अमेरिका ने भारत की जिन फार्मा कंपनियों को बैन किया था, आज उसे HCQ के लिए बैन हटाना ही पड़ा

हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन

समय ही सबसे बलवान होता है। सभी का समय एक न एक दिन आता है। समय की मार ऐसी होती है कि शीर्ष पर बैठा व्यक्ति भी नीचे आ गिरता है और नीचे से व्यक्ति शीर्ष तक पहुँच जाता है। एक समय में भारत की फार्मा कंपनियों पर प्रतिबंध लगाने वाले अमेरिका और FDA को आज भारत की ही फार्मा कंपनियों से दवा की मांग करते हुए देखा जा सकता है। आज के समय में कोरोना ने चीन और यूरोप के बाद अगर सबसे अधिक नुकसान किया है तो वह अमेरिका ही है। हालांकि, अभी इस वायरस की दवा तो नहीं आई है लेकिन कोरोना के मरीजों को देखने वाले डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफों को हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन (Hydroxychloroquine) दवा देने की सिफ़ारिश की जा रही है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प इस दवा को गेम चेंजर बता रहे हैं। और भारत इस दवा का सबसे बड़ा एक्स्पोर्टर है।

इसी के मद्देनजर अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को स्वयं फोन कर भारत से इस दवा को मंगाने की बात करनी पड़ी। हालत यह हो गयी कि जिन फार्मा कंपनियों को अमेरिका की FDA ने पहले बैन किया था, उन्हें वह बैन हटाना पड़ा। 23 मार्च को ही खबर आई थी कि लगभग छह वर्षों के प्रतिबंध के बाद, यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन यानि FDA ने भारत में Ipca Laboratories की दो इकाइयों पर इम्पोर्ट अलर्ट को हटा दिया था, ताकि कोरोनावायरस संक्रमण के लिए क्लोरोक्वाइन की गोलियों की आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके। बता दें कि US FDA ने मध्य प्रदेश  के रतलाम में स्थित प्लांट पर जुलाई 2014 में प्रतिबंध लगाया था, जहां हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन के active pharmaceutical ingredients यानि API का उत्पादन किया जाता है।

यही नहीं US FDA ने इंदौर के विशेष आर्थिक क्षेत्र में स्थित, मध्य प्रदेश के पीथमपुर स्थित और गुजरात के सिलवासा में स्थित Ipca के निर्माण इकाई में उत्पादित हो रहे हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन सल्फेट टैबलेट के आयात की भी अनुमति दे दी है।

बता दें कि FDA ने कई भारतीय कंपनियों को अमेरिका से बैन किया हुआ है। इसके कई कारण हो सकते हैं लेकिन प्रमुख कारण यही है कि इन कंपनियों ने विश्व की फार्मा क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाया है और इनके कारण लोगों को सस्ती दरों पर दवा मिलनी शुरू हुई है। रैनबैक्सी से लेकर सन फार्मा जैसी कंपनियां अमेरिका में बैन है जिससे वे अमेरिकी मार्केट में अपनी दावा नहीं बेच पाते हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार पिछले वर्ष FDA ने भारत की फार्मा कंपनियों को 23 वार्निंग लेटर दिये थे। अमेरिका में हैल्थ केयर भारत की तुलना में महंगा है। हालांकि, ट्रम्प ने अमेरिका में सस्ती दवाओं के लिए ज़ोर दिया था। भारत जेनेरिक दवाओं का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है, जो कि 2018 में एफडीए द्वारा अनुमोदित सभी नई जेनरिक दवाओं का लगभग 40 प्रतिशत है। अब जब जरूरत पड़ी है तो खुद अमेरिका के राष्ट्रपति को फोन कर भारत से दवाओं की निर्यात पर से प्रतिबंध हटाने के लिए निवेदन करना पड़ा।

भारत, हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन (Hydroxychloroquine) का दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक है, जिसने वित्तीय वर्ष 2019 में 51 मिलियन डॉलर मूल्य की दवा का निर्यात किया था। यह देश से 19 बिलियन डॉलर फार्मा के क्षेत्र से होने वाले निर्यात का एक छोटा हिस्सा है। भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) के महासचिव सुदर्शन जैन के अनुसार, भारत दुनिया के 70 प्रतिशत हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन की आपूर्ति करता है।

हालांकि, वित्तीय वर्ष 2020 के फरवरी तक निर्यात 36 मिलियन डॉलर तक गिर गया था। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा इस दवा के लिए प्रचार करने के कारण, इस सस्ती दवा की वैश्विक मांग अचानक बढ़ गई है। ब्राजील और सार्क देशों ने भारत से दवा की मांग की है। यह भी जानना आवश्यक है कि केंद्र ने ही पहले ही Ipca Laboratories and Cadila Healthcare से 100 मिलियन टैबलेट को बनाने का ऑर्डर दे दिया था। निर्माताओं का दावा है कि भारतीय बाजार के लिए पर्याप्त स्टॉक है, और साथ ही भारत के पास इतनी दवा है कि वह इन दवाओं को  निर्यात कर सकता है। बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय स्तर पर आपूर्ति के बारे में चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। भारत आवश्यकता पड़ने पर प्रति माह लगभग 100 टन दवा बना सकता है, क्योंकि इस दवा के बनाने की क्षमता को आसानी से बढ़ाया जा सकता है।

ऐसे में अमेरिका ने भी भारत से अपने देश के लिए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन खरीदा है। ट्रम्प ने बताया कि कोरोनोवायरस महामारी से निपटने के लिए अमेरिका द्वारा खरीदे गए हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन की 29 मिलियन खुराक का एक बड़ा हिस्सा भारत का है। यानि अब देखा जा सकता है कि अमेरिका कोरोना के समय में भारत से  हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन मंगाने के लिए  इतना तत्पर है कि उसने Ipca पर लगे इम्पोर्ट अलर्ट भी हटा लिया हैं। भारत ने भी ऐसे समय में मदद कर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। ऐसे अब पूरा विश्व इस दवा के लिए भारत की ओर देख रहा है।

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