उद्धव ठाकरे की कुर्सी जाने वाली है, रुको! भाजपा नहीं, अब संविधान खुद तख़्तापलट करेगा

बेचारा उद्धव! कोरोना ने भी इसके मजे ले लिए

उद्धव ठाकरे

लगता है उद्धव ठाकरे के दिन लद गए हैं। वे बतौर मुख्यमंत्री बस चंद दिनों के मेहमान है। पर ठहरिए, इस बार उन्हें हटाने के पीछे भाजपा नहीं, अपितु संविधान के कुछ प्रावधान है, जिनपर शायद ही उद्धव ठाकरे ने ध्यान देने का कष्ट किया हो।

उद्धव ठाकरे को जो 6 माह का समय मिला था, वह जल्द ही समाप्त होने वाला है। यदि उनके पास कोई उचित विकल्प नहीं है, तो जल्द ही उनके साथ से सत्ता रेत की भांति फिसल जाएगी। पर ऐसा क्यों हो रहा है? आइए जानते है इसके पीछे के प्रमुख कारण।

बतौर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने काफी उठापटक के बाद 28 नवंबर को बतौर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शपथ ली थी। उन्हें छह महीने के भीतर  तब या तो विधायक के तौर पर नियुक्त होना चाहिए था, या फिर विधान परिषद के सदस्य के तौर पर, परन्तु इन दोनों आवश्यकताओं में से किसी एक को भी वे पूरा नहीं कर पाए हैं।

संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार उद्धव को जो भी सुविधा अभी मिल रही है, वह 28 मई को समाप्त हो जाएगी। उद्धव शायद इस सोच में थे कि 26 मार्च को होने वाले राज्य सभा के उपचुनाव के साथ प्रस्तावित विधान परिषद के उपचुनावों में उन्हें भी जगह मिलेगी। परन्तु वुहान वायरस के इस प्रकोप को देखते हुए ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि निकट भविष्य में उद्धव को किसी प्रकार की सहूलियत मिलने वाली है।

बता दें कि उद्धव सरकार के अन्तर्गत महाराष्ट्र की हालत काफी खस्ताहाल हो चुकी है। वुहान वायरस के प्रकोप का सबसे घातक असर महाराष्ट्र, जहां पर 1500 से ज़्यादा लोग इस महामारी से संक्रमित हैं, और इनमें भी आधे से अधिक मामले तो केवल मुंबई से आ रहे हैं।

फलस्वरूप अब उद्धव ठाकरे मझधार में आकर फंस गए है। एक तो महाराष्ट्र को वुहान वायरस के दलदल में धकेलने के लिए उनपर पहले ही जनता आग बबूला है। दूसरी ओर अब महा विकास आघाड़ी के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह लग चुका है।

परन्तु इस संकट की घड़ी में भी उद्धव ठाकरे के लिए एक विकल्प उपलब्ध है, पर इसकी कोई उम्मीद नहीं है कि यह उद्धव को शत प्रतिशत सत्ता में बनाए रखेगी। यदि राज्यपाल चाहे तो राज्य की कैबिनेट के सुझावों पर अपने कोटे से दो विधायक नामांकित कर सकते हैं।

परन्तु यहां दो समस्याएं है। एक तो उद्धव का कार्यकाल 28 मई को समाप्त होने वाला है, और दूसरा कि राज्यपाल है पूर्व संघ प्रचारक और भाजपा नेता भगत सिंह कोश्यारी, जो पहले ही उद्धव सरकार की आंखों में नासूर हैं, और अंतिम निर्णय अब इनके हाथों में होगा।

जब तक महाराष्ट्र में महा विकास आघाड़ी की खिचड़ी सरकार है,  तब तक राज्य के भविष्य पर संशय बना रहेगा। परन्तु इस स्थिति में यदि किसी का सर्वाधिक नुकसान हो रहा है, तो वह है महाराष्ट्र की जनता का। जिस समय अधिक से अधिक स्वास्थ्य सुविधाओं की आवश्यकता है, उस समय उद्धव सरकार की घोर लापरवाही के कारण नौ निजी अस्पताल ठप पड़े हैं।  TFI पोस्ट ने इस विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट भी की है –

अब यह तो समय ही बताएगा कि उद्धव ठाकरे सत्ता की लालसा को तृप्त करने हेतु पद पर बने रहते हैं या फिर उन्हें सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया जाता है।

 

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