‘पैसे दो, टैक्स भरो वरना क्या खाओगे’, गरीब हो रहे सऊदी अरब ने अपने नागरिकों को निचोड़ना शुरू किया

तेल व्यापार ठप पड़ने से सऊदी अरब कंगाली के कगार पर

सऊदी अरब

India.com

कोरोना ने विश्व के बड़े से बड़े देश और महाशक्ति को अपने घुटनो पर ला दिया है, चाहे अमेरिका हो या यूरोप। लेकिन इस कोरोना महामारी के बीच सबसे अधिक नुकसान तेल पर निर्भर खाड़ी देशों की अर्थव्यवस्था को हुआ है और अब वे बिखरने की कगार पर हैं। सऊदी अरब की हालत तो इतनी खराब हो चुकी है कि अब इस देश ने नुकसान की भरपाई अपने नागरिकों से ही करने का फैसला लिया है। सऊदी अरब (Saudi Arab) ने जरूरी चीजों पर  VAT यानि वैल्यू एडेड सर्विसेज तीन गुना करके 15 फीसदी करने का ऐलान किया है। आने वाले दिनों में खाड़ी के अन्य देश भी यही करने वाले हैं क्योंकि उन देशों की हालत सऊदी अरब से भी पतली है।

दुनिया भर में तेल का निर्यात कर मोटी कमाई करने वाले सऊदी अरब को कोरोना के संकट के चलते कच्चे तेल की कीमत में आई भारी गिरावट के कारण खर्च में बड़ी कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा है।

राजशाही शासन से चलने वाले सऊदी अरब ने 26 अरब डॉलर तक खर्च में कटौती करने का निर्णय लिया है। यही नहीं सऊदी अरब के नागरिकों को कॉस्ट ऑफ लिविंग अलाउंस भी नहीं मिल पाएगा, जिसे वहाँ की सरकार सालाना भत्ते के तौर पर देती है। सऊदी अरब के वित्त मंत्री ने कहा कि सोमवार को यह कठिन फैसले इसलिए लिए गए हैं ताकि देश की आर्थिक हालत को बेहतर और स्थायी बनाए रखा जा सके। इससे सरकारी खजाने पर पर सालाना 13.5 अरब डॉलर का बोझ पड़ता है।

बता दें कि ब्रेंट क्रूड तेल का भाव इस समय 30 डॉलर प्रति बैरल के आसपास चल रहा है। सऊदी अरब अपने राजस्व के लिए मोटे तौर पर कच्चे तेल के निर्यात पर ही निर्भर रहा है, लेकिन क्रूड ऑयल में बड़ी गिरावट के चलते कोरोना के संकट में सऊदी अरब की मुसीबतें बढ़ गई हैं। इसके अलावा इस खाड़ी देश को मक्का और मदीना में श्रद्धालुओं के आने पर रोक लगाने से दोहरा झटका लगा है और वहाँ से भी राजस्व नहीं आ रहा है।

एक रिपोर्ट के अनुसार सऊदी अरब सरकार के राजस्व में बीते साल की पहली तिमाही के मुकाबले 2020 में 22 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। सरकार का बजटीय घाटा 9 अरब डॉलर के भी पार पहुंच चुका है। पिछले साल की पहली तिमाही के मुकाबले कच्चे तेल की बिक्री से मिलने वाले राजस्व में 24 फीसदी तक की कमी देखने को मिली है। कोरोनावायरस के प्रकोप और तेल की कीमतों में गिरावट के बाद सऊदी शासकों का पूरा गणित बिगड़ चुका है। कुछ दिनों पहले ही सऊदी के प्रिंस MBS ने सरकार को ‘गैर-आवश्यक खर्च’ में कटौती करने के आदेश दिए थे। यानि अब सऊदी ने खर्च में कटौती तो शुरू कर दिया गया है लेकिन घाटे को बराबर करने के लिए टैक्स को बढ़ा कर अपने ही नागरिकों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी है।

ऐसा लगता है कि तेल पर आश्रित इस देश की अर्थव्यवस्था कुछ ही दिनों में ताश के पतों की तरह बिखरने वाली है। Saudi Arab की अर्थव्यवस्था की इस हालत के बाद विश्व के कोने-कोने में फैल रहे वहाबी कट्टरवाद पर भी लगाम लग सकता है क्योंकि लगभग सभी मुस्लिम मिशनरी को सऊदी अरब से फंड मिलता था और स्वयं सऊदी अरब भी यूरोप सहित कई देशों में मस्जिद और मदरसे बनवा चुका है जहां कट्टरवाद को पढ़ाया जाता है। अब इस तरह से Saudi Arab के अपने खर्चों में कटौती करने से पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में सऊदी अरब के रुपये पर होने वाले इस्लामिक सेमिनार की संख्या में भी गिरावट आएगी। इससे सऊदी के अन्य इस्लामी देशों पर से भी प्रभुत्व कम होगा।

कुल मिलाकर देखा जाए तो कोरोना Saudi Arab जैसे सिर्फ तेल पर निर्भर देशों के लिए दोहरी मार लेकर आया है। तेल की कीमत तो घट ही रही थी, साथ में कोरोना की वजह से लगाए गए लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था को गर्त में पहुंचा दिया है। इसका खामियाजा अब नागरिकों को टैक्स के रूप में चुकाना पड़ रहा है। कोरोना ने आज ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि सऊदी अरब एक सामान्य इस्लामिक देश बनने की राह पर है जहां से वापस पुनः लौटना मुश्किल होगा।

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