जलवायु परिवर्तन और कोरोना के कहर ने कैसे भारत में टिड्डी आक्रमण को बुलावा दिया?

भारत में करोड़ो की फसल बर्बाद कर सकता है ये टिड्डी दल

टिड्डों

इस वर्ष पृथ्वी पर प्रकृति ने अपना कहर ढाया हुआ है, पहले कोरोना का तांडव और अब टिड्डों का हमला। कोरोना से तो अभी छुटकारा भी नहीं मिला था कि इन अरब देशों से आए टिड्डों ने पूर्व की ओर बढ़ते हुए भारत पर हमला कर दिया है। पिछले कुछ दिनों से भारत के उत्तरी राज्यों के किसान टिड्डों की मार झेल रहे हैं। पहले पंजाब, राजस्थान में फसलों को नुकसान पहुंचाने के बाद हमलावर टिड्डियों के आगरा पहुंचने की आशंका थी लेकिन ये झांसी पहुंचे और इसी तरह एक टिड्डी दल जयपुर पहुंच चुका है। ये टिड्डे 100 दो सौ की संख्या में नहीं है बल्कि लाखों की संख्या में हैं!

आखिर कहाँ से आए हैं ये टिड्डे और इनके इतनी बढ़ी संख्या का क्या कारण है?

इसका उत्तर है जलवायु परिवर्तन और फिर कोरोना का कहर के चलते लगाए गए लॉकडाउन।

रेगिस्तानी टिड्डियों को सऊदी अरब या अरब भू-भाग का मूल निवासी माना जा सकता है। मानसूनी हवाओं की वजह से वे उड़कर भारत के राजस्थान और गुजरात में हर साल पहुंचते हैं। एक सामान्य वर्ष में भारत में औसतन 10 टिड्डी हमले देखे जाते हैं। परंतु पिछले 2 वर्षों से सब कुछ उथल-पुथल हो गया है। सऊदी अरब ने 2018 में असामान्य रूप से दो चक्रवात तूफान यानि मई में मेकुनु और अक्टूबर में लुबान का सामना किया था जिसके बाद पूरे क्षेत्र में भारी बारिश हुई।

इससे कई रेगिस्तानों में झीलों का विकास हुआ। दुनिया के सबसे शुष्क और निर्जन क्षेत्रों में से एक गिने जाने वाले इस रेगिस्तानी क्षेत्र में यह 20 वर्षों में पहली बार हुआ था।

लेकिन यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि एक ही वर्ष में दो चक्रवात कैसे आया वह भी  खाड़ी के देशों में ?

विशेषज्ञों ने इसे जलवायु परिवर्तन  का एक कारण बताया। जिस अरब सागर में पहले हर पांच साल में एक चक्रवात तूफान आता था अब जलवायु परिवर्तन के कारण सागर के गरम होने और कम दबाव बनने से एक वर्ष में तीन-तीन चक्रवातों का सामना करना पड़ रहा है।

इन चक्रवात तूफानों के कारण दो परिवर्तन हुए। पहला इससे इन देशों के रेगिस्तान में नमी आने से इन टिड्डों के प्रजनन के लिए अनुकूल माहौल बन गया और दूसरा तूफान के आने से हवा की दिशा में अस्थायी रूप से परिवर्तन आया जिससे टिड्डो का झुंड पहले उत्तर और दक्षिण दोनों तरफ गया। पहले दक्षिण की ओर जाने वाला झुंड यमन गया और वहाँ से फिर अफ्रीका पहुंचा जहां इन टिड्डों ने भुखमरी जैसी हालात पैदा कर दिया। टिड्डो ने अफ्रीका के सोमालिया, इथयोपिया, केन्या में कहर मचाया।

वहीं दूसरी ओर उत्तर जाने वाला झुंड जून से दिसंबर के बीच लाल सागर पर करता हुआ ईरान पहुंचा और फिर वहाँ से पाकिस्तान होते हुए अब भारत के उत्तरी राज्यों तक पहुँच चुका है।

भारत में भी मानसून ने समय से पहले दस्तक दिया और राजस्थान के पूर्वी क्षेत्रों में बारिश हो गयी जिससे इन टिड्डों को फिर से प्रजनन का मौका मिल गया। बारिश से खेत हरे भरे हो गए जिससे टिड्डे आकर्षित हुए और हमला कर दिया।

यदि गर्मी और सर्दी के मौसम में वर्षा होती है, तो टिड्डी के बच्चे का निकलना और झुंड में आक्रमण करना स्वाभाविक है। इस वर्ष पाकिस्तान एवं अरब देशों में सर्दी के मौसम में वर्षा हुई है। साथ ही अप्रैल और मई में वर्षा होने से भी टिड्डियों का प्रजनन प्रभावित हुआ और टिड्डो के असामयिक झुंड भारत आए। पिछले वर्ष मानसून भी नवंबर के अंत तक रहा था। इसका मतलब हुआ कि है, 90 दिनों के जीवन काल में टिड्डियों को भारत में ही तीन बार प्रजनन करने के लिए अनुकूल माहौल मिला इसका मतलब यह भी था कि वे सामान्य से अधिक संख्या में 16,000 गुना अधिक थे।

कोरोना ने इस स्थिति में आग की में घी की तरह काम किया। पहले ईरान और पाकिस्तान सरकार मिल कर इन टिड्डिओं को रोकने के लिए कई तरह के उपाय करते थे। जिससे भारत आने वाले टिड्डिओं का दल इतना बड़ा नहीं होता था जो आज देखा जा रहा है। जनवरी में कोरोना के फैलने के बाद विश्व के लगभग सभी देश लॉकडाउन में चले गए। चीन के बाद ईरान कोरोना के केंद्र के रूप में उभरा था जिससे टिड्डों के खिलाफ उठाए जाने वाले कदम नहीं लिए जा सके और इन टिड्डों को खुली छुट मिल गयी। यही पाकिस्तान के साथ हुआ। इन दोनों देशों को पार करते हुए टिड्डों ने भारत पर ही हमला बोला।

टिड्डियों का एक छोटा दल एक दिन में लगभग 2500 व्यक्तियों का भोजन चट कर सकता है। यदि बड़े दल (झुंड) का प्रकोप हो जाए जो भुखमरी जैसी स्थिति पैदा हो जाती है। आमतौर पर झुण्ड में रहने वाली एक मादा टिड्डी 2-3 फलियों पर औसतन 60-80 अंडे प्रति फली देती है। अकेले रहने वाली मादा द्वारा 3-4 बार में औसतन 150-200 अंडे देती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक के बाद एक प्रजनन की समयवधि में कितने टिड्डे जन्म लेते होंगे। वयस्क टिड्डा सबसे अधिक हानिकारक और लंबी दूरी की यात्रा करने में सक्षम होते हैं।

राजस्थान में जहां इससे 16 जिले प्रभावित हैं, वहीं उत्तर प्रदेश में 17 जिले और मध्य प्रदेश के कई जिले इससे प्रभावित हैं। 27 वर्षों में यह सबसे खराब हमला है।

राजस्थान में गेहूं की फसल की कटाई लगभग पूरी हो गई है, लेकिन मई में बोई गई कपास की फसल, सब्जियों एवं चारे की फसलों पर टिड्डी दल हमला कर रहे हैं। अब तक राजस्थान, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, गुजरात और उत्तरप्रदेश में टिड्डी पहुंच चुकी है। अगर जल्द इनके खिलाफ एक्शन नहीं लिया गया तो भारत में भी कई करोड़ के फसल बर्बाद हो जाएंगे।

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