जब से चीन ने नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली की सरकार बनाई है तब से ही वे चीनी प्रवक्ता की तरह भारत विरोधी बयान दे रहे हैं। कुछ ही दिनों पहले नेपाल की सरकार ने भारत के हिस्सों को नेपाल का हिस्सा बता दिया था लेकिन ऐसा लगता है कि नेपाल की जनता को यह स्वीकार नहीं है।
नेपाल के डुमलिंग गाँव में कम्युनिस्ट पार्टी के कुछ कार्यकर्ता भारतीय क्षेत्र को अपना क्षेत्र बताने के लिए अपना झंडा फहराने गए थे परंतु नतीजा कुछ और हुआ। उन कम्युनिस्टों को डुमलिंग के निवासियो ने पहले तो समझाया लेकिन वे जब नहीं माने तो गांव वालों ने उन सभी को मार पीट कर भगा दिया।
News 18 की एक रिपोर्ट के अनुसार, 8 मई को नेपाल के एक कम्युनिस्ट संगठन नेत्रचन्द विप्लव पार्टी के 8 समर्थक नेपाल के लेकम गांव पालिका से लिपुलेख के लिए निकले थे। यह क्षेत्र भारत की सीमा में है और हाल ही में भारत ने धारचूला-लिपुलेख सड़क लिंक का उदघाटन किया था। परंतु बीजिंग की बातों में आ कर नेपाल की सरकार ने इसे अपने नक्शे में दिखाया है जिससे बार्डर और विवाद बढ़ गया है।
यह दल लिपुलेख में झंडा फहराकर भारतीय जमीन पर अपने दावे को पेश करने की कोशिश कर रहा था। कुछ दिनों के अभियान के बाद जब यह दल Dumling गांव पहुंचा तो वहां के लोगों ने इन्हें समझाने की कोशिश की लेकिन, ये 8 लोग अपनी मनमानी करने पर अड़े रहे। जिसके बाद ग्रामीणों और उनके बीच हाथपाई भी हो गई। आखिरकार गांववालों के भारी विरोध के बाद इन कम्युनिस्ट प्रचारकों को वापस लौटने के लिए मजबूर होना पड़ा। रिपोर्ट के अनुसार इस संगठन के लीडर जीवन बिष्ट ने तो ग्रामीणों पर लाठी-डंडों से हमला करने का भी आरोप लगाया है।
यहाँ यह समझने वाली बात है कि भले ही नेपाल की सरकार ने अपने आप को चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के हाथों बेच दिया है लेकिन नेपाल की जनता आज भी भारत के अपने सांस्कृतिक जुड़ाव को जानती है। एक आम नेपाली भी भारत के साथ रिश्तों को खराब करने का अर्थ समझता है और उनका चीन से कुछ भी लेना-देना नहीं है।
नेपाली नागरिकों को पता है कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी की कार्रवाई से भारत और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंध खराब हो सकते हैं। Dumling गांव के लोगों का मानना है कि भारत-नेपाल के बीच सदियों से संबंध रहे हैं। ऐसे में इस तरह की यात्रा से दोनों मुल्कों के रिश्तों में कड़वाहट पैदा होगी, जिसका खमियाजा लंबे समय तक बॉर्डर पर रहने वाले नेपालियों को भुगतना पड़ेगा।
इससे यह भी पता चलता है कि नेपाली कम्युनिस्ट भले ही बीजिंग के इशारे पर चल रहे हों परंतु उनके इस काम में नेपाल की जनता का समर्थन नहीं है। यह डुमलिंग में हुए कम्युनिस्टों की पिटाई से स्पष्ट पता चलता है।