वुहान वायरस के कारण भले देश की आम दिनचर्या रुक सी गई हो, पर जब बात अपराधियों पर लगाम लगाने की हो, तो अमित शाह के लिए मानो आराम शब्द कभी था ही नहीं। अभी भी पुलिस पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों के मुख्य दोषियों को पकड़ने के लिए दिन रात एक की हुई है। इसी कड़ी में दिल्ली पुलिस ने दो उपद्रवियों को हिरासत में लेने में सफल रही है।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने नताशा नरवाल और देवांगना कलिता नाम की दो महिला पत्रकारों को उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के मामले में गिरफ्तार किया था। इन दोनों के विरुद्ध 22 फरवरी की शाम को नागरिकता संशोधन एक्ट (सीएए) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के लिए स्थानीय निवासियों को भड़काने और उन्हें जाफराबाद मेट्रो स्टेशन पर इकट्ठा होने के लिए उकसाने का आरोप है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक-
“22 फरवरी की रात 10 बजे मेट्रो स्टेशन पर सीएए के खिलाफ विरोध करने वाले प्रदर्शनकारी एकत्र हुए। हमने सोचा कि वे सीलमपुर सर्विस लेन पर पुरानी साइट पर इकट्ठा होंगे, जो लगभग एक किलोमीटर दूर है”.
पर इन दोनों महिलाओं की गिरफ्तारी सुर्खियों में क्यों है? आखिर क्या कारण है कि इनको हिरासत में लिया जाना केंद्र सरकार के बदली हुई नीति का सूचक है? इसके दो प्रमुख कारण हैं – एक तो दोनों अभियुक्त एक अति नारीवादी संगठन ‘पिंजरा तोड़’ से हैं, और दूसरा यह कि गृहमंत्री अमित शाह दंगे एवं आतंकी घटनाओं में लिप्त अपराधियों की ढाल बनने वाले इन जेएनयू छाप एक्टिविस्टों के विरुद्ध मोर्चा खोल चुके हैं।
पर पिंजरा तोड़ क्या है, और इसका दिल्ली के दंगों को भड़काने से क्या संबंध है? यूं तो पिंजरा तोड़ को मुख्य रूप से दिल्ली के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में हॉस्टल कर्फ्यू के विरोध में शुरू किया गया था, परन्तु इस संगठन का मक़सद असल में अपनी वामपंथी विचारधारा को आगे बढ़ाना है।
मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो पिंजरा तोड़ का पूर्वोत्तर दिल्ली के दंगों को भड़काने में एक बहुत अहम भूमिका रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पुलिस का मानना है कि पिंजरा तोड़ के कार्यकर्ता 22 फरवरी की शाम सीलमपुर-जाफराबाद इलाके में मौजूद थे और धरना स्थल पर सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों को भड़काया कि वे अपने इस विरोध प्रदर्शन से जाफराबाद मेट्रो स्टेशन रोड को ब्लॉक करके सरकार को एक कड़ी चेतावनी दें।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि जफराबाद के छोटे धरने से एन्टी सीएए महिला प्रदर्शनकारियों को शिफ़्ट करने के पीछे दो कारण हो सकते हैं। एक शाहीन बाग में धरना समाप्त करने के लिए उच्चतम न्यायालय के आने की आशंका में एक वैकल्पिक विरोध स्थल बनाने का प्रयास और दूसरा अमेरिकी राष्ट्रपति के भारत दौरे में भारत की नकारात्मक छवि बनाने के लिए।
इतना ही नहीं, आरोपी नताशा नारवाल द वायर और न्यूज़लॉन्ड्री जैसे विशुद्ध वामपंथी पोर्टल्स के लिए कुछ लेख भी लिख चुकी हैं। इनके शीर्षक देख के ही आप समझ सकते हैं कि यह व्यक्ति भारत के लिए कितने घृणित और कुत्सित विचार रखती होंगी.
हालांकि यह कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए। आधुनिक भारत के इतिहास को यदि आप पलट कर देखें, तो आपको विश्वास हो जाएगा, कि ये कथित बुद्धिजीवी और नारीवादी वास्तव में किसके प्रति अधिक वफादार हैं। हमारे सैनिक किसी हमले के प्रत्युत्तर में मुंहतोड़ जवाब दें या फिर कोई भारतीय अपने संस्कृति पर गर्व करे, ये इन जैसों के लिए किसी घोर अपराध से कम नहीं होता। परन्तु इन्हीं नारीवादियों को तब सांप सूंघ जाता है, जब किसी इस्लामिक देश में जगह-जगह हिंदुओं के खिलाफ उपद्रव होता है और हमारी संस्कृति का अपमान होता है।
यदि विश्वास नहीं होता तो फेमिनिज्म इन इंडिया नामक पेज का ही उदाहरण देख लीजिए। आखिर कैसे कोई नारीवाद के नाम पर हिजाब का महिमामंडन कर सकता है, और वहीं उसी समय घूंघट की निंदा करते फिरते हैं? सच तो यही है कि जो व्यक्ति या संगठन नारीवादी होने का जितना दावा करता है, वास्तव में नारीवाद से उसका दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता।
ऐसे में दिल्ली पुलिस द्वारा पिंजरा तोड़ के सह संस्थापक सदस्यों को हिरासत में लेना एक स्पष्ट संदेश है। केंद्र सरकार को पता है समस्या की जड़ क्या है, और वह इस समस्या को देश से उखाड़ फेंकने के लिए दिन रात एक की हुई है. इसके साथ ही ये भी सिद्ध होता है कि अमित शाह को कमतर आंकने की भूल उनके विरोधी कतई ना करें, वरना बाद में उनके पास पछताने के अलावा कुछ नहीं रहेगा।