WTO गया भाड़ में, कोरोना के बाद सभी देश दोस्तों को ही ट्रेड में फायदा देंगे, मतलब चीन का निपटना तय

ट्रेड के नियम, कानून और शर्तें अब हम बनाएँगे, WTO नहीं

“चीन ने कई सालों तक हमारा और अन्य देशों का फायदा उठाया है, वे अपने आप को विकासशील देश बोलते हैं, हम भी तो एक विकासशील देश हैं, अभी हमें और विकास करना है”, ये शब्द कल एक Press Conference करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहे। ट्रम्प ने साफ इशारा किया कि जिस प्रकार चीन WHO और WTO (World Trade Organization) के माध्यम से अमेरिका और अन्य देशों का नाजायज फायदा उठाता आया है, वह अब नहीं चलने वाला। इसका एक अर्थ यह भी निकलता है कि कोरोना के खत्म होने के बाद ट्रम्प उन देशों को व्यापार में प्राथमिकता देंगे जिन देशों के रिश्ते अमेरिका के साथ बेहतर हैं और उन देशों को नहीं जिन्हें WTO विकासशील बोलता है। इससे चीन जैसे देशों को बड़ा नुकसान होगा जबकि भारत जैसे देशों को फायदा।

अभी WTO सभी देशों को आर्थिक आधार पर “विकसित”, “विकासशील” और “पिछड़े” देशों की श्रेणी में विभाजित करता है। हैरानी की बात तो यह है कि अभी WTO के पास अलग-अलग श्रेणी में देशों को रखने के लिए कोई तय परिभाषा नहीं है, बल्कि सभी देश खुद अपने आप को इन श्रेणियों में रखते हैं। प्रक्रिया के मुताबिक कोई देश अपने आप को एक श्रेणी में रखता है और अगर बाकी देशों को इससे कोई आपत्ति है तो वे अपनी आपत्ति दर्ज कर सकते हैं।

अब अगर एक बार कोई देश विकासशील घोषित हो जाता है तो उसे कई फायदे मिलते हैं। उदाहरण के तौर पर :

ये सभी पॉइंट्स हमने WTO की आधिकारिक वेबसाइट से लिए हैं। अब सोचिए ये वो फायदे हैं जो चीन को तो मिलते हैं लेकिन अमेरिका को नहीं। इसीलिए अमेरिकी राष्ट्रपति अपने देश को भी विकासशील घोषित करवाना चाहते हैं। बता दें कि वर्ष 2001 में चीन WTO का सदस्य बना था जिसके बाद उसने WTO के नियमों का भरपूर फायदा उठाया और तेजी से आर्थिक तरक्की हासिल की। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने इसपर कहा “हमने उनको (चीन को) WTO में शामिल करवाया, उसके बाद से चीन ने हमारा सबसे ज़्यादा फायदा उठाया, उन्होंने जबरदस्त तरक्की हासिल की। मैं इसमें चीन को कोई दोष नहीं देना चाहता लेकिन हमारे सरकार वाले तब क्या कर रहे थे”।

इस बात की पूरी संभावना है कि कोरोना के बाद अमेरिका या अन्य देश WTO के मानकों को छोड़कर अपने द्विपक्षीय रिश्तों के आधार पर एक दूसरे को अपने-अपने बाज़ारों की पहुँच दे, और द्विपक्षीय रिश्तों के आधार पर ही एक दूसरे को लेकर घरेलू व्यापार संबंधी नियम बनाएँ। हालांकि, ट्रम्प पहले ही इसकी शुरुआत कर चुके हैं और चीन को इसके नुकसान उठाने पड़ चुके हैं। उदाहरण के तौर पर कोरोना से पहले चीन और अमेरिका के बीच पिछले एक साल से ज़्यादा समय से ट्रेड वॉर छिड़ी हुई थी , जिसके तहत अमेरिका और चीन ने एक दूसरे के देशों से आयात होने वाले सामान पर बड़े ऊंचे दरों पर आयात कर लगा दिया था। चीन और अमेरिका के बीच जारी ट्रेड वॉर का नतीजा यह निकला कि वर्ष 2018 में चीन द्वारा किए जा रहे व्यापार में भारी कमी देखने को मिली थी। साल 2018 का अंत आते आते जहां चीन के एक्सपोर्ट में 4.4 प्रतिशत की गिरावट देखने को मिली थी, तो वहीं चीन के इम्पोर्ट्स में 7.7 प्रतिशत की गिरावट दर्ज़ की गयी थी।

अब आप सोचिए अगर भविष्य में भी अमेरिका इसी तरह चीन पर ट्रेड वॉर के माध्यम से आर्थिक युद्ध थोपता रहेगा तो चीन का तेल निकलना तय है। इससे चीन को बड़ा नुकसान होगा, क्योंकि ट्रम्प अब किसी भी हालत में चीन को अमेरिका का नाजायज फायदा उठाने नहीं देंगे। वहीं भारत जैसे देश, जिनके अमेरिका के साथ संबंध काफी अच्छे हैं, उन्हें अमेरिकी नीतियों का सबसे बड़ा फायदा मिल सकता है। अभी पिछले वर्ष अमेरिका ने भारत को Generalized System of Preference (जीएसपी) देशों की सूची से बाहर कर दिया था, जिसके बाद से भारत के कुछ सामानों पर पहले से ज़्यादा आयात कर लगता है। अब भारत को HCQ डिप्लोमेसी के बाद दोबारा इस सूची में जगह मिल सकती है, वहीं भारतीय फार्मा कंपनियों को पहले ही अमेरिका के बाज़ार तक और ज़्यादा पहुँच मिल चुकी है। इससे स्पष्ट है कि अब से व्यापार नीति दो देशों के द्विपक्षीय रिश्तों के आधार पर ही बनाई जाएगी, डबल्यूटीओ या किसी अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठन के कहने पर नहीं।

Exit mobile version