चमगादड़ का सूप पीना, भिन्न-भिन्न प्रकार के साँप खाना चीन को एक व्यक्ति ने सिखाया, तभी फैला कोरोना

एक तरफ जहां पूरी दुनिया कोरोना की गिरफ्त में जकड़ती जा रही है, और हजारों की संख्या में लोग मरते जा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इस वायरस के जन्म में बड़ी भूमिका निभाने वाले चीन के वेट मार्केट्स दोबारा पहले की तरह काम करते दिखाई दे रहे हैं। दुनियाभर में 42 हज़ार लोगों की जान लेने वाले वायरस पर जीत की घोषणा के बाद चीन के हुबई प्रांत में जीवन दोबारा सामान्य होता जा रहा है।

इसी बीच कोरोना से लड़ने के लिए चीन में भालू के पित्त रस के इस्तेमाल को भी बढ़ावा दिया जा रहा है। किसी भी जानवर की लीवर द्वारा उत्पन्न किए जाने वाले फ्लूइड को पित्तरस कहते हैं। चीन में शुरू से ही चिकित्सक उपयोग के लिए जनजीवन का इस्तेमाल किया जाता रहा है। कोरोना के समय में भी तमाम चिंताओं को दूर रखकर वेट मार्केट्स को दोबारा खोलना और जनजीवन पर चीन की यह निर्भरता दिखाता है कि चीन की संस्कृति में इसका बहुत महत्व है। चीन में खान-पान के हालात पहले ऐसे नहीं थे पर ऐसा क्या हुआ जिसने चीन के खान-पान को ही बदल दिया?

इसे आप वर्ष 1958 से लेकर वर्ष 1962 तक चले चीन के Great Leap Forward के दौरान चले 4 Pest Campaign से जोड़कर भी देख सकते हैं। माओ जेडोंग के नेतृत्व में चली इस मुहिम के तहत मच्छर, मक्खी, चूहा और प्यारी मासूम गौरैया को मारने का लक्ष्य रखा गया था। तब लोगों में यह धारणा बनाई गयी थी कि इन चार जीवों से ही मनुष्यों में बीमारी फैलती है, और गौरैया अनाज खा कर नुकसान ही करती है।, इसीलिए इनका खात्मा बेहद आवश्यक है।

इसका कोई आंकड़ा मौजूद नहीं है कि इस अभियान के दौरान कितनी चिड़ियाँ मारी गयी थीं, लेकिन उस दौरान China की आबादी को देखते हुए यह अंदाज़ा तो लगाया ही जा सकता है कि तब लाखों की संख्या में गौरैया मारी गईं थीं, जिससे यह जीव चीन में लुप्त होने की कगार पर पहुँच गईं थीं।

लेकिन एक साल के अंदर ही चीन वासियों को यह आभास हो गया कि ये चिड़िया सिर्फ अनाज ही नहीं, बल्कि टिड्डो जैसे कीड़ों को भी खाती थीं। चिड़िया ना होने की वजह से कीड़े खेतों को नष्ट करने लगे और देखते ही देखते चीन के लोगों के पास खाने की कमी होने लगी। खेतों पर टिड्डो के हमले ने किसानों को बर्बाद कर दिया। भूख से लगभग 15 मिलियन लोग मर गए। कुछ एक्सपर्ट्स तो यह भी मानते हैं कि मरने वाले लोगों की असल संख्या 45 या 78 मिलियन भी हो सकती है।

सिर्फ इतना ही नहीं, भूख के मारे लोगों ने खाने के लिए एक दूसरे की हत्या तक करनी शुरू कर दी थी। जब चीन की सरकार अन्न से लोगों का पेट भरने में असफल होने लगी, तो लोगों को जनजीवों और जानवरों को खाने के लिए प्रेरित किया गया।

लोगों को घरों में जानवरों की farming करने की छूट दे दी गयी और इस प्रकार यह चीनी सभ्यता का हिस्सा बनता चला गया। लेकिन इसमें समस्या तब आई जब वर्ष 1988 में चीन ने Wildlife protection law बनाया। इसके तहत जनजीवन को लोगों की संपत्ति की बजाय राज्य की संपत्ति घोषित कर दिया गया। इसी के साथ-साथ कानून में यह भी शामिल कर दिया गया कि जनजीवों की फार्मिंग करने वाले लोगों की रक्षा करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी होगी। उसी के बाद से चीन में सरकार इन farmers को सुरक्षा प्रदान करती आई है और पिछले 4-5 दशकों से इसका खूब आर्थिक फायदा भी उठाती आई है।

आज बड़ी-बड़ी फ़ैक्टरियों में इन जनजीवों की खेती की जाती है और इन्हें वेट मार्केट्स में लाकर बेचा जाता है। जानवर को कई बार जीवित लाया जाता है तो कई बार मारकर। इन वेट मार्केट्स में कुत्ते, चिकन, सूअर, साँप आदि जानवरों को लाया जाता है और यहाँ इनके मृत शरीर और मनुष्यों के बीच सीधा संपर्क होता है। जिस जगह पर सभी जानवरों को काटा जाता है, वहाँ कई प्रकार के जानवरों का खून आपस में मिल जाता है। अगर कुछ जानवर बीमार हों, तो उनका अन्य मरे हुए जीवों और मनुष्यों के संपर्क में आना कोरोनावायरस जैसे खतरनाक वायरस की उत्पत्ति का कारण भी बन सकता है। वही कोरोनावायरस जिससे लाखों की संख्या में लोग ग्रसित हो चुके हैं।

चीन में पनपी इसी संस्कृति की आड़ में अवैध farming को भी काफी बढ़ावा मिला है। चीन में आज Tiger, Pangolins और Rhinoceros की अवैध तरीके से तस्करी की जाती है। चीन के इस बड़े अवैध उद्योग को सहारा देने के लिए भारत के पूर्वोत्तर राज्यों से भी समय-समय पर जनजीवों की अवैध तस्करी की खबरें सामने आती रहती हैं

आज चीन में मांस उद्योग इसी कारण बहुत बड़ा उद्योग बन चुका है। इस उद्योग के जरिये शरीर को मजबूत बनाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने के नाम पर कई तरह के जानवरों को लोगों को बेचा जाता है। चीन में किसी भी तरह का कोरोनावायरस सालों से चलते आ रहे इस करोड़ो-करोड़ो रुपयों के उद्योग को नहीं रोक सकता है, यही कारण है कि इतने बड़े खतरे के बावजूद हुबई में दोबारा इन वेट मार्केट्स में भीड़ नज़र आने लगी है।

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