वुहान वायरस ने एक ओर जहां चीन की पोल खोल कर रख दी है, तो वहीं दुनिया भर की कंपनियां अब इस वैश्विक फैक्ट्री से दूर जाना चाहती है। ऐसे में भला मोदी सरकार इतने सुनहरे अवसर को भला हाथ से कैसे जाने दे सकती है। अब उन्होंने गॉडफादर के उस अमर डायलॉग को चरितार्थ किया है, जहां डॉन वीटो कॉर्लियोन कहते हैं, “मैं उसे ऐसा प्रस्ताव दूंगा जो वह अस्वीकार नहीं कर पाएगा” (I’m gonna make him an offer he can’t refuse)
केंद्र सरकार ने चीन से निकलने वाली विदेशी कम्पनियों को यह प्रस्ताव दिया है कि यदि वे भारत आते हैं, तो उन्हें इतनी भूमि दी जाएगी, जिसमें लक्जेमबर्ग जैसे दो देश समा सके। जी हां, केंद्र सरकार लक्जेमबर्ग जैसे देश के दोगुने साइज़ वाली भूमि का प्रस्ताव दे रही है। मोदी सरकार द्वारा उठाए जा रहे इस कदम की जितनी सराहाना की जाए कम है क्योंकि पहले की तुलना में अब विदेशी कंपनियों को भारत में स्थापित होने के लिए न लम्बे इंतजार करने आवश्यकता है और न ही उन्हें बड़े प्रोसीजर में फंसकर विमुख होना पड़ेगा।
इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत एक विशाल लैंड पूल विकसित कर रहा है, ताकि वह चीन से निकलने वाली विदेशी कम्पनियों को भारत लुभा सके। इसके लिए देशभर में 45,0000 से ज़्यादा हेक्टेयर क्षेत्र को चिन्हित भी कर लिया है। ये भूमि गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे आर्थिक दृष्टि से अहम राज्यों में स्थित भी है। इन राज्यों में ना केवल विदेशी कम्पनियों को लुभाने की क्षमता है अपितु यहां भूमि अधिग्रहण के लिए अधिक समस्या भी नहीं होगी।
उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश अमेरिकी, जापानी और कोरियाई कंपनियों के साथ बातचीत में जुटा है। मोदी सरकार को इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करना है कि भूमि के लिए आवश्यक अधिग्रहण और अन्य कार्यों में कोई बाधा ना उत्पन्न हो। हम सभी ने देखा है कि कैसे वामपंथी बुद्धिजीवियों और उनके सुनियोजित विरोध प्रदर्शनों के कारण महाराष्ट्र और तमिलनाडु में कई अहम प्रोजेक्ट या तो ठप पड़ गए हैं या फिर अधर में लटके हैं।
इस दिशा में वे उत्तर प्रदेश के उदाहरण से सीख ले सकते हैं, जहां योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में राज्य सरकार ने विदेशी कम्पनियों के लिए हर प्रकार की सुविधा प्रदान की है। इतना ही नहीं, भूमि अधिग्रहण और राज्य की कानून व्यवस्था पर भी योगी सरकार के तेवर काफी सख्त है, क्योंकि वे नहीं चाहते कि उत्तर प्रदेश के विकास से जुड़ा कोई प्रोजेक्ट वामपंथी दलों की भेंट चढ़ जाए।
उदाहरण के लिए कोरिया चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (KCCI) के अध्यक्ष योंगमैन पार्क ने यूपी के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) और निर्यात प्रोत्साहन मंत्री, सिद्धार्थ नाथ सिंह को बताया है। उन्होंने कहा कि चीन से बाहर जाने की तलाश में कोरियाई इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता, उत्तर प्रदेश में निवेश करने के लिए उत्सुक हैं।
कोरिया चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (KCCI) के अध्यक्ष योंगमैन पार्क ने यूपी के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) और निर्यात प्रोत्साहन मंत्री, सिद्धार्थ नाथ सिंह को बताया है। उन्होंने कहा कि चीन से बाहर जाने की तलाश में कोरियाई इलेक्ट्रॉनिक्स निर्माता, उत्तर प्रदेश में निवेश करने के लिए उत्सुक हैं। KCCI कोरिया का सबसे पुराना और सबसे बड़ा व्यावसायिक संगठन है, इसलिए इस बातचीत की अहमियत बहुत मायने रखती है।
हाल ही में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक वेबिनार का भी आयोजन किया था जिसमें कई अमेरिकी कंपनियों ने हिस्सा लिया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने इन कंपनियों को लुभाने का कोई मौका नहीं छोड़ा था।
बता दें कि पिछले महीने, मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने अधिकारियों को आर्थिक रणनीति तैयार करने के निर्देश दिए थे, जिसमें प्रमुख औद्योगिक देशों से निवेश आकर्षित करना शामिल था। उन्होंने यूपी के औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना और MSME मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह से इन देशों के राजदूतों के साथ बातचीतकी प्रक्रिया शुरू करने को कहा था।
वास्तव में, राज्य सरकार ने मुख्य रूप से जापान, दक्षिण कोरिया, अमेरिका, यूरोपीय संघ आदि के आधार पर ऐसे निगमों की पहचान करने की प्रक्रिया शुरू की है, ताकि उन्हें लुभाने के लिए एक लक्षित रणनीति तैयार की जा सके।
अब दस क्षेत्र ऐसे चुने गए हैं, जिसके लिए विदेशी निवेश और केंद्र सरकार की वर्तमान नीति बहुत आवश्यक है। इनमें प्रमुख हैं इलेक्ट्रिकल, फार्मा क्षेत्र, मेडिकल डिवाइस, इलेक्ट्रॉनिक्स, हैवी इंजीनियरिंग, सोलर इक्विपमेंट, फूड प्रोसेसिंग, केमिकल और टेक्सटाइल्स इत्यादि।
भारत अब विदेशी कम्पनियों को लुभाने के लिए एक अहम पर कठिन यात्रा पर निकल चुका है, परन्तु जिस तरह से मोदी सरकार ने तैयारियां की है, उससे देखकर तो साफ लगता है कि केंद्र सरकार अब किसी भी स्थिति में। पीछे नहीं हटने वाली और वुहान वायरस के बाद की आर्थिक चुनौतियों के लिए वे पूरी तरह से तैयार हैं।