‘ये हमारा पर्ल हार्बर मोमेंट है’ US ने चीन को भेजा World War II लेवल की वार्निंग तो UK ने £351 Bn जुर्माना मांगा

'कोरोना वाले जिनपिंग की लंका लगने वाली है'

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द्वितीय विश्व युद्ध के बारे में तो आप सभी जानते ही होंगे। जर्मनी की आक्रामकता का खामियाजा पूरी दुनिया को भुगतना पड़ा था और अमेरिका तथा ब्रिटेन ने मिलकर जर्मनी और जापान जैसे देशों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। इस समय भी ऐसा लग रहा है कि विश्व एक बार फिर से गुटों में बंटता नजर आ रहा है लेकिन इस बार केंद्र में जर्मनी नहीं बल्कि चीन है।

चीन के वुहान शहर से निकला कोरोना ने पूरे विश्व में तबाही मचा रखी है और मृतकों की संख्या रोज़ बढ़ती ही जा रही है। लगभग सभी देश चीन से नाराज़ हो चुके हैं और इस कम्युनिस्ट देश से मुआवजा मांग रहे हैं जैसे युद्ध के बाद मांगा जाता है। अमेरिका, यूके इटली स्पेन फ्रांस और जर्मनी जैसे देशों को पहले और द्वितीय विश्व युद्ध से अधिक नुकसान हुआ है। पूरे विश्व का आंकड़ा देखा जाए तो यह 12 लाख पार कर चुका है जबकि 70 हजार से अधिक लोग काल के गाल में समा चुके हैं।

अमेरिका ने तो इसे इसकी तुलना पर्ल हार्बर से कर दी। वही पर्ल हार्बर जहां जापानियों ने द्वितीय विश्वयुद्ध के समय हमला कर दिया था। और फिर नाराज अमेरिका ने वो किया जो पहले कभी नहीं हुआ था और तब से आज तक दो देशों के बीच ऐसा हमला नहीं हुआ है।

अमेरिका ने जापान के दो शहरों हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु हमला कर पूरे शहर को राख में बदल दिया था। अमेरिका के सर्जन जनरल जेरोम्स एडम्स ने फॉक्स न्यूज़ को बताया कि, “यह हमारा पर्ल हार्बर मोमेंट है, हमारे लिए 9/11 का क्षण होने वाला है, केवल एक स्थान पर नहीं होने जा रहा है, यह पूरे देश में होने जा रहा है और मैं चाहता हूं कि पूरा अमेरिका इसे समझे।

पर्ल हार्बर से तुलना चीन के लिए एक चिंता का विषय हो सकता है, क्योंकि यह स्पष्ट कि इस कम्युनिस्ट देश ने अमेरिका पर सीधे हमला किया है, जैसे कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान दिसंबर, 1941 में जापान ने पर्ल हार्बर पर किया था। जेरोम एडम्स द्वारा दिए गए दोनों उदाहरणों यानि पर्ल हार्बर और 9/11 में अमेरिका ने अपने विरोधियों पर चौतरफा हमला किया था। एक तरह जहां पर्ल हार्बर के अमेरिकी नेवल बेस पर हमले के बाद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान वह सहयोगी देशों में शामिल हो गया.

वहीं दूसरी तरफ 9/11 के बाद अमेरिका ने आतंक के खिलाफ युद्ध’ शुरू किया। यह इस ओर भी ध्यान दिलाता है कि अमेरिका कोरोनावायरस बीमारी के लिए चीन को ही सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराएगा। चीन के खिलाफ इस अभियान में अमेरिका को कई सहयोगी मिल गए, क्योंकि पश्चिमी यूरोप के अधिकांश देश, जैसे यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस चीन से काफी नाराज है। यूनाइटेड किंगडम में किए गए शोध के अनुसार, कोरोना वायरस के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को 3.2 ट्रिलियन पाउंड की हानि हुई है जो भारत की वित्तीय वर्ष 2019 के जीडीपी से भी अधिक है और इसके लिए चीन को जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए।

ब्रिटेन की सत्तारूढ़ कंजरवेटिव पार्टी के 15 वरिष्ठ सदस्यों ने प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन को लिखा था जिसमें बीजिंग के साथ संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए कहा गया था, और इसके लिए जिम्मेदार चीन की कम्युनिस्ट सरकार को ठहरना था। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से मांग की है कि ब्रिटिश अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान के एवज में चीन से 351 बिलियन पाउंड के मुआवजे की मांग की जाए।

इस पर डेली मेल के पोलिटिकल एडिटर ने ट्वीट करते हुए लिखा कि ब्रिटेन को कोरोनोवायरस के मुआवजे में 351 बिलियन पाउंड के लिए चीन को अंतर्राष्ट्रीय अदालतों में घसीटना चाहिए।

ब्रिटेन पूरी तरह से चीन के खिलाफ दिखाई दे रहा है क्योंकि शाही परिवार से लेकर प्रधानमंत्री तक को कोरोना हो चुका है और कभी पूरब से पश्चिम तक शासन करने वाला यह देश जैसे थम सा गया हो।

यही हालत अन्य यूरोपीय देशों का भी है। सब कुछ तितर बितर हो चुका है, लोगों को आशा की किरण नहीं दिखाई दे रही है। दुनिया भर के देश कोरोना वायरस के लिए चीन और WHO  जिम्मेदार मान रहे हैं, और वास्तव में भी ऐसा ही है। चीनी सरकार द्वारा इसके प्रसार की जानकारी को दबाने के गैर-जिम्मेदार फैसलों के कारण यह दुनिया भर में पहुंच चुका है।

हालांकि, अब चीन ने आंशिक रूप से इस महामारी पर काबू पा लिया है और अपने फैक्ट्रियों को फिर से खोल दिया है, ताकि दुनिया के अन्य देशों को पीपीई और कई नया मेडिकल समान बेच सके। स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है कि चीन दुनिया के लिए बनाई गई बीमारी से मुनाफाखोरी कर रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका, नाटो गठबंधन जैसे वैश्विक महाशक्तियों को साथ आकार इस महामारी के लिए चीन को जिम्मेदार ठहराना चाहिए और उससे मुआवजे वसूल करने चाहिए, जैसे युद्ध के समय में होता है।

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