बिहार, झारखंड और WB में Corona बम फटने जा रहा है, इन राज्यों में Corona रिप्रोडक्शन रेट बेहद डरावना

सुशासन बाबू, दीदी और सोरेन साहब अब नींद से जाग जाइये

बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, कोरोना,

भारत में कोरोना के इन्फेक्शन रेट में बदलाव देखने को मिल रहा है और थोड़े ही सही लेकिन ट्रेजेक्टरी नीचे आती दिखाई दे रही है। साथ ही डब्लिंग रेट यानि पॉज़िटिव मामलों के दोगुने होने का दर भी बढ़ रहा है। लेकिन भारत के 3 पूर्वी राज्यों यानि बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के बढ़ते मामले खतरे की घंटी बजा रहे हैं।

जनसत्ता की रिपोर्ट के अनुसार चेन्नई स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ मैथमेटिकल साइंसेज (IMSc) के वैज्ञानिकों द्वारा कंप्यूटर मॉडलिंग परिणामों के नए विश्लेषण से पता चला है कि पश्विम बंगाल, बिहार और झारखंड में संयुक्त रूप से 29 अप्रैल को 1200 से भी कम मामले थे लेकिन इन तीन राज्यों में संक्रमण फैलने की दर उच्चतम थी। बता दें कि यह आंकड़ा देश में पिछले कुछ दिनों में दर्ज किए गए नए मामले के आधार पर आंका गया है। इसमें पता चला है कि इन तीनों ही राज्यों में रिप्रोडक्शन रेट भी सबसे अधिक रही। रिप्रोडक्शन रेट का अर्थ यह कि पहले से संक्रमित व्यक्तियों द्वारा औसतन संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या।

रिपोर्ट के अनुसार बुधवार तक पश्चिम बंगाल में 696 लोगों को संक्रमण की पुष्टि हुई जबकि बिहार में 383 और झारखंड में ये संख्या 107 थी। इन तीनों मामलों को जोड़ लें तो यह राष्ट्रीय स्तर पर कोरोना वायरस के कुल मामलों की संख्या का चार फीसदी भी नहीं है। बुधवार शाम तक देश में संक्रमितों की संख्या 33000 के करीब थी। वहीं आज यह बढ़ कर क्रमश: 795, 425 और 110 हो चुकी है।

इसके उलट अगर अन्य राज्यों को देखा जाए तो महाराष्ट्र में 10498 कंफर्म केस थे और गुजरात में 4395 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी। दोनों राज्यों के आंकड़े देश में कुल संक्रमितों की संख्या के चालीस फीसदी से अधिक हैं। IMC में अपने सहयोगियों के साथ हैं संक्रमण की संख्या पर नजर रखने वाले सीताभरा सिन्हा बताते हैं-

इन राज्यों (पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड) में कोरोना के कुल मामलों की संख्या अभी काफी कम है, इसलिए ये एक तात्कालिक समस्या नहीं लगती। मगर मुझे लगता है कि उन्हें ध्यान देने की जरूरत है। पश्चिम बंगाल को विशेष रूप से ध्यान देने की जरुरत हैं क्योंकि वो तीनों राज्य के बीच में है। मार्च के आखिर में पश्चिम बंगाल में विकास दर के सपाट होने के संकेत मिल रहे थे मगर अब ये बिल्कुल अलग पथ पर लगता है। असल में अगर हम कम कठोर शैली में विकास कम होता देखते हैं तो ऐसा लगता है कि बंगाल तीन सप्ताह की अंतरात के साथ महाराष्ट्र की संख्या का अनुसरण कर रहा है।

यह एक नया खुलासा चिंताजनक है लेकिन जिस तरह से इन तीनों राज्यों की सरकारों ने काम किया है उससे अब कोरोना एक टाइम बॉम्ब बन चुका है।

अगर हम तीनों राज्यों के कामों को देखेंगे तो समझ आएगा कि इस तरह से इन तीनों राज्यों की राज्य सरकारों ने पूरे राज्य को खतरे में डाल दिया है।

ममता बनर्जी(पश्चिम बंगाल)

भारत में कोरोना का डबलिंग रेट अब बढ़कर 15 दिन हो चुका है , जिससे यह पता चलता है कि कि कैसे देश कोरोनोवायरस संक्रमण के प्रसार की श्रृंखला को तोड़ने में अभूतपूर्व रूप से सफल रहा है। हालांकि, पश्चिम बंगाल में कोरोनवायरस दोगुना दर 23 अप्रैल से 27 अप्रैल के बीच 7.13 दिनों के स्तर पर था यानि  सिर्फ 7 दिनों में ही कोरोना के मामले दोगुने होते जा रहे थे। यहाँ पर दोषी कोई और नहीं बल्कि ममता बनर्जी हैं क्योंकि ऐसे समय में किसी भी प्रकार की सूचना महत्वपूर्ण है और ममता ने अपनी छवि साफ दिखाने के लिए कोरोना के मामलों की सूचना दबाती रहीं।

शी जिनपिंगकी तरह ही ममता बनर्जी सरकार ने एक डॉक्टर को परेशान किया, जिसने खराब पीपीई की कमी के बारे बताने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया था। हृदयघात से मारे एक व्यक्ति को PPE के साथ दफनाया जाना हो या कोरोना से मरने वालों की संख्या निर्धारित करने वाली कमिटी का गठन करना हो या फिर the Inter-Ministerial Central Team (IMCT) को राज्य में घूमने से रोकना हो, ममता बनर्जी ने कोरोना वायरस को छिपाने का हरसंभव प्रयास किया।

नतीजा आज सभी के सामने है कि पश्चिम बंगाल में खतरे ही घंटी बज चुकी है।

नितीश कुमार (बिहार)

बिहार में जब भी किसी प्रकार की आपदा या विपदा आई है तो पुराने रिकॉर्ड को देख कर कोई भी समझ सकता है नीतीश कुमार ने कैसे घटिया तरीके से उन मामलों से निपटा। उदाहरण के लिए जापानी इंसेफेलाइटिस का प्रकोप, बाढ़ या डेंगू का प्रकोप, ये सभी नीतीश कुमार का आपदाओं से निपटने में अक्षमता को दिखाने के लिए काफी हैं।

COVID-19 जैसे महामारी में भी वैसी ही ढीली ढाली प्रतिक्रिया देखने को मिली। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली बिहार सरकार प्रारंभ में, बेहद ही धीमी गति से कोरोना के लक्षण वाले व्यक्तियों से नमूने एकत्रित करना शुरू किया था और परीक्षण के परिणामों में भी देरी हुई। इसके बाद यह खबर सामने आई कि 14-15 मार्च को 640 तबलिगी बिहार के नालंदा मरकज कर रहे थे। इसके बाद तो फिर कोरोना बिहार में इस तरह से फैला कि अब खतरे ही घंटी बज चुकी है और मामलों में खतरनाक स्तर से वृद्धि देखने को मिल रही है।

हेमंत सोरेन (झारखंड)

महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जैसे मुख्यमंत्रियों जिस तरह से घटिया काम किया उनके बीच झारखंड में हेमंत सोरेन का खराब प्रदर्शन पीछे रह गया और किसी के नजर में नहीं आया है। आज इस राज्य में कोरोना खतरनाक स्तर से बढ़ रहा है।

झारखंड ने कोरोनोवायरस के खिलाफ अपनी लड़ाई देर से शुरू नहीं की थी और अप्रैल की शुरुआत में केवल दो COVID-19 मामलों का पता लगाया था। अभी भी झारखंड सरकार प्रति मिलियन आबादी के लगभग 638 टेस्ट के राष्ट्रीय औसत के विपरीत, मात्र 261 प्रति मिलियन  टेस्ट कर रही है। झारखंड के 110 मामले गलत भी हो सकते हैं क्योंकि कई मामले तो सामने ही नहीं आए है क्योंकि टेस्ट ही नहीं हो रहा है।

इन तीनों ही राज्यों के बारे में बताते हुए सीताभरा सिन्हा कहते हैं कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद रिप्रोडक्शन दर 1.83 से कम हो गई थी, जो अब लगभग 1.29 (20 अप्रैल से 27 अप्रैल के लिए) है। मगर पश्चिम बंगाल में रिप्रोडक्शन दर 1.52 (18-27 अप्रैल तक) थी। इसका मतलब है कि राज्य में कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले हर 100 व्यक्ति ये महामारी दूसरे 152 लोगों के बीच फैला रहे थे। ऐसे ही बिहार रिप्रोडक्शन दर 2.3 और झारखंड में 1.87 है।

यानि कहा जाए कि झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार देश के अगले COVID-19 हॉटस्पॉट बन सकते हैं तो यह गलत नहीं होगा। इसका सारा दोष इन राज्यों की राजनीतिक नेतृत्व पर ही जाता है क्योंकि ये तीनों ही नेता पूरी तरह से विफल रहे हैं।

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