“तब्लीगी वाले मासूम हैं, नर्स झूठ बोल रही है”, आरफा जैसे नकली फेमिनिस्टों ने पीड़ित नर्सों के खिलाफ खोला मोर्चा

तब्लीगी जमात

वुहान वायरस से पूरी दुनिया जूझ रही है, और भारत भी इससे अछूता नहीं है। अब तक कुल मामले 3000 के पार पहुँच चुके हैं। इस अप्रत्याशित उछाल के पीछे सबसे प्रमुख कारणों में से एक रहा है तब्लीगी जमात, जिसके सदस्यों ने पूरी व्यवस्था को तहस नहस करके रख दिया। परंतु कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो इन जाहिलों की कायराना हरकतों को अपना समर्थन देने से तनिक भी नहीं हिचकिचा रहे हैं।

अभी हाल ही में एक चिंताजनक खबर गाज़ियाबाद के एक अस्पताल से सामने आई। वहाँ के मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने पुलिस को शिकायत करते हुए लिखा था कि गाज़ियाबाद में तब्लीगी जमात के सदस्यों को quarantine किया गया है, वे न सिर्फ अस्पतालों में उत्पात मचा रहे हैं, अपितु महिला स्टाफ, विशेषकर नर्सों के साथ बदतमीजी भी कर रहे हैं, और उनके साथ छेड़खानी भी कर रहे हैं। इससे आग बबूला होकर योगी आदित्यनाथ ने न केवल इन असामाजिक तत्वों के विरुद्ध रासुका के अंतर्गत कार्रवाई की यूपी पुलिस को खुली छूट दी, अपितु इसे एक अमानवीय कार्य भी करार दिया।

परंतु कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो इन राक्षसों का बचाव करने में ज़रा भी शर्म नहीं दिखाई दी है। द वायर की स्टार पत्रकार आरफा खानुम शेरवानी को लगता है की यह केंद्र सरकार की मुसलमानों को दबाने की कोई साजिश है। आरफा खानुम शेरवानी के अनुसार, “तबलीगी इस देश के सबसे पढ़े लिखे नागरिकों में नहीं आते। पर मैं नहीं मानती कि वे डॉक्टरों पर थूकेंगे और महिलाओं के साथ अभद्रता कर सकते हैं। वे बड़े ही नेकदिल, निस्स्वार्थ मनुष्य हैं। प्लीज़, अपना यह प्रोपगैंडा बंद करें”।

यह वही feminist पत्रकार आरफा खानुम शेरवानी हैं, जिनके लिए बिना सबूत, बिना गवाह के दिल्ली पुलिस इस बात की दोषी था कि उन्होंने जामिया की छात्राओं के साथ छेड़खानी की, क्योंकि ऐसा संस्थान के छात्राओं ने कहा था। परंतु यदि तब्लीगी जमात के सदस्य गाज़ियाबाद के अस्पतालों में महिलाओं के साथ अभद्रता करें, तो वो झूठी खबर कैसे हो गई? अब इनका फेमिनिज्म कहां गया?

तब भी एजेंडा था समर्थन के पीछे और आज भी वही है। परंतु आरफा अकेली नहीं थी। वामपंथी पत्रकार सदानंद धूमे तक आरफा के सुर में सुर मिलाते हुए नज़र आए। जनाब कहते हैं, “आप ठीक कहती हैं। मैं भी इनका बहुत बड़ा फ़ैन नहीं हूँ। पर अभद्रता के आरोप झूठे हैं, और जिस तरह से मुसलमानों का चित्रण हो रहा है, वो बहुत ही खराब है”।

सच कहें तो इन पत्रकारों ने सिद्ध कर दिया है कि इनके लिए इनका कुत्सित एजेंडा मानवतावाद से भी ऊपर है। चाहे कुछ हो जाये, एजेंडा चलते रहना चाहिए, और उसमें कोई कमी नहीं होनी चाहिए। जिस तरह से इन लोगों ने तब्लीगी जमात के राक्षसों का बचाव किया है, उससे एक बात स्पष्ट सिद्ध होती है – अपने एजेंडे के लिए ये ज़रूरत पड़ने पर अपने ही बनाए आदर्शों को अपने पैरों के तले कुचल सकते हैं। वाह रे इनकी हिपोक्रेसी।

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