‘कोरोनावायरस से पहले ताइवान दुनिया के लिए कुछ भी नहीं था’, अब सभी देशों को प्यारा लगने लगा है

ताइवान के साथ भेदभाव करने वालों अभी तुरंत माफी मांगो

ताइवान

चीन में उत्पन्न हुए वुहान वायरस के कारण जहां पूरी दुनिया में हाहाकार मचा हुआ है, तो वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं, जिन्होंने स्पष्ट कर दिया है, कि बस – अब चीन की दादागिरी और नहीं चलेगी। इन्हीं में से एक देश है ताइवान, जिसने चीन के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया है, और अब उसके समर्थन में ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और यहां तक कि स्वयं अमेरिका भी सामने आया है।

आज चीन के बर्बर शासन के विरुद्ध ताइवान एक उम्मीद की किरण के तौर पर उभरा है। परन्तु क्या विश्व का ताइवान के प्रति यह व्यवहार शुरू से ही ऐसा था? शायद नहीं, और कुछ वर्षों पहले तक तो दुनिया के बड़े-बड़े देश यह मानने को तैयार नहीं थे कि Taiwan जैसा कोई देश भी है।

परन्तु यह भेदभाव कहां से शुरू हुआ? इसके लिए हमें जाना होगा 1949 में, जब माओ त्से तुंग के नेतृत्व में चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी ने तख्तापलट किया था। तब चीन एक लोकतांत्रिक गणराज्य था, जिसे कम्युनिस्ट शासन के आगमन के कारण ताइवान द्वीप पर स्थानांतरित होना पड़ा।

1955 तक कम्यूनिस्ट चीन को कोई मान्यता प्राप्त नहीं थी, जबकि ताइवान में स्थित चीनी गणराज्य को वास्तविक चीन माना जाता था। पर कम्युनिज्म के बढ़ते प्रभाव के साथ ना केवल चीन का ओहदा बढ़ा, अपितु Taiwan का वैश्विक राजनीति पर प्रभाव भी कम पड़ा। 21 वीं सदी आते आते चीन ने अपना प्रोपेगेंडा ऐसा फैला दिया कि लोग ताइवान को चीनी ताइपे के नाम से संबोधित करने लगे थे, और ताइवान को ओलंपिक खेलों में अपना झंडा फहराने की अनुमति तक नहीं थी।

आज जो अमेरिका ताइवान के लिए पलक पांवड़े बिछाए हुए है, कल तक वह WHO में ताइवान के प्रवेश करने में चीन द्वारा रोड़े अटकाए जाने पर आंखें मूंदे बैठा था। जब Taiwan विश्व भर को वुहान वायरस के बारे में अवगत करा रहा था, और चीन की भूमिका के बारे में भी दुनिया को आगाह कर रहा था, तो WHO के साथ-साथ अमेरिका और बाकी देश भी आंखें मूंदे बैठे थे, मानो कुछ भी बुरा नहीं हो रहा है।

हालांकि, अब पासा पलट गया है। अब ताइवान जो कहता है, उसे पूरी दुनिया को सुनना पड़ रहा है। वुहान वायरस से निपटने के मामले में ताइवान ने एक मिसाल पेश की है। जहां इटली, स्पेन और अमेरिका जैसे देशों में त्राहिमाम मचा हुआ है, वहां ताइवान से आज तक मात्र 440 मामले निकले है, जिसमें से सिर्फ 7 लोग इस बीमारी की भेंट चढ़ गए, और 380 से अधिक लोग ठीक भी हो चुके हैं।

कोरोना के समय में ताइवान ने हर वो चीज़ की है जिससे चीन और WHO का पारा चढ़ जाए। कोरोना फैलाने के बाद चीन ने PR को और बड़े स्तर पर ले जाने के लिए मास्क डिप्लोमेसी शुरू की और अन्य देशों को मास्क, वेंटिलेटर और अन्य मेडिकल सामान देने लगा। अपने PR के लिए चीन फेक न्यूज़ तक फैलाने से पीछे नहीं रहा और फेक अकाउंट से अपनी पीठ थपथपाता रहा। लेकिन कुछ ही दिनों में चीन के PR की पोल खुल गयी। कई देशों ने चीन से मिले खराब quality के मास्क और टेस्टिंग किट भी लौटा दिए। हालांकि, बाद में यह भी खुलासा हुआ कि चीन जिन देशों को मेडिकल सुविधा दे रहा था, उनसे या तो पैसे वसूल रहा था या फिर अपनी कंपनियों जैसे हुवावे के लिए रास्ता बना रहा था।न

इसके बाद ताइवान ने देखा कि यहाँ भी उसके पास मौका है तो उसने 10 मिलियन मास्क दान में देकर अन्य देशों को मदद करने का ऐलान कर दिया। इससे चीन की मास्क डिप्लोमेसी को तगड़ा झटका लगा और सभी देश ताइवान की वाह वाही करने लगे। ताइवान के विदेश मंत्रालय के अनुसार एक दिन में 13 मिलियन फेस मास्क का उत्पादन करने की क्षमता के साथ, ताइवान यूरोप को 7 मिलियन मास्क दान कर रहा है, जिसमें इटली, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी, बेल्जियम और यूके हैं और साथ ही अमेरिका के भी 2 मिलियन मास्क शामिल हैं। इस मदद के बाद यूरोपीय यूनियन सहित कई देशों ने ताइवान की खूब तारीफ की।

ताइवान ने अपने प्रतिकूल वातावरण में चीन के दबाव को सहकर जिस प्रकार कोरोना से टक्कर ली है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए, उतनी कम है। एक तरह से देखा जाए तो कोरोना ताइवान के लिए वरदान साबित हो रहा है, क्योंकि जिस तरह से इस देश को विश्व भर के देश से मान्यता मिल रही है वह कभी नहीं हुआ था। लेकिन इसके साथ ही उन देशों को भी ताइवान से वर्षों के भेदभाव के लिए क्षमा मांगनी चाहिए, जिनके मौन रहने के कारण ना केवल ताइवान का अपमान होता रहा, अपितु वुहान वायरस के प्रकोप से भी संसार को आज जूझना पड़ रहा है।

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