनकी जान बचा रहे हैं

अब UK भी बोला “जय हिन्द”

ब्रिटेन

आज के समय में ब्रिटेन कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित देशों में से एक है, और मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। कोरोना के कुल 73 हजार से अधिक पॉज़िटिव केस हो चुके हैं वहीं लगभग 9 हजार मौतें हो चुकी है। ब्रिटेन में हालात इतने बुरे होने के बावजूद वहाँ के डॉक्टर अपनी जान जोखिम में डालकर इलाज करने में लगे हुए हैं। कोरोना से ब्रिटेन में आठ डाक्टरों की मौत हो गयी, परंतु यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि ये सभी प्रवासी डॉक्टर थे। यानि यह कहना गलत नहीं होगा कि ब्रेग्जिट आंदोलन के दौरान जिन अप्रवासी डॉक्टरों को UK में निशाना बनाया गया, उन पर तंज़ कसे गए, वे ही अब वहां भगवान की तरह लोगों की जान बचा रहे हैं। अब तक जिन 8 अप्रवासी डॉक्टरों ने अपनी जान गंवाई है वे सभी भारत, मिस्र, नाइजीरिया, श्रीलंका, पाकिस्तान और सूडान मूल से थे।

अगर तथ्यों को देखा जाए तो ब्रिटेन जैसे फ़र्स्ट वर्ल्ड कंट्री की स्वास्थ्य तंत्र की अधिकांश जिम्मेदारी विदेशी मूल के डॉक्टरों पर ही है जिनमें से अधिकतर भारतीय हैं। अभी कुछ ही वर्ष हुए जब ब्रिटेन यूरोप से अलग हो रहा था तब इन पर स्थानीय लोगों ने नौकरी छीनने के आरोप लगाए थे, लेकिन अब ये प्रवासी डॉक्टर ही उन सब की जान बचा रहे हैं।

ब्रिटेन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा (एनएचएस) अस्पतालों में एक तिहाई डॉक्टर अप्रवासी हैं। मार्च 2019 तक, NHS द्वारा एम्प्लोएड 1.2 मिलियन से अधिक स्टाफ में से 20 प्रतिशत BAME पृष्ठभूमि यानि ब्लैक एशियाई, अल्पसंख्यक जाति से हैं। जब बात डाक्टरों की आती है तो यह प्रतिशत और बढ़ जाता है। मार्च 2019 तक 43 प्रतिशत सीनियर डॉक्टर और 47 प्रतिशत जूनियर फिजीसीयन BAME पृष्टभूमि से आते हैं।

25 मार्च को पश्चिमी लंदन में जान गंवाने वाले सूडान मूल के डॉ आदिल अल-तायर के चचेरे भाई डॉ. हाशिम अल-खिदिर का कहना है कि डेढ़ साल पहले तक भी हम पर नौकरियां छीनने का आरोप लगाते थे। आज यही अप्रवासी डॉक्टर और नर्स ब्रिटेन को कोरोना से बचाने के लिए जान की बाजी लगा रहे हैं।

न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार विदेशी डॉक्टरों को नियुक्ति देकर ब्रिटेन मोटे तौर पर 2.70 लाख डॉलर बचाता है, जो उसे अपने लोगों को प्रशिक्षण देने में खर्च हो सकता है।

जानने वाली बात यह है कि प्रवासी डाक्टरों को प्रतिष्ठित विषयों में विशेषज्ञ बनने से रोकने के लिए कई रोड़े लगाए जाते हैं, जिसकी वजह से अप्रवासी डॉक्टर परिवार और बुजुर्गों की चिकित्सा पर लगाया जाता है। आज वही डॉक्टर ब्रिटेन की स्वास्थ्य प्रणाली के स्तंभ बने हुए हैं।

यही नहीं ब्रिटेन में प्रवासी डाक्टरों के साथ अन्याय भी अधिक होता है। न्यू यॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार वार्षिक वीजा पर  हजारों डॉलर खर्च करने के बाद उन्हें उसी मेडिकल सुविधा का इस्तेमाल करने के लिए 500 डॉलर का सरचार्ज भी देना पड़ता है जिसके लिए वे काम करते हैं।

 

बता दें कि यूके वुहान वायरस के प्रसार को रोकने के लिए चिकित्सा के पेशेवरों की कमी से जूझ रहा है। इसी वजह से भारतीय मूल के कई सेवानिवृत्त डॉक्टर देश की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में मदद करने के लिए शामिल हुए। ब्रिटिश एसोसिएशन ऑफ फिजिशियन ऑफ इंडियन ओरिजिन (BAPIO) के अध्यक्ष रमेश मेहता कहते हैं, “मैं तीन साल पहले सेवानिवृत्त हुआ था, लेकिन अब NHS में वापस आ गया हूं। यह पूरे ब्रिटेन में संकट के समय में मदद करने का अवसर है।”

पिछले कुछ दशकों में, हजारों भारतीय डॉक्टर और नर्स यूके गए हैं। समान्यतः वे दूरदराज के क्षेत्रों में मेडिकल सेवा देते हैं जहां ब्रिटिश मूल के डॉक्टर जाने से मना करते हैं। भारतीय मूल के दूसरे और तीसरी पीढ़ी के डॉक्टरों ने आपातकालीन चिकित्सा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल की है। और वे इसी का नमूना कोरोना जैसी महामारी में दिखा रहे हैं। ब्रिटेन मेडिकल शिक्षा पर पर्याप्त पैसा खर्च नहीं करता इसी वजह से उसे अप्रवासियों पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ता है। इस तरह से कहा जा सकता है कि जिन डॉक्टरों को कोसा गया आज वही ब्रिटेन में भगवान बने हुए हैं।

 

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