कोरोना के साथ-साथ बिहार में चमकी बुखार का कहर, नीतीश कुमार के कबाड़ Health System का धन्यवाद करें

यूपी ने चमकी बुखार को खत्म कर दिया लेकिन बिहार वर्षों से झेल रहा है

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PC: Patrika

बिहार में अभी कोरोना के मामले बढ़ ही रहे थे कि एक बार फिर से एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम (AES) की वापसी की खबरें आ रही हैं। पिछले साल AES से 167 बच्चों की मौत हुई थी और 11 जिलों से कुल 647 मामले सामने आए थे। यहाँ ध्यान देने वाली बात है कि बगल के राज्य उत्तर प्रदेश में भी AES ने अपने पांव पसारे थे लेकिन योगी आदित्यनाथ ने AES को काबू में कर लिया है और अब कोरोना के समय में भी बिहार के नितीश कुमार से अधिक सक्षमता से निपट रहे हैं।

दरअसल, बढ़ते कोरोना के मामलों के साथ बिहार के मुजफ्फरपुर और सीतामढ़ी जिलों में एक्यूट एन्सेफलाइटिस सिंड्रोम के कई मामलों की खबर सामने आई है। इक्नोमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार मुजफ्फरपुर के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (SKMCH) ने इस सत्र में AES के 20 से अधिक मामलों की रिपोर्ट की और एक 3 साल के बच्चे की मौत दर्ज की गई है। वहीं सीतामढ़ी में पांच मामले सामने आए हैं। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने मंगलवार को राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे से स्थिति की निगरानी करने के लिए कहा। सूत्रों के मुताबिक, बिहार सरकार ने कहा कि एईएस की शुरुआत इस साल की शुरुआत में हुई है।

1995 से ही चमकी बच्चों को लील रहा है

बता दें कि वर्ष 1995 से ही AES जिसे बिहार में चमकी बुखार भी कहा जाता है वह बिहार के मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी के अलावा कई जिलों जैसे वैशाली, दरभंगा, समस्तीपुर, बेगूसराय, दरभंगा, सुपौल और चंपारण पूर्व और पश्चिम में सुनने को आता रहा है।

फाइनेंसियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार अनुसार, इस बीमारी ने 2012 में मुजफ्फरपुर में कहर बरपाया, जिसमें 424 बच्चों की जान चली गई। वर्ष 2013 में, यह संख्या 222 थी, 2014 में,  इस क्षेत्र में 379 इंसेफेलाइटिस से संबंधित मौतें हुईं। 2015, 2016, 2017 और 2018 में, संख्या क्रमशः 90, 103, 54 और 33 थी।

2012 में चमकी पर रिसर्च लैब बनवाने जा रहे थे, आजतक उसका अता पता नहीं

पिछले साल से सत्ता पर काबिज नितीश कुमार की सरकार ने इस बीमारी के रोकथाम के लिए क्या कदम उठाए? और मुजफ्फरपुर में बड़ी संख्या में बच्चों की मौत के बाद भी इस जानलेवा बीमारी से निपटने के लिए उस क्षेत्र में अच्छी फैसिलिटी वाले अस्पताल क्यों नहीं है? इस सवाल का जवाब तो खुद नीतीश कुमार के पास भी नहीं होगा। उन्होंने स्थिति को नज़रअंदाज़ किया और सब कुछ ठीक होने का ढोंग किया है। वर्ष 2012 में, नितीश की सरकार ने मुजफ्फरपुर में एक रिसर्च लैब स्थापित करने का वादा किया था ताकि यह पता चल सके कि बच्चे इस जानलेवा बीमारी से कैसे और क्यों प्रभावित हो रहे हैं। लेकिन आज तक यह पेपर पर ही रह गया है।

कोरोना पर भी फेल, कैसे संभलेगा राज्य

ये खबर तब सामने आ रही है जब बिहार अभी कोरोना से जूझ रहा है, और अभी तक कुल 536 मामले सामने आ चुके हैं और दिन प्रतिदिन मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार चेन्नई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज (IMSc) के वैज्ञानिकों द्वारा कंप्यूटर मॉडलिंग परिणामों के नए विश्लेषण से पता चला है कि पश्विम बंगाल, बिहार और झारखंड में संयुक्त रूप से 29 अप्रैल को 1200 से भी कम मामले थे लेकिन इन तीन राज्यों में संक्रमण फैलने की दर उच्चतम थी। यानि बिहार में कोरोना के मामले और बढ़ने वाले हैं।

बिहार में जब भी किसी प्रकार की आपदा या विपदा आई है तो पुराने रिकॉर्ड को देख कर कोई भी समझ सकता है नीतीश कुमार ने कैसे घटिया तरीके से उन मामलों से निपटा। उदाहरण के लिए जापानी इंसेफेलाइटिस का प्रकोप, बाढ़ या डेंगू का प्रकोप, और अब कोरोना ये सभी नीतीश कुमार का आपदाओं से निपटने में अक्षमता को दिखाने के लिए काफी हैं।

पड़ोसी राज्य यूपी ने कंट्रोल कर लिया है चमकी बुखार को

अगर बगल के राज्य उत्तर प्रदेश की बात करें तो एक ओर योगी आदित्यनाथ की सरकार विषम परिस्थितियों के बावजूद अपने अनोखी शैली में कोरोना जैसी महामारी से लड़ रही है और उसे काबू में किया है। यही नहीं उत्तर प्रदेश ने उस चमकी बुखार को काफी हद तक नियंत्रण में कर लिया है, वहीं बिहार आज भी कोरोना काल में चमकी बुखार से जूझ रहा है।

अब नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार के सामने दो-दो बीमारियों की चुनौती है जिसे राज्य के जर्जर मेडिकल सुविधा के साथ लड़ना है। नितीश कुमार ने अपने कार्यकाल में बिहार को गर्त के अंधेरे में धकेल चुके हैं जहां से वापस आने के लिए सत्ता में बदलाव की आवश्यकता है।

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