नक्सल गढ़ से लेकर कोरोनावायरस हॉटस्पॉट तक: दुबई ने केरल के सबसे लाल जिले को कैसे संक्रमित किया

केरल का कासरगोड कोरोना का हॉट-स्पॉट बन गया है!

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देश के सबसे खूबसूरत राज्यों में से एक केरल कोरोना से प्रभावित होने वाला सबसे पहला राज्य था लेकिन फिर भी इस राज्य में अभी भी इस वायरस से निपटने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाया है। केरल की पी विजयन की सरकार कोरोना वायरस के बजाय अपने PR पर अधिक ध्यान दे रही है।

आंकड़ों की बात की जाए तो केरल देश में कोरोना वायरस से प्रभावित होने वाले राज्यों में से दूसरे स्थान पर महाराष्ट्र के पीछे हैं और अभी तक 265 केस पॉज़िटिव आ चुके हैं। केरल के उत्तरी क्षेत्र में स्थित कासरगोड कोरोना का हॉट स्पॉट बना हुआ है। और हैरानी की बात यह है कि एक जमाने में नक्सल के गढ़ होने के बावजूद यहां से जो कोरोना के केस मिल रहे हैं उन सभी का लिंक सऊदी सहित खाड़ी के देशों से निकल कर आ रहा है।

कासरगोड से दुबई तक बड़े स्तर पर लोगों का प्रवास होता है और वे ही वापस भी आते हैं। वास्तव में, दुबई में नाइफ क्षेत्र को कासरगोड के निवासियों की भारी एकाग्रता के कारण मिनी-कासरगोड के रूप में जाना जाता है, जो छोटे स्तर पर व्यवसायी के रूप में काम करते हैं।

केरल में 265 कोरोना वायरस मामलों में से, लगभग 40 प्रतिशत  यानि 108 सटीक होने के लिए इस उत्तरी केरल जिले में सामने आए हैं। जिले के 75 मामले दुबई से वापस आने वालों का हैं। यह तथ्य कासरगोड-दुबई-कासरगोड ट्रैवल चेन की ओर सीधा और निस्संदेह लिंक उजागर करता है। कासरगोड की आबादी 13 लाख है और यहां के करीब-करीब हर घर से एक सदस्य अरब देशों में काम करने के लिए गया हुआ है। इनमें से बहुत से लोग वापस आए तो उनमें कोरोना का संक्रमण था जोकि जिले में फैलता चला गया।

बता दें कि नाइफ क्षेत्र जहां से कासरगोड में वायरस आया, वहां कई देश के लोग रहते हैं और वह एक घनी आबादी वाला क्षेत्र है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, फिलीपींस, नेपाल और यहां तक कि चीन से भी आए कुछ लोग अपना व्यवसाय चला रहे हैं। ऐसे में कोरोना वायरस के फैलने के लिए यह सही स्थान था।

इस बीच, कासरगोड क्षेत्र के अधिकारियों ने स्थिति पर ध्यान दिया है, और जिला कलेक्टर सजीथ बाबू ने कहा, 20 फरवरी के बाद दुबई से आने वाले लोगों, विशेष रूप से नाइफ से पास PHC पर रिपोर्ट करना होगा, भले ही उन्हें कोरोना का कोई लक्षण है या नहीं। क्षेत्र में काम करने वाले कासरगोड के कई लोग हैं।”

यहीं पर केरल की कम्युनिस्ट सरकार की कमियां सामने आती हैं। केरल में कम्युनिस्ट शासन लगातार यह ढिंडोरा पीटते आई है कि स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे के मामले में वह देश के बाकी हिस्सों से बेहतर है। लेकिन कासरगोड राज्य में चिकित्सा संस्थानों का सबसे कम अनुपात है।

जिले में खराब चिकित्सा बुनियादी ढांचे के बाद कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों ने इसे और अधिक दुर्बल बना दिया है। कासरगोड में पहला कोरोनावायरस केस के सामने आए दो महीने हो चुके हैं। बाद में, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA), कोचीन शाखा ने भी चेतावनी की घंटी बजाई थी, और यह अनुमान लगाया गया था कि राज्य में लगभग 65 लाख लोगों को वुहान वायरस के संक्रमण का खतरा है।

लेकिन ऐसे संकेतों के बावजूद, कोरोनावायरस संदिग्धों के कई मामलों और isolation centres के रोगियों के कूदने के बाद भी पिनाराई विजयन की सरकार ने जिले में चिकित्सा बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने या अपनी quarantine सुविधाओं को बढ़ाने का प्रयास नहीं किया।

इसके अलावा, कानून और प्रशासन भी लचर रहा है। हाल ही में, कासरगोड में स्वास्थ्य अधिकारियों पर कोरोनोवायरस जागरूकता अभियान के दौरान हमला किया गया था और बाद में एक उप-निरीक्षक सहित चार पुलिसकर्मी घायल हो गए थे, जब उन्होंने स्वास्थ्य अधिकारियों को निकाला था।

केरल सरकार ने कोरोनोवायरस प्रकोप के घटिया प्रबंधन के कारण, कासरगोड के निवासी खतरे में है। इससे पहले, कासरगोड कम्युनिस्ट शासन द्वारा उपेक्षा के कारण वर्षों तक चिकित्सा देखभाल के लिए पूरी तरह से कर्नाटक पर निर्भर था।

लेकिन अब 21 दिन के लॉकडाउन के कारण राज्यों की सीमाएं  पूरी तरह से सील कर दी गई हैं जिसके बाद सच्चाई खुल कर सामने आई है। इसी क्रम में केरल की सरकार अब कर्नाटक सरकार के साथ विवाद पर उतर चुकी है।

हालांकि हालात बद से बदतर हों इससे पहले सरकार को अपनी जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी होगी, ताकि लोगों की जान बचाया जा सके. अगर ढंग से लोगों का इलाज हुआ तो जान बच सकती है क्योंकि भारत में कोरोना से मरने वालों की दर बेहद कम है.

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