चीन के कब्जे में जी रहा है मकाउ, आजाद हो सकता है, बस उसे भी त्साइ इंग-वेन की तरह नेता चाहिए

वर्षों से मकाउ पर राज कर रहा है चीन!

मकाउ

वर्षों से मकाउ पर राज कर रहा है चीन!

चीन बार-बार Macao (मकाउ) का उदाहरण देकर अपने “वन कंट्री टू सिस्टम” को बढ़ावा देता है और यह दावा करता है कि उसके इस तंत्र से लोगों को कोई परेशानी नहीं होती है। बता दें कि हॉन्ग कॉन्ग की तरह ही मकाउ को भी चीन का विशेष प्रशासनिक क्षेत्र माना जाता है, जिसे एक समझौते के तहत वर्ष 1999 में पुर्तगाल ने चीन को सौंप दिया था।

हॉन्ग कॉन्ग के बेसिक लॉ में बदलाव को लेकर चीनी कम्युनिस्ट पार्टी को दुनियाभर के देशों की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, चीन का इस मुद्दे पर यही विचार है कि उसके “वन कंट्री टू सिस्टम” के तहत हॉन्ग कॉन्ग की राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए ही चीन द्वारा ऐसा किया जा रहा है।

पुर्तगाली कॉलोनी रहने के बावजूद मकाउ पर पुर्तगाली संस्कृति का बेहद ही कम प्रभाव रहा है, और यही बड़ा कारण रहा है कि मकाउ ने कभी खुलकर चीन की दमनकारी नीतियों का विरोध नहीं किया। आज चीन हॉन्ग कॉन्ग के बेसिक लॉ में जो बदलाव करने जा रहा है, वह वर्ष 2009 में चीन मकाउ में पहले ही कर चुका है।

मकाउ को अब चीन की गुलामी की आदत हो गयी है

एक तरफ जहां हॉन्ग कॉन्ग में चीन के इस प्रस्ताव के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध देखने को मिल रहे हैं, वर्ष 2009 में मकाउ में कोई भी विरोध प्रदर्शन देखने को नहीं मिला।

मकाउ को अब चीन की गुलामी की आदत हो गयी है। इसका एक बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि मकाउ में कभी ताइवान की साहसिक नेता साइ इंग वेन जैसा कोई नेता भी नहीं उभरा।मकाउ के जो लोग चीन से छुटकारा पाना भी चाहते होंगे, उन्हें कभी अपना विरोध प्रकट करने का मौका ही नहीं मिला। अगर उनके पास साइ जैसा नेता होता, तो शायद आज मकाउ के लोग भी आज़ादी हासिल कर चुके होते।

मकाउ का नेतृत्व इतना कमजोर है कि अब जब चीन ने हॉन्ग कॉन्ग के बेसिक लॉ में बदलाव करने का प्रस्ताव सामने रखा है, तो मकाउ के नेता Ho lat seng ने चीन का समर्थन करने में देर नहीं लगाई। मकाउ को ना सिर्फ आज हॉन्ग कॉन्ग के साथ खड़े होने की ज़रूरत है, बल्कि उसे अपनी स्वतन्त्रता के लिए लड़ाई लड़ने की भी आवश्यकता है। इसके लिए मकाउ ताइवान की नेता साइ इंग से प्रेरणा ले सकते हैं।

साइ के नेतृत्व में ताइवान को दुनियाभर से जमकर कूटनीतिक समर्थन मिल रहा है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यहाँ तक कि सांकेतिक रूप से अब भारत ने ताइवान की स्वतन्त्रता का समर्थन कर दिया है। चीन का खुलकर विरोध करने में साइ ने कोई कसर भी नहीं छोड़ी है। देखा जाए तो ताइवान के अचानक से वैश्विक स्तर पर दिखाई देने का एक मात्र कारण राष्ट्रपति साइ इंग वेन हैं।

उनके कार्यकाल से पहले ताइवान ने पूरी तरह से चीन के सामने समर्पण कर दिया था और अपने आप को चीन का ही एक राज्य समझने लगा था। हालांकि, आज ताइवान को वैश्विक स्तर अपने समर्थन का पूरा यकीन है। इसके लिए ताइवान ने साइ के नेतृत्व में बहुत मेहनत भी की है।

ताइवान की नेता साइ ने भी चीन को सीधे शब्दों में धमकी दे दी है

अब जब चीन ने हॉन्ग कॉन्ग के बेसिक लॉ में बदलाव करने की बात कही है, तो ताइवान की नेता साइ ने भी चीन को सीधे शब्दों में धमकी दे दी है कि अगर चीन ऐसा कदम उठाता है, तो वह हॉन्ग कॉन्ग के special status से जुड़े क़ानूनों को रद्द कर Hong-Kong के क्रांतिकारियों को शरण देने के लिए नया कानून पारित करेंगी। यह ताइवान का सबसे नया और सबसे बड़ा चीन विरोधी कदम माना जा रहा है, जो दिखाता है कि ताइवान की नेता किसी भी मुद्दे पर चीन से भिड़-जाने को तैयार हैं।

आज मकाउ और हॉन्ग कॉन्ग को भी साइ की तरह ही अपने अधिकारों की तरह लड़ने की ज़रूरत है। अगर ऐसा होता है तो मकाउ और हॉन्ग कॉन्ग को भी जल्द ही चीन से छुटकारा मिल सकता है।

Exit mobile version