मोदी सरकार ने कृषि सुधार के लिए की बड़ी घोषणा, भारतीय किसानों में लाएगा बड़ा बदलाव

मास्टरस्ट्रोक!

मोदी सरकार लगता है चैन से बैठने वाली नहीं है। जब से वुहान वायरस ने भारत में पैर पसारे हैं, तब से मोदी सरकार लोगों को और स्वास्थ्य व्यवस्था को बचाने के साथ साथ अब अर्थव्यवस्था का भी ख्याल रख रही है। पहले श्रम सुधारों को बढ़ाव दिया गया, फिर चीन से बाहर निकल रही कम्पनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रेरित किया गया, और अब कृषि क्षेत्र में भी मोदी सरकार क्रांतिकारी बदलाव लाने जा रही है।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा घोषित 20 लाख करोड़ रुपए के आर्थिक पैकेज के घोषणा के तीसरे दिन केंद्र सरकार ने इन सुधारों पर अपनी सहमति जताई 

  1. Essential Commodities Act में संशोधन, जिससे कृषि सेक्टर में डी रेगुलेशन हो और सप्लाई और डिमांड की त्रुटियों को सुधारा जा सके
  2. APMC मंडी का एकाधिकार खत्म करते हुए किसानों को अपने हिसाब के दाम पर अपने उत्पाद बेचने की स्वतंत्रता देना
  3. एकमुश्त Agriculture Produce Price Support System, जिससे किसानों को उनके उत्पादों का एक निश्चित दाम मिल सके।

परन्तु यह बात यहीं पर खत्म नहीं होती। कृषि उद्योग की एक प्रतिस्पर्धी बाज़ार में परिवर्तित करने हेतु केंद्र सरकार जल्द ही एक कानून लेकर आ रही है, जिसमें किसानों को अपने हिसाब से दाम निर्धारित करने की स्वतंत्रता के साथ बैरियर मुक्त अंतर राज्यीय व्यापार और ई कॉमर्स की सुविधा मिलेगी।

परन्तु सच कहें तो सबसे व्यापक बदलाव Essential Commodities Act में प्रस्तावित संशोधन से होने वाला है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि सभी प्रकार के अनाज, तेल, मसाले, आलू और प्याज के मूल्य का निर्धारण डी रेगुलेट किया जाएगा, जिससे किसानों को इन उत्पादों का वास्तविक मूल्य मिल सके।

Essential Commodities Act ब्रिटिश राज का वो अभिशाप है, जिसे युद्धकाल में आवश्यक वस्तुओं के मूल्यों के निर्धारण के लिए उपयोग में लाया जाता था। अब कृषि उत्पादन कोई  स्थाई काम तो है नहीं, जो प्रतिदिन होता रहें। ये उचित मौसम, स्टोरेज क्षमता और आपूर्ति की व्यवस्था के ऊपर निर्भर है।

हालांकि Essential Commodities Act इस व्यवस्था को चौपट करने में कोई कसर नहीं छोड़ना है, क्योंकि इसके कंट्रोल ऑर्डर एक स्तर के बाद स्टॉकिंग को अपराध की श्रेणी में ही डाल देते हैं। इस दमनकारी एक्ट के चलते प्रशासन तय करती है कि किसान किस मूल्य पर अपना उत्पाद बेच सकता है, किस हद तक वे अपने उत्पाद को स्टॉक कर सकते हैं, और किसान इसके विरुद्ध अपनी आवाज़ तक नहीं उठा पाता।

परंतु अब और नहीं। अब स्वयं निर्मला सीतारमण ने घोषणा की है कि स्टॉक लिमिट बहुत ही आवश्यक हालत में ही लगाया जा सकेगा।

अब इस संशोधन से ना केवल किसानों को स्वतंत्रता मिली है, अपितु वे अपने हिसाब से आने उत्पाद का मूल्य तय कर पाएंगे।

कुछ भाजपा शासित राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश ने पहले ही उस दिशा में काफी अहम बदलाव किया है, क्योंकि उन्होंने एपीएमसी एक्ट में संशोधन किया, जिससे किसान प्रत्यक्ष रूप से व्यापारियों को अपने उत्पाद बेच सकता है।

इसके अलावा वित्तमंत्री ने ऑपरेशन ग्रीन के तहत सभी फल और सब्जियों को सब्सिडी युक्त आपूर्ति की व्यवस्था का एलान किया है। इसका मतलब है कि अधिक उत्पादन वाले इलाकों से कम उत्पादन वाली जगहों पर इनकी आपूर्ति, भंडारण और परिवहन के खर्च पर 50 फीसदी सब्सिडी दी जाएगी।

भारत के कुल एक्स्पोर्ट्स का लगभग 13 प्रतिशत हिस्सा कृषि उद्योग के उत्पादों से जुड़ा है। ऐसे में उम्मीद है कि इस वर्ष यह प्रतिशत बड़ा उछाल मार सकता है क्योंकि भारत अपने कृषि उत्पादों को जमकर एक्सपोर्ट कर सकता है।

अब स्पष्ट हो गया है कि चाहे वह व्यापार की बात हो या फिर अर्थव्यवस्था की, हर क्षेत्र में इस वर्ष कृषि उद्योग ही आर्थिक तौर पर भारत की डूबती नैया को बचा सकता है। आज भारत के सभी लोगों और अन्य देशों को घर बैठे खाने को मिल रहा है, तो वह दूर किसी खेत में पसीना बहाते किसान की मेहनत का ही फल है। कृषि उद्योग ही भारत का पेट पालता आया है और आज कोरोना के संकट में भी कृषि उद्योग ही देश को संभाले खड़ा है, इसीलिए वित्त मंत्री ने इन व्यापक बदलाव से सिद्ध कर दिया है कि अब भारतीय अर्थव्यवस्था के कायाकल्प में ज़्यादा समय शेष नहीं है।

 

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