कोरोना वायरस ने पूरे विश्व में आतंक मचा रखा है। कई देश के नागरिक दूसरे देशों में फंसे हुए हैं और वापस जाने की आस में बैठे हैं। खाड़ी देशों में सबसे अधिक भारतीय इसी ताक में बैठे हैं क्योंकि जैसे ही कोरोना खत्म होगा उनके खिलाफ खाड़ी देशों में अत्याचार बढ़ जाएगा और ये देश उन्हें नौकरियों से निकालने लगेंगे क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों में लगातार गिरावट हो रही है जिससे इन देशों की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से धराशाई हो रही है.
केंद्र सरकार ने मामले की गंभीरता को समझते हुए इसपर काम शुरू भी कर दिया है और एयर फोर्स और नेवी को तैयार रहने को कहा गया है। खाड़ी देशों में फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए भारतीय नौसेना अपने लैंडिंग प्लेटफार्म डॉक युद्धपोत आईएनएस जलश्व और दो मगर श्रेणी के युद्धपोतों के साथ पूरी तरह से तैयार है।
यह जहाज कोरोना संक्रमण से बचने के उपायों का पालन करते हुए 300 से 400 लोगों को लाने में सक्षम हैं, जबकि जलाश्व में 850 लोगों को लाया जा सकता है। नौसेना के एक अधिकारी ने बताया कि जलाश्व के डेक पर पुरुषों को, भीतरी डेक में बुजुर्गों, महिलाओं एवं बच्चों को लाने की योजना है।
वहीं, वायु सेना का सी-17 विमान 400 यात्रियों को ला सकता है, लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग के कारण एक उड़ान में 200 यात्रियों को लाने की योजना है।
सूत्रों के अनुसार, नागरिक उड्डयन मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों ने एक लेटर में कहा था कि भारत के पास 500 से अधिक विमान हैं और भारतीय विमानन खाड़ी देशों से भारतीयों को निकालने में सक्षम हैं।”
खाड़ी देशों में फंसे भारतीयों में अधिकांश मजदूर हैं। सरकार हर संभव योजना बना रही है और उनको उनके मूल स्थानों तक पहुंचाने की पूरी व्यवस्था कर रही है। सूत्रों ने कहा, “लगभग 10 मिलियन भारतीय खाड़ी देशों में हैं और उनमें से कई बंदरगाह शहरों में रह रहे हैं, और इसीलिए सरकार ने भारतीय नौसेना को समुद्री मार्गों के माध्यम से निकासी के लिए एक विस्तृत योजना देने के लिए कहा है।”
बता दें कि अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की आबादी में भारतीयों की संख्या सबसे अधिक है। और साथ ही दुनिया के अन्य हिस्सों से भेजे गए धन यानि रेमिटेन्स का शीर्ष प्राप्तकर्ता भी है। 1970 के दशक के बाद से खाड़ी देशों में आई “तेल के बाजार में उछाल ”, के बाद भारतीयों के लिए ये क्षेत्र नौकरी और आय का एक प्रमुख स्रोत बन गया।
साथ की उच्च रेमिटेन्स की वजह से अर्थव्यवस्था में भी योगदान देने लगा। एक रिपोर्ट के मुताबिक खाड़ी देशों में भारत के लगभग 31 मिलियन नॉन रेसिडेंट इंडियन में से 8.5 मिलियन लोग काम करते हैं। वर्ल्ड बैंक के अनुसार वर्ष 2018 में भारत 80 बिलियन डॉलर के साथ सबसे अधिक रेमिटेन्स पाने वाले देश है और इन रेमिटेन्स के स्रोत के रूप में काम करने वाले टॉप 5 देशों में से 4 खाड़ी के देश हैं।
खाड़ी देशों में प्रवासी मजदूरों में 30% से अधिक भारतीयों हैं। भारतीय प्रवासी श्रमिकों ने खाड़ी राज्यों के आर्थिक विकास में पर्याप्त योगदान दिया है लेकिन जब भी आफत आती है उसकी गाज इन भारतीयों पर ही पड़ता है। नेवी ने युद्ध के वक्त 2006 में लेबनान और 2015 में यमन से भारतीयों को निकाला था। भारतीयों को खाड़ी देशों से निकालने का अब तक का सबसे बड़ा अभियान 1990 में कुवैत-इराक युद्ध के दौरान चला था। तब डेढ़ लाख भारतीय निकाले गए थे।
खड़ी देशों में काम करने वाले अधिकतर भारतीय मजदूर है तथा अनस्किल्ड ग्रुप में आते हैं और कोंटरैक्ट के आधार पर काम करने जाते हैं। इसे खड़ी देशों में काफला सिस्टम कहा जाता है। कोरोना जैसी विपत्ति के समय जहां अधिकतर नौकरियाँ खतरे में है. वहीं ये सभी प्रवासी कामगार, सबसे अधिक जोखिम में है क्योंकि अनस्किल्ड हैं। इसका कारण कोरोना के साथ पिछले कुछ वर्षों में खाड़ी देशों की गिरती अर्थव्यवस्था भी है।
इन देशों ने तेल की कीमतों में 50 डॉलर प्रति दिन से ऊपर का बजट लगाया, लेकिन कोरोनवायरस से प्रेरित लॉकडाउन के कारण, तेल इसके आधे हिस्से पर भी कारोबार नहीं कर रहा है। तेल कंपनियाँ मुनाफा कमाने के लिए सबसे पहले अनस्किल्ड मजदूरों को ही बाहर का रास्ता दिखाएंगे।
ये सभी मजदूर जिसमें से अधिकतर भारतीय ही हैं। अपने परिवार के एक मात्र कमाने वाले व्यक्ति होते हैं जो खड़ी देशों में कमा कर रुपया भारत भेजते हैं। अगर इन सभी को भारत लाया जाता है तो इन सभी को रोजगार देना सरकार के लिए सरदर्द बनने वाला है। यह नहीं भूलना चाहिए कि खड़ी देशों में 85 लाख से अधिक प्रवासी रहते हैं। उनका भारत आना यानि बेरोजगार का सैलाब आना होगा।
साथ ही इन देशों से मिलने वाला रेमिटेन्स में भी भारी कमी आने वाली है जिससे केंद्र सरकार को ही घाटा होगा। केंद्र सरकार को नए नए रास्ते तलाशने होंगे जिससे इन सभी के लिए रोजगार पैदा हो सके। केंद्र सरकार को इन सभी चुनौतियों से निपटने के लिए एक फूल प्रूफ प्लान बनाना होगा। उम्मीद है कि केंद्र सरकार पहले से इन प्रवासी मजदूरों के बारे में सोच रही होगी।