भारत ने एक बार फिर से WHO को आईना दिखाते हुए HCQ के उपयोग को जारी रखने का सुझाव दिया है। ICMR के इस फैसले का समर्थन देश के सभी बड़े शोधकर्ता कर रहे हैं। काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) के महानिदेशक, शेखर मंडे ने बुधवार को कहा है कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने हाइड्रोक्सी क्लोरोरोक्वीन (HCQ) के बारे में जो निष्कर्ष निकाला है उस पर भरोसा किया जाना चाहिए।
बता दें कि जब से कोरोना शुरू हुआ है तब से ही WHO ने पूरी दुनिया को अंधेरे में रखा जिसका खामियाजा आज सभी देशों को भुगतना पड़ा है। अभी भी WHO अपने उसी रवैये से बाज नहीं आ रहा है। अब उसने HCQ पर सवाल उठाते हुए इसका प्रयोग न करने को कहा है। वहीं दूसरी ओर इंडियन रिसर्च काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने मंगलवार को कहा कि भारतीय शोधकर्ताओं को HCQ का कोई बड़ा साइड-इफेक्ट नहीं मिला है और इसका इस्तेमाल COVID-19 से बचाव के रूप में जारी रखा जाना चाहिए।
गौरतलब है कि WHO ने रविवार को हाइड्रोक्सी क्लोरोरोक्वीन के क्लिनिकल परीक्षण पर अस्थायी रोक लगा दी थी। WHO ने यह निर्णय ऑनलाइन मेडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के बाद लिया जिसमें यह पाया गया कि HCQ दवा के उपयोग से मौत का खतरा 34 प्रतिशत और गंभीर heart arrhythmias खतरा 137 प्रतिशत बढ़ा है।
हालांकि, पहले की तरह ही मोदी सरकार ने एक बार फिर से ICMR पर अपना भरोसा बनाए रखा है और शुक्रवार को गैर-स्वास्थ्य सेवा फ्रंटलाइन श्रमिकों द्वारा भी अब HCQ के रोगनिरोधी उपयोग के लिए लिस्ट में जोड़ दिया गया है। इसके उल्ट भारत केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने WHO को उसके निर्णय को लेकर 25 मई की रात को एक ईमेल भी भेजा। रिपोर्ट के अनुसार एक सूत्र ने बताया कि, “WHO को अवगत कराया गया कि परीक्षण को अस्थायी रूप से स्थगित करने से पहले शायद सभी रिपोर्ट पर विचार नहीं किया गया। यही बात अन्य दवाओं के परीक्षण में भी रही होगी जिनके परीक्षण में भी अलग अलग रिपोर्ट आ रही है। ICMR से भी मशविरा नहीं किया गया जो भारत में परीक्षण कर रहा है।”
यानि भारत ने WHO को फिर से यह बता दिया कि उनके बेतुके फैसले भारत नहीं मानने वाला है।
जब से कोरोना शुरू हुआ है तब से ही WHO ने सभी देशों को गुमराह किया है। लेकिन भारत ने कभी भी WHO की बात नहीं मनी और ICMR पर अपना भरोसा बनाए रखा है।
एक तरफ जहां WHO ने 3 फरवरी को यह कहा था कि कोरोना को हराने के लिए चीन से ट्रैवल बैन करने की आवश्यकता नहीं है, वहीं भारत सरकार ने ICMR और अन्य भारतीय एक्स्पर्ट्स के सुझाव पर 4 फरवरी को ही चीन से आने वाली सभी फ्लाइटों को बैन कर दिया था। अगर भारत ने यह नहीं किया होता तो आज भारत की भी हालत अमेरिका और यूरोप जैसी ही होती।
यही नहीं WHO ने कई बार यह रट लगाया है कि मास्क पहनने की अवश्यकता नहीं है। यह किसी भी शोध में नहीं पाया गया है कि मास्क पहनने से कोरोना नहीं होता है। WHO के दिशानिर्देशों के अनुसार, वायरस से संक्रमित लोगों को मास्क पहनने की जरूरत होती है, लेकिन सामान्य लोगों को मास्क पहनने की जरूरत नहीं होती है। लेकिन यह दिशानिर्देश, WHO के कई अन्य दिशानिर्देशों की तरह, अतार्किक और सिर्फ ज्ञान योग्य था। जबकि तथ्य यह है कि asymptotic patients इस बीमारी को फैला रहे हैं। इस वजह से मास्क न पहनने की तुलना में इसे पहनना कहीं अधिक सावधानी भरा है।
वहीं एक बारतो हद ही हो गयी थी जब WHO जनवरी के आधे महीने बीत जाने तक बार-बार ज़ोर देकर यह बात कहता रहा कि इस वायरस के मनुष्यों से मनुष्यों में फैलने के कोई सबूत नहीं मिले हैं।
देखा जाए तो WHO ने पूरे मामले में चीन के पक्ष में बयानबाजी की है और कोरोना को रोकने के बजाए, इसे और अधिक भयंकर रूप लेने में मदद की है। यह अच्छी बात है भारत सरकार शुरू से ही WHO के बयानों को भाव नहीं दे रही थी। अब एक बार फिर से HCQ के मामले पर भारत की सरकार ने उसके प्रयोग को जारी रखते हुये WHO को ठेंगा दिखाया है।