चीन के बिना, चीन के साथ और अब फिर चीन मुक्त दुनिया- जानें चीनी चक्र में उलझे देशों की कहानी

इतिहास एक बार फिर से अपने आप को दोहरा रहा

China

PC: Lima Charlie News

कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है, चाहे कितना भी समय लगे। यही अभी चीन के साथ हो रहा है। एक समय में विश्व के मामलों और व्यापार से दूर रहने वाले चीन को आज फिर से मजबूरन उसी एकांतवास में जाना पड़ रहा है। यानि 20 वीं शताब्दी में विकास के नए आयाम को छू कर ‘विश्व का फैक्ट्री’ बनने वाले चीन को 21वीं शताब्दी के दूसरे ही दशक में  फिर से विश्व के व्यापार से दूर होना पड़ रहा है। चीन के ही वुहान से फैलने वाले कोरोना ने आज यह हालात पैदा कर दिया है कि कोई भी देश चीन पर निर्भर नहीं रहना चाहता है और न ही चीन (China) से व्यापार करने में दिलचस्पी दिखा रहा है। अमेरिका, UK ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत जैसे देशों ने चीन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है और अब इन देशों को देखते हुए कई छोटे देश भी प्रेरणा ले रहे हैं।

दरअसल, अगर हम इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो 20 वी शताब्दी से 15 वीं शताब्दी तक चीन का वैश्विक व्यापार में नामोनिशान नहीं मिलता है। इस देश ने अपने आप को एक लिफाफे की भांति अंदर से बंद कर रखा था। तब चीन पूरी तरह से सांकृतिक और आर्थिक अंत:स्‍वभाव, केंद्रीकृत राजनीतिक प्रणाली, और एक व्यावसायिक विरोधी संस्कृति के साथ आगे बढ़ रहा था। उस दौरान चीन की अर्थव्यवस्था पश्चिमी देशों की तुलना में पिछड़ती चली गई। 19 वीं सदी में ट्रेड डील और पश्चिमी देशों के साम्राज्यवादी नीतियों के बावजूद चीनी अर्थव्यवस्था विश्व के लिए नहीं खुली थी। चीन (China) का व्यापार इसके ही बाकी हिस्सों के साथ होता था। प्रथम विश्व युद्ध और वैश्वीकरण से पहले वर्ष 1913 में चीन के सकल घरेलू उत्पाद यानि GDP में निर्यात का हिस्सा केवल 1.2 प्रतिशत था। इसके बाद 19 वीं शताब्दी के मध्य में ताइपिंग विद्रोह द्वितीय विश्व युद्ध, चीन का गृहयुद्ध और फिर 20 वीं शताब्दी में कम्युनिस्ट शासन के शुरुआती दौर तक चीन की अर्थव्यवस्था तबाह हो चुकी थी। चीन के लोग दाने-दाने के लिए तरसने लगे।

भुखमरी से 45 मिलियन से अधिक लोगों की जाने गयीं। इसके बाद चीन में आर्थिक सुधारों का दौर आया और धीरे-धीरे कुछ शर्तों पर विश्व के लिए खुलना प्रारम्भ हुआ। 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना की स्थापना के बाद 1953-1978 के बीच 6% की वार्षिक औसत विकास दर रहा, लेकिन चीन (China) को लगा कि यह काफी नहीं है। दिसंबर 1978 में कम्युनिस्ट पार्टी की 11 वीं केंद्रीय समिति के तीसरे सत्र में चीन ने अपने अस्थिर आर्थिक स्थिति से अधिक स्थिर सुधारों पर काम किया। इस आर्थिक क्रांति को लाने का श्रेय डांग श्याओपिंग को दिया जाता है जिन्होंने वर्ष 1978 में जिस आर्थिक क्रांति की शुरुआत की। चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए पहले इस बात को तय किया कि कहां विदेशी निवेश लगाना है और कहां नहीं। क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए विदेशी पूंजी को चीन में प्रवेश करने की अनुमति दी गई थी। यह तय करते ही चीन में विश्व के अन्य देशों के निवेश के लिए द्वार खुल गया और फिर एक के बाद एक लगातार निवेश हुए। इसके लिए उसने विशेष आर्थिक क्षेत्र का निर्माण किया और विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए चीन ने दक्षिणी तटीय प्रांतों को चुना।

आंकड़ों की बात करें तो चीन की जीडीपी में वर्ष 1978 से 2016 के बीच 3,230 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई। इसी दौरान 70 करोड़ लोगों को ग़रीबी रेखा से ऊपर लाया गया और 38.5 करोड़ लोग मध्य वर्ग में शामिल हुए। चीन का विदेशी व्यापार 17,500 फ़ीसदी बढ़ा और 2015 तक चीन (China) विदेशी व्यापार में दुनिया का अगुवा बनकर सामने आया। आज के समय में चीन दुनिया की सबसे बड़ी निर्यात अर्थव्यवस्था है। डांग श्याओपिंग अक्सर टू-कैट थिअरी का उल्लेख किया करते थे कि जब तक बिल्ली चूहे को पकड़ती है तब तक कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वो सफ़ेद है या काली। इसी का परिणाम था कि 1979 से 2010 तक, चीन (China) की औसत वार्षिक जीडीपी वृद्धि दर 9.91% थी, जो 1984 में 15.2% के ऐतिहासिक उच्च स्तर पर पहुंच गई थी। इससे एक समय में वैश्विक व्यापार से 100 कोस दूर रहने वाला चीन दुनिया की फैक्ट्री बन चुका था। विश्व के बड़े से बड़े देश चीन पर इस कदर से निर्भर हो चुके थे कि चीन के एक झटके से उनकी अर्थव्यवस्था में भूचाल आ सकता था। चीन (China) ने मैन्युफैक्चरिंग में 110 वर्षों से चले आ रहे अमेरिका के नेतृत्व को पछाड़ दिया है। दुनिया के कुल कच्चे स्टील के उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा चीन का है।

परंतु इस वर्ष जनवरी से ही फैले कोरोना वायरस ने विश्व के देशों को यह याद दिलाया है कि चीन जैसे देश पर अत्यधिक निर्भरता किस तरह उनके अर्थव्यवस्था को नीचे पटक सकती है। चीन (China) के वुहान से कोरोना फैलने के कारण सभी देश चीन के खिलाफ हो चुके हैं। वर्तमान आर्थिक स्थिति को 1939 के महामंदी के बाद से सबसे खराब दौर करार दिया गया है। IMF ने 2020 में वैश्विक वृद्धि दर को 3 प्रतिशत घटा दिया है। महामारी संकट के कारण 2020 के वैश्विक व्यापार में 13% से 32% की गिरावट आने की संभावना है और और यह गिरावट 2008 के वित्तीय संकट से अधिक हो सकती है।

वर्तमान आर्थिक स्थिति ने सभी बड़े आर्थिक देशों के साथ तनावों को जन्म दिया है और इसी तनाव के कारण सभी देश चीन को ग्लोबल सप्लाइ चेन से बाहर करने का प्लान भी बना चुके हैं। 30 अप्रैल को अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने भी यह कहा था कि अमेरिका, भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और वियतनाम जैसे देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है, ताकि सप्लाई चेन को दुरुस्त किया जा सके। प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए पोम्पियो ने कहा था– “हम चाहते हैं कि जल्द से जल्द वैश्विक सप्लाई चेन दुरुस्त हो और हम सभी देश अपनी पूरी क्षमता पर काम कर सकें, ताकि किसी भी देश के सामने दोबारा कभी ऐसी स्थिति पेश न हो। इसका एक उदाहरण हमें भारत में देखने को मिला जब भारत ने कोविड के मरीजों के उपचार के संबंध में ज़रूरी दवाइयों के एक्सपोर्ट पर से बैन हटाकर उन्हें दुनियाभर में एक्सपोर्ट किया।”

जापान का अपनी कंपनियों को चीन से बाहर आने के लिए कहना और अमेरिकी कंपनियों का चीन को छोड़कर भारत में अपना प्रोडक्शन शिफ्ट करना यह दर्शाता है कि अब दुनिया चीन को ग्लोबल सप्लाई चेन से दूर कर रही है। जापान कोरोना से पहले तक चीन से 148 बिलियन डॉलर का इम्पोर्ट करता था, लेकिन अब जापान अपनी कंपनियों को चीन (China) से बाहर जापान या फिर किसी अन्य देश में जाने को कह रहा है, जिसके बाद यहाँ से भी चीन (China) वैश्विक सप्लाई चेन से कट जाएगा। इससे चीन फिर से उसी अंधेरे में चला जाएगा जहां से उसे अपने लिए, अपनी जनता के लिए स्वयं रोजगार और भोजन का इंतजाम करना होगा। क्योंकि इसके बाद अब चीन के नागरिकों को कोई देश अपने यहाँ काम करने देगा इसकी उम्मीद कम है।

यानि कुल मिला कर इतिहास एक बार फिर से अपने आप को दोहरा रहा है। चीन एक समय में दुनिया से कटे रहने के बाद विश्व की फैक्ट्री बनने के बाद फिर से दुनिया से दूर हो रहा है।

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