दिन 14 अप्रैल 2020. ये वो तारीख थी जब लॉकडाउन 1.0 पूरा हुआ और पीएम मोदी ने देश को पांचवी बार संबोधित किया. इस संबोधन में उन्होंने वही कहा जिसकी सभी को उम्मीद थी. उन्होंने लॉकडाउन 3 मई तक बढ़ाने की घोषणा की. पीएम मोदी की बातों में साफ झलक रहा था कि वे कोरोना से कितने परेशान हैं. अपनी जनता के लिए वे कितने चिंतित हैं उनके चेहरे की प्रतिक्रिया देखकर साफ समझा जा सकता था. पीएम मोदी ने इस बार भी देश की जनता को अनुशासित रहने का संदेश दिया लेकिन एक झूठी खबर और मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर हजारों प्रवासी मजदूरों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है.
पुलिस को भीड़ नियंत्रित करने का कोई उपाय जब नहीं सूझता तो लाठी चार्ज कर देती है. इस तरह से भारत के सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्य में लॉकडाउन की धज्जियां उड़ाई जाती हैं और प्रशासन बेबस नजर आती है. जैसे कि भीड़ आसमान से बरसा हो और इकट्ठा होने की खबर इन्हें पता ही नहीं चली.
यह बताना बेहद जरुरी है कि ये घटना मातोश्री से महज दो किलोमीटर की दूरी पर घटी थी. मातोश्री उद्धव का पुस्तैनी आवास है. यहीं नहीं बांद्रा धारावी से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर है जहां कोरोना के कई मामले सामने आ चुके हैं.
Hundreds gather at Mumbai's Bandra Railway station wanting to go home & clash with police
Modiji is so out of touch with what's happening at ground level – he has no humanitarian or financial plan to deal with #COVID2019 pic.twitter.com/4xfYVMhPP6
— 🌈🍉 (@DelhiIsNotFar) April 14, 2020
एक अफवाह और देश की औद्योगिक राजधानी खतरे में
बांद्रा में भीड़ इकट्ठा होने की जड़ एक अफवाह बताई जा रही है. इसमें कहा गया कि बांद्रा स्टेशन से लंबी दूरी की ट्रेन मिल रही है, जिससे प्रवासी लोग अपने घर जा सकते हैं. इसके अलावा एक अफवाह ये भी बताई गई कि यहां लोगों को राशन बांटा जा रहा है, जिसकी वजह से लोग इकट्ठा हो गए. मालूम हो कि उस भीड़ में ज्यादातर लोग प्रवासी मजदूर ही थे जो अपनी रोजी-रोटी के लिए मुंबई में रह रहे हैं. फिलहाल इन प्रवासियों को कंटेंमेंट जोन में रखा गया है. वहीं सबसे चौंकाने वाली बात ये थी कि इस भीड़ में शामिल लोगों ने अपने साथ कोई सामान नहीं लिया था. यानि वो खाली हाथ आए थे.
‘रहने खाने की व्यवस्था उचित नहीं’- खुद कांग्रेसी एमएलए ने एक्सपोज किया
यहां उद्धव ठाकरे सरकार पर कुछ सवाल उठते हैं. अगर उन्होंने प्रवासियों के रहने-खाने का प्रबंध किया था तो वे राशन की अफवाह पर क्यों भीड़ लगाए. दूसरी बात बांद्रा में भीड़ इकट्ठा हो जाती है और प्रशासन को खबर तक नहीं लगती है.
हालांकि कांग्रेस विधायक जीशान सिद्दीकी का दावा है कि बांद्रा पश्चिम और पूर्व में रहने वाले प्रवासियों को ऐसी कोई मदद नहीं दी जाती है। सिद्दीकी ने कहा कि उन्होंने और उनके पिता ने अपनी व्यक्तिगत क्षमता से 45,000 प्रवासियों को भोजन और राशन देने में मदद की है क्योंकि उन्हें राज्य सरकार से कोई राशन नहीं मिला है।
#Exclusive #Breaking | @INCIndia MLA @zeeshan_iyc exposes Maha Vikas Aghadi Govt.
Govt has not provided any food to the migrant workers, we had to provide it on our own: Zeeshan Siddique.
Details by TIMES NOW's Aruneel & Kajal. pic.twitter.com/mPVgc6XvLj
— TIMES NOW (@TimesNow) April 14, 2020
मुंबई पुलिस कहां सो रही थी?
जैसा कि मुंबई पुलिस को देश की सबसे मुस्तैद पुलिस बल माना जाता है. वो भी भीड़ जुटने पर खामोश रही. देश भर में लॉकडाउन लागू था. चप्पे-चप्पे पुलिस की तैनाती की गई है. किसी को घर से निकलने की अनुमति नहीं है. ऐसे में हजारों की संख्या में प्रवासी मजदूर कैसे बांद्रा स्टेशन पर एकाएक इकट्ठा हो जाते हैं और पुलिस को भनक तक नहीं लगती. पुलिस इन्हें पहले क्यों नहीं रोक पाई. अगर पहले ही रोक लेती तो न तो लाठी चार्ज करनी पड़ती और न ही हजारों की जानें खतरे में पड़ती.
महाराष्ट्र सरकार ने खुद गलती की और ठीकरा मोदी सरकार पर फोड़ रही है
इस पूरे प्रकरण में गौर किया जाए तो राज्य सरकार और उनकी पुलिस प्रशासन की गलती है. लेकिन महाराष्ट्र सरकार के कैबिनेट मंत्री और सीएम उद्धव के बेटे आदित्य ठाकरे ने इस पर गंदी राजनीति करना शुरु कर दिया है. आदित्य ठाकरे अपने सरकार की गलतियों को केंद्र पर मढ़कर अपनी नाकामियों को छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं.
आदित्य ठाकरे कहते हैं कि बांद्रा स्टेशन से फिलहाल प्रवासी मजदूरों को हटा दिया गया है. उन्होंने आगे कहा कि सूरत में हाल ही में मजदूरों ने उत्पात मचाया था. उन्हें भी केंद्र सरकार घर पहुंचाने का जिम्मा नहीं ले पाई. प्रवासी मजदूर न तो खाना चाहते हैं और न ही रहने के लिए घर, वे सिर्फ अपने गांव-घर जाना चाहते हैं. जिसके लिए केंद्र सरकार कुछ नहीं कर रही है.
उन्होंने आगे कहा कि महाराष्ट्र में कुल 6 लाख प्रवासी आश्रय शिविरों में रह रहे हैं. ये मजदूर यहां रहने और खाने को लेकर चिंतित हैं क्योंकि उन्हें अपने घर जाना है.
अमित शाह ने फटकार लगाई फिर उद्धव सामने आए
हालांकि बांद्रा प्रकरण पर जैसे ही राजनीति शुरु हुई केंद्र सरकार ने तुरंत राज्य सरकार को फटकार लगाई. पीएम मोदी के कहने पर गृहमंत्री शाह ने उद्धव ठाकरे से फोन पर बात की और उन्होंने ठाकरे को नसीहत दी कि बांद्रा जैसी घटनाएं कोरोना से भारत की लड़ाई को कमजोर करेंगी. उन्होंने कहा कि स्थिति को संभालिए और अफवाह फैलाने वालों पर कड़ी से कड़ी कार्रवाई कीजिए. इसके साथ ही शाह ने कहा कि प्रवासी मजदूरों के रहने और खाने का उचित प्रबंध करिए, ऐसा सभी सरकारें कर रही हैं.
शाह के नसीहत के बाद उद्धव सरकार थोड़ी हरकत में आई. खुद उद्धव टीवी पर आए और प्रवासी मजदूरों को विश्वास दिलाया कि उनकी सरकार हर तरह से उनका ख्याल रखेगी.
कुप्रबंधन और घटिया लीडरशीप के कारण बांद्रा प्रकरण हुआ
वास्तव में बांद्रा प्रकरण पर अगर गौर किया जाए तो यह कुप्रबंधन की देन थी. लॉकडाउन के बाद भी भीड़ इकट्ठा हो जाती है और पुलिस को भनक तक नहीं लगती. उद्धव पहले ही कह चुके हैं कि वह राज्य को 30 अप्रैल तक “कम से कम” लॉकडाउन के तहत रखने का आदेश दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने “कम से कम” पर जोर दिया है। वास्तव में अगर कोरोना से जंग जीतना है तो दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों से पहले इसका सफाया करना जरुरी है क्योंकि यहां पर पूरे भारत के लोग रहते हैं. अगर यहां पर ही लापरवाही बरती जाएगी तो शेष भारत कैसे कोरोना मुक्त हो सकेगा.
आज मुंबई कोरोना की भयंकर चपेट में है, बालासाहेब की नगरी रो रही है. और उनके सुपुत्र लापरवाही पर लापरवाही बरतते जा रहे हैं. अगर यही क्रम जारी रहा तो न्यू यॉर्क, वुहान और इटली से भी ज्यादा गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं. क्योंकि मुंबई की आबादी इन तमाम शहरों के कई गुना ज्यादा है. यहां स्लम एरिया भी वहां से ज्यादा है. सैनिटाइजिंग की समस्या भी है. ऐसे में मुंबई को बचाने के लिए उद्धव का ये रवैया बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना है।