भारत-पाक के नए-नए बने मुसलमान ही ज़्यादा उछल रहे हैं, अरब वाले तो सब मस्जिदें बंद करे बैठे हैं

दक्षिण एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के मुसलमान आखिर इतने आतुर क्यों हैं?

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दुनिया में कोरोना वायरस के मामले 12 लाख के आंकड़े को पार कर चुके हैं, और लगभग 65 हज़ार लोग इसकी वजह से अपनी जान भी गंवा चुके हैं। दक्षिण एशिया में पाकिस्तान और भारत में ये मामले बड़ी तेजी से बढ़े हैं। ऐसा देखने में आया है कि दक्षिण एशिया के मुसलमानों ने कोरोना के खिलाफ इस जंग में धर्म को जान से भी पहले रखा है, और इसीलिए यहां के लोग धार्मिक गतिविधियों को कुछ समय के लिए रोकने से भी हिचकिचा रहे हैं।

यही हाल दक्षिण पूर्व एशिया के कुछ देशों का भी है। मलेशिया में एक मस्जिद ने कैसे कई देशों में कोरोना फैलाया, ये हम आपको कई बार बता चुके हैं। चाहे दक्षिण एशिया हो या फिर दक्षिण पूर्व एशिया, यहां इस्लाम पश्चिमी एशिया के देशों से ही आया, और यहां के लोग बाद में धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बने। लेकिन दूसरी ओर पश्चिमी एशिया के देश जैसे सऊदी अरब और UAE के लोगों ने कोरोना के खिलाफ जंग में अपनी जान को पहले रखा है, क्योंकि शायद इन्हें किसी को मुस्लिम धर्म के प्रति अपनी वफादारी दिखाने की कोई ज़रूरत नहीं है।

आज हर देश की सरकार अपने नागरिकों से घर में रहने के लिए ही कह रही है, लेकिन दक्षिण एशिया और साउथ ईस्ट एशिया के मुसलमानों को अब भी घर से बाहर निकलकर नमाज़ पढ़नी है। ऐसा ही हमें बीते शुक्रवार को देखने को मिला, जब पाकिस्तान और बांग्लादेश में प्रशासन को लोगों में घरों में रखना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया। जैसे ही पुलिस इन लोगों को रोकने जाती, ये तुरंत पुलिस पर ही हमला बोल देते।

भारत में भी तबलीगी जमात के संगठन ने भारत के कोरोना के खिलाफ युद्ध को कमजोर कर दिया। भारत में आज 30 प्रतिशत से ज़्यादा कोरोना के मामले तबलीगी जमात के कार्यक्रम से ही जुड़े हैं। जबकि भारत के मुसलमानों को कहा गया था कि वे अपनी मस्जिदों को कुछ समय के लिए बंद कर दें और घर से ही नमाज अदा करें।

अगर बात पश्चिमी एशियाई देशों की करें, तो इन्होंने बहुत जल्द ही अपने यहाँ मस्जिदों को बंद कर दिया। मस्जिद अल-हरम और मस्जिद अल-नबावी को बंद कर दिया गया। मक्का और मदीना की ये मस्जिदें मुसलमानों की आस्था का सबसे बड़ी प्रतीक मानी जाती हैं, लेकिन सऊदी अरब ने जान को पहले रखते हुए इन दोनों मस्जिदों को ही बंद करने का फैसला लिया।

दूसरी ओर दक्षिण पूर्व एशिया के देश लगातार अल्लाह की इबादत में ऐसे धार्मिक कार्यक्रम करते गए। उदाहरण के तौर पर मलेशिया में फरवरी के अंतिम सप्ताह में एक जलसा हुआ था जिसमें 1500 विदेशीयों सहित 16 हजार स्थानीय लोग शामिल हुए थे। इस चार दिवसीय मुस्लिम जनसभा को कुआलालंपुर के पेटलिंग मस्जिद में आयोजित किया गया था। मलेशिया में हुए कुल मामलों में से लगभग दो तिहाई मामलों के लिए इस जनसभा को जिम्मेदार ठहराया गया था, जो 27 फरवरी से 1 मार्च के बीच आयोजित की गई थी। यही कारण था कि दक्षिण पूर्व एशिया में कोरोना का प्रकोप एकाएक बढ़ा।

इस संगठन की जनसभाओं का दौर यही नहीं रुका बल्कि, मलेशिया में कोरोना के मामले मिलने के बाद भी तब्लीगी ने इन्डोनेशिया के South Sulawesi में जलसे का आयोजन किया जिसमें लगभग 8 हजार लोग शामिल हुए थे। इस जन सभा में शामिल हुए लोगों का कहना था कि हमे में से कोई करोना से नहीं डरता। हम सिर्फ अल्लाह से डरते हैं। भारत में मलेशिया से यह संक्रमण पहले भी आ चुका है। जहां तमिलनाडु के सलेम जिले और तेलंगाना से कोरोना वायरस के संक्रमण के मामले सामने आने पर इंडोनेशिया से आये कई मौलानाओं को जिला अस्पताल में भर्ती किया गया था।

मलेशिया और इन्डोनेशिया के बाद इस जमात ने पाकिस्तान में भी जमकर कोरोना फैलाया। मार्च महीने में लाहौर के रायविंड इलाके में हुए तब्लीगी जमात के कार्यक्रम में लाखों लोगों ने हिस्सा लिया था जिसमें करीब 80 देशों के मुस्लिम मौलाना भी शामिल हुए थे। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैसे कोरोना 80 देशों तक फैला होगा।

यह दर्शाता है कि कोरोना को लेकर दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण एशिया के देशों के मुसलमानों और पश्चिमी एशियाई देशों के मुसलमानों में कितना अंतर है। इस्लामिक धर्म अपनाने का नया-नया उत्साह और धर्म के प्रति वफादारी सिद्ध करने की लालसा ही पाकिस्तान और मलेशिया जैसे देशों में कोरोना को फैलाने का सबसे बड़ा कारण है।

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