तेल के पैसे से चलने वाला Wahhabism अब खतरे में है, क्या यह सऊदी अरब के अंत की शुरुआत है?

सामान्य इस्लामिक देश बनने की राह पर है शाही देश

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विश्व में पेट्रोलियम के सबसे बड़े निर्यातक और सबसे अमीर देशों में से एक सऊदी अरब आज कल कच्चे तेल की कीमत कम होने से जबरदस्त संकट झेल रहा है। जिस ब्रेन्ट क्रूड ऑयल को सऊदी सरकार ने वित्त वर्ष 20 में में 82 डॉलर प्रति बैरल की दर से बेचने अनुमान लगाया गया था वह आज 18 डॉलर प्रति बैरल पर कारोबार कर रही है।

वहीं 34,वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट मार्केट में कच्चे तेल के दाम शून्य से भी 37 डॉलर प्रति बैरल नीचे चले गए हैं जिसके बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने धमकी दी थी कि वे से तेल आयात करना बंद कर देंगे।

780 बिलियन डॉलर वाली सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से तेल पर निर्भर है और सरकारी राजस्व का अधिकांश हिस्सा सरकारी कंपनी Saudi Aramco, से आता है जो देश के तेल भंडार का मालिक है।

कोरोनावायरस के प्रकोप और तेल की कीमतों में गिरावट के बाद सऊदी शासकों के का पूरा गणित गड़बड़ा चुका है। राजकोषीय घाटा, जो पहले 40 से 45 बिलियन डॉलर अनुमानित था, अब 61 बिलियन डॉलर पहुंचने की उम्मीद है। वहीं WTI क्रूड की कीमतों में गिरावट का बड़ा मनोवैज्ञानिक असर होगा और तेल और गैस क्षेत्र में निवेशकों का विश्वास कमजोर होगा।

बता दें कि सऊदी अरब ने दुनिया भर के इस्लामिक देशों को अरबों डॉलर दिए और इसी धन के जरीय उन देशों में सैकड़ो मदरसे स्थापित किए गए। इन मदरसो में मौलविओं ने वहाबी इस्लाम का खूब प्रचार किया। बंगला बोलने वाले बांग्लादेशी मुस्लिम से लेकर मलेशिया और इण्डोनेशिया तक को कट्टर वहाबी रंग में रंग दिया गया। मलेशिया में कई लोगों के लिए “अच्छा” मुस्लिम एक ऐसा व्यक्ति है जो अरब संस्कृति का पालन करता है, और सऊदी अरब द्वारा निर्यात किए गए इस्लाम के शाब्दिक संस्करण का अभ्यास करता है। इससे साफ जाहिर होता है कि मलेशिया का झुकाव शुरू से ही वहाबी इस्लाम की तरफ रहा है।

सऊदी अरब ने यूरोपीय देशों में भी मस्जिदों और मदरसों को वित्त पोषित किया, और इस्लाम के कट्टरपंथी वहाबी इस्लाम फैलाया। सऊदी ने तेल से कमाया हुआ सारा धन वहाबी इस्लाम के प्रचार में लगाया जिससे इस्लामिक देशों में उसकी प्रभुत्व बनी रहे। यही नहीं सऊदी अरब ने आतंकवादी संगठनों को भी खूब धन दिया है।

पहले सउदी अरब आतंकी संगठनों के फंडिंग के प्रमुख स्रोत हुआ करते था। 9/11 की घटना में आतंकी संगठन अलकायदा द्वारा खर्च हुए पैसों में सबसे ज्यादा पैसा सऊदी अरब के लोगों ने बतौर चैरिटी दिया था। भारतीय मूल के दिग्गज अमेरिकी पत्रकार फरीद जकारिया ने वॉशिंगटन पोस्ट में एक लेख लिखा है जिसमें उन्होंने कहा था कि सऊदियों ने “इस्लाम की दुनिया में राक्षस पैदा कर दिया है।”

लेकिन अब तेल की कीमतों में  कमी आई है जिससे न सिर्फ सऊदी का व्यापार घटेगा बल्कि अन्य देशों पर से प्रभुत्व भी घटेगा। क्योंकि व्यापार कम होने से सऊदी अरब अन्य देशों को पेट्रोडॉलर में भी कमी करेगा और इस्लामिक प्रचार में भी कमी आएगी।

वहाँ के प्रिंस MBS ने पहले ही सरकार को ‘गैर-आवश्यक खर्च’ में कटौती करने का आदेश दिया है। और जब तक यह देश इस्लामिक सेमिनारों को ‘आवश्यक’ खर्च के रूप में चिन्हित नहीं करता, तब तक पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में सऊदी अरब के रुपये पर होने वाले इस्लामिक सेमिनार की संख्या में गिरावट आएगी।

यही नहीं सऊदी अरब में कई जनजाति भी निवास करती है और अगर उनके मध्य असंतोष पैदा हो गया तो सऊदी में भी विद्रोह हो जाएगा और फिर उसके बाद एक विद्रोह शुरू हुआ तो वह तब तक नहीं रुकेगा जब तक यह देश पूरी तरह से बर्बाद न हो जाए।

कोरोना के कारण सऊदी अरब के धार्मिक स्थल बंद पड़े हैं, इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सऊदी सरकार के लिए गरीब इस्लामिक देशों में पेट्रो डॉलर भेजने का कोई मतलब नहीं है इसलिए वह मदरसों के फंड कम करने के लिए बाध्य है। यह स्थिति सऊदी को इस्लामिक देशों के नेता के स्थान को भी कमजोर कर देगा।

कोरोना ने आज ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि सऊदी अरब एक सामान्य इस्लामिक देश बनने की राह पर है जहां से वापस पुनः लौटना मुश्किल होगा।

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