‘चाचा सो जाओ, जापानी तेल थोड़े सस्ता हुआ जो भावुक हो रहे’, अर्थशास्त्र के चैम्पियन शशि थरूर को Oil पर ट्वीट करना पड़ा भारी

शशि थरूर

PC: AajTak

देश में इच्छाधारी बुद्धिजीवियों की कोई कमी नहीं है। समय-समय पर ये लोग भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अपना टैलंट दिखाने से नहीं चूकते। ऐसे ही देश के एक बुद्धिजीवी हैं कांग्रेस के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर। कभी power grid एक्सपेर्ट, तो कभी CAA पर कानून के विशेषज्ञ शशि थरूर अब अर्थशास्त्र के चैम्पियन भी बन गए हैं। दरअसल, ट्विटर पर उन्होंने सरकार से सवाल पूछा कि जब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में WTI यानि वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट मार्केट में कच्चे तेल की कीमत में इतनी भारी गिरावट दर्ज की गयी है, तो लोगों को tax के माध्यम से लूटने वाली भारत सरकार पेट्रोल और डीजल के दाम कम क्यों नहीं कर रही है? इच्छाधारी बुद्धिजीवी शशि थरूर को उनके इस ट्वीट के बाद लोगों ने खूब ट्रोल किया।

शशि थरूर के ट्वीट के मुताबिक “जिस बेशर्म सरकार ने पिछले 6 सालों से लगातार देश के लोगों को लूटा है, क्या वह अब इसका फायदा आम लोगों तक पहुंचने देगी?”

दरअसल, अभी जिस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट मार्केट में कच्चे तेल के दाम शून्य से भी 37 डॉलर प्रति बैरल नीचे चले गए हैं, वह अमेरिकी क्रूड ऑइल मार्केट से संबन्धित है और भारत उस मार्केट से ऑयल लेता ही नहीं है।  भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड की सप्लाई पर है, ना कि डब्ल्यूटीआई पर। इसलिए भारत पर अमेरिकी क्रूड के नेगेटिव होने का खास असर नहीं पड़ेगा। ब्रेंट का दाम अब भी 20 डॉलर के ऊपर बना हुआ है। बता दें कि ब्रेंट  मार्केट में OPEC द्वारा निर्धारित मानकों के आधार पर तेल का दाम तय किया जाता है, तो वहीं WTI का संबंध सिर्फ अमेरिकी बाज़ार से होता है।

अमेरिकी बाजार में कच्चा तेल अगर मुफ्त भी हो जाता है तो भी भारत में पेट्रोल के दाम पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। असल में भारत में जो तेल आता है वह लंदन और खाड़ी देशों का एक मिश्रित पैकेज होता है जिसे इंडियन क्रूड बास्केट कहते हैं। इंडियन क्रूड बास्केट में करीब 80 फीसदी हिस्सा OPEC देशों का और बाकी लंदन ब्रेंट क्रूड तथा अन्य का होता है। इतना ही नहीं, दुनिया के करीब 75 फसदी तेल डिमांड का रेट ब्रेंट क्रूड से तय होता है। यानि  भारत के लिए ब्रेन्ट क्रूड ऑइल महत्वपूर्ण है ना कि WTI!

अब आपको बताते हैं कि आखिर बाज़ार में क्रूड ऑइल के दाम इतने कम कैसे हो गए हैं। क्रूड का भाव सप्लाई, डिमांड और क्वालिटी जैसे कई कारकों पर निर्भर करता है। कोविड-19 की वजह से लोग घरों में हैं। ऐसे में तेल की मांग घट गई है और बाजार में मांग से ज्यादा सप्लाई हो गई। ओवरसप्लाई की वजह से स्टोरेज कैपिसिटी भी फुल हो गई है। अभी आने वाले समय में हमें ब्रेंट ऑइल प्राइस में भी कमी देखने को मिल सकती है। हालांकि, भारत में हमें शायद ही इसका फायदा देखने को मिले। आमदनी कम होने और खर्चे ज़्यादा होने के कारण एक तो पहले ही सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ा हुआ है, ऐसे में वह क्रूड ऑइल के दाम कम होने का भरपूर फायदा उठाना चाहेगी। दूसरी बात यह भी है कि भारत के रुपये की कीमत में डॉलर के मुकाबले अधिक गिरावट देखने को मिली है, जिसके कारण भारत को अब ज़्यादा रुयये खर्च कर तेल खरीदना पड़ेगा।

ऐसे में शायद भारत के ग्राहकों को क्रूड ऑयल के दामों में कमी का फायदा ना मिले लेकिन इससे भारत की आर्थिक हालत को ज़रूर फायदा होगा, और सरकार को राजस्व इकट्ठा करने में मदद मिलेगी। शशि थरूर जैसे इच्छाधारी बुद्धिजीवियों को राजनीति के इतर राष्ट्रनीति के बारे में भी सोचना चाहिए और साथ-साथ crude oil बाज़ार से संबन्धित अपने ज्ञान को बढ़ाने पर विचार करना चाहिए।

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