‘भारत के साथ काम करूंगा’, चीन के गुलाम EU से ट्रम्प का मन भर गया है, इसीलिए भारत के साथ आना चाहते हैं

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कल अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने ट्विटर पर यह ऐलान किया कि वे भारत के साथ मिलकर वैक्सीन विकसित करने पर लगातार काम कर रहे हैं, और अमेरिका में मौजूद भारतीय मूल के लोग भी अमेरिका में हो रहे शोधों में अपना भरपूर योगदान दे रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प का यह ऐलान इसलिए भी हैरानी भरा था क्योंकि कुछ दिनों पहले ही वैक्सीन विकसित करने को लेकर ईयू द्वारा बुलाई गई बैठक में शामिल होने से अमेरिका ने साफ इंकार कर दिया था।

इससे स्पष्ट होता है कि अमेरिका ने कोरोना के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारत को अपने साथी के रूप में चुन लिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि EU ना सिर्फ चीन के खिलाफ कोई कड़ा रुख अपनाने से बच रहा है, बल्कि वह चीन के एक गुलाम की तरह बर्ताव भी कर रहा है। इसीलिए ट्रम्प ने अब EU को अपने दम पर छोड़ने का ही फैसला ले लिया है।

ट्रम्प ने कल एक प्रैस कॉफ्रेंस के दौरान कहा

“मैं कुछ ही समय पहले भारत से लौटा हूं और हम भारत के साथ मिलकर काम कर रहे हैं। अमेरिका में भारतीय बहुत बड़ी संख्या में हैं और आप जिन लोगों के बारे में बात कर रहे हैं उनमे से कई लोग टीका विकसित करने में जुटे हुए हैं”।

इसके साथ ही ट्रम्प ने कहा कि भारत और अमेरिका मिलकर इस साल के अंत तक वैक्सीन को विकसित कर लेंगे।

अब आपको बताते हैं कि ट्रम्प की ईयू से नाराजगी का सबसे बड़ा कारण क्या है। दरअसल, चीन को लेकर यूरोपियन यूनियन का रवैया शुरू से ही ढीला-ढाला रहा है। यूरोपियन यूनियन न सिर्फ समय-समय पर चीन के आगे झुका है, बल्कि Corona  के समय वह एकजुट होने की बजाय स्वयं ही टुकड़ों में बंट गया। चीन इसी बात का फायदा उठाकर न सिर्फ ईयू पर दबाव बना रहा है, बल्कि अब उसे अपने फायदे के लिए भी इस्तेमाल कर रहा है।

ईयू चीन को लेकर कई भागों में बंटा दिखाई दे रहा है। एक तरफ जहां फ्रांस जैसे देश चीन की आलोचना कर रहे हैं, और ताइवान के मुद्दे पर भी चीन को आड़े हाथों ले रहे हैं, तो वहीं कुछ दिनों पहले चीन में मौजूद यूरोपियन यूनियन के 27 सदस्य देशों के राजदूतों ने कोरोना वायरस पर चीन की प्रतिक्रिया की सराहना करते हुए एक पत्र लिखा था और उस पत्र में कम्युनिस्ट पार्टी का बखान किया गया था।

हालांकि, इस पत्र के एक पैराग्राफ में कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन का नाम लिखा गया था जो चीन को पसंद नहीं आया और चीन की मीडिया ने उस पत्र में से उस विशेष पैराग्राफ को हटाकर उस पत्र को सेंसर करके छाप दिया। चीन की इस हरकत पर यूरोपियन यूनियन ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई। यहां तक कि यूरोपियन यूनियन के प्रवक्ता ने एक बयान देकर कहा कि थोड़े बहुत बदलाव के बाद EU  के सभी देश उसे ऐसे ही छापने पर राजी हो गए थे।

अमेरिका को अब EU में कोई भविष्य नज़र नहीं आ रहा है, क्योंकि ऐसा होने की संभावना काफी बढ़ गयी है कि EU कोरोना के बाद बिखर जाये। कोरोना के समय सभी देश आपस में सहयोग की बात तो कर रहे हैं, लेकिन यूरोप में हमें ठीक इसके उलट देखने को मिल रहा है। कोरोना ने यूरोपियन यूनियन की एकता के दावों की पोल खोल दी है। इस संघ को अब बेकार और रद्दी समझा जा रहा है, और सबसे ज़्यादा इटली द्वारा, क्योंकि कोरोना ने सबसे ज़्यादा तबाही इसी देश में मचाई है।

दरअसल, Corona bonds के मामले पर यूरोपियन यूनियन और उसके सदस्य देश इटली के बीच विवाद देखने को मिल रहा है। इटली और स्पेन को कोरोना की वजह से सबसे बड़ी तबाही का मुंह देखने को मिला है और ऐसे समय में यूरोपीय संघ द्वारा इन देशों को अकेला छोड़ दिया गया है। यूरोपियन यूनियन ने अब तक अपने उद्योगों को बचाने के लिए तो बड़ी रकम खर्च करने का आश्वासन दिया है।

इसके साथ ही ईयू ने मंदी से बचने के लिए भी कई कदम उठाने की बात कही है, लेकिन इटली और फ्रांस जैसे देश चाहते हैं कि उन्हें ईयू से ज़्यादा समर्थन चाहिए और वे बार-बार अधिक कर्ज़ प्राप्त करने के लिए Corona-bonds जारी करने की बात कर रहे हैं। हालांकि, जर्मनी और कई EU के देशों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया है, जिससे इटली में EU का विरोध बढ़ता ही जा रहा है। ऐसे में कोरोना के बाद EU के टूटने की संभावना भी बढ़ गयी है।

वैक्सीन विकसित करने को लेकर अमेरिका का भारत का साथ देने का एक कारण यह भी हो सकता है कि भारत ही दुनिया में वैक्सीन बनाने का सबसे बड़ा केंद्र है और अगर भविष्य में वैक्सीन का आविष्कार होता है, तो उनका उत्पादन भारत में ही किया जाएगा। ट्रम्प को ईयू से अब कोई उम्मीद नहीं है और यही कारण है कि EU को छोड़ अब अमेरिका ने भारत को अपना साथी चुन लिया है।

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