“पहले हमारा विश्वास जीतो”, बातचीत के लिए गिड़गिड़ा रही नेपाली सरकार को भारत सरकार का जवाब

मुंह से गाली और हाथ से ताली? नहीं चलेगा!

नेपाल

PC: Republic World

कभी न कभी तो ऊंट पहाड़ के नीचे आता ही है तब उसे उसकी लंबाई का एहसास होता है। कुछ दिनों तक चीन के गोद में बैठ कर भारत से पंगे लेने वाली नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार को आखिरकार होश आया है। भारत के गुस्से से बचने के लिए अब नेपाल की सरकार डिप्लोमैटिक चैनल के जरिये भारत से बातचीत के लिए आतुर दिखाई दे रही है। लेकिन अब भारत ने भी कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट कह दिया है कि बातचीत के लिए नेपाल को विश्वास और भरोसे का माहौल तैयार करना होगा।

दरअसल, नेपाल की संसद में नए नक्शे वाले प्रस्ताव पर एक मत नहीं होने और उस संविधान संशोधन विधेयक को संसद की कार्यसूची से हटाये जाने के बाद विदेश मंत्री प्रदीप ग्यावली ने शुक्रवार को एक संसदीय समिति में कहा कि वह नक्शे के मुद्दे को हल करने के लिए भारत के साथ “नियमित” संपर्क में हैं क्योंकि काठमांडू इस मामले पर राजनयिक चैनलों के माध्यम से चर्चा करना चाहता है।

इसके बाद अब भारत का जवाब आया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि भारत ने इस मु्द्दे पर जोर देते हुए कहा कि Nepal में इस वक्त नए नक्शे को लेकर गंभीरता से चर्चा हो रही है तो भारत अपने पड़ोसी देशों से आपसी विश्वास और भरोसे के माहौल में बातचीत के लिए तैयार है।

नेपाल के बातचीत करने की अपील के सवाल पर अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि दोनों देशों के बीच किसी भी तरह के संवाद की कोई कमी नहीं है। विदेश सचिव हर्ष श्रंगला दो बार नेपाल के राजदूत निलंबर आचार्य से मुलाकात कर चुके हैं।

इससे स्पष्ट होता है कि अब जो गलती नेपाल ने कर दी है उसे सुधारने के लिए उसे पहले भारत का विश्वास हासिल करना होगा।

बता दें कुछ ही दिन पहले Nepal ने अपने नए राजनीतिक नक्शे को मंजूरी दे दी थी जिसमें तिब्बत, चीन और नेपाल से सटी सीमा पर स्थित भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया था।

इसके बाद भारत के विदेश मंत्रालय ने नेपाल को भारत की संप्रभुता का सम्मान करने की नसीहत देते हुए कहा था, हम नेपाल सरकार से अपील करते हैं कि वो ऐसे बनावटी कार्टोग्राफिक प्रकाशित करने से बचे। साथ ही भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करे।

हालांकि, इस संशोधन वाले विधेयक को नेपाली संसद में रखे जाने से पहले ही हटा दिया गया। विपक्ष के पुरजोर विरोध के पश्चात संसद को यह निर्णय लेने के लिए विवश होना पड़ा था। वैसे भी, इस बिल को पारित करने के लिए सत्ताधारी नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी को दो तिहाई बहुमत चाहिए थी, जो विपक्ष के विरोध के चलते नहीं मिलने वाली थी। इसके अलावा न्यूज़ 18 के रिपोर्ट के अनुसार मधेश समुदाय आधारित पार्टी – समाजवादी जनता पार्टी Nepal और राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल ने भी इस बिल पर अपनी सहमति नहीं जताई है, और वे चाहते हैं कि पहले केपी शर्मा ओली उनकी मांगों को पूरा करें।

इसके बाद नेपाल की सरकार ने भारत से बातचीत कर इस मुद्दे को सुलझाने की बात कही थी,  लेकिन तब भारत ने कड़े शब्दों में जवाब देते हुए कहा है कि नेपाल पहले विश्वास और भरोसे का वातावरण बनाए और बातचीत से पहले आत्मविश्वास की स्थिति पैदा करे।

इससे अब नेपाल को यह समझ लेना चाहिए कि अब भारत वह देश नहीं है कि कोई बार बार गलतियाँ करता रहेगा और भारत कुछ नहीं करेगा। अब भारत ने जवाब देना सीख लिया है। नेपाल की माओवादी सरकार को यह समझना चाहिए कि अगर उसे चीन की गोद में बैठना है तो भारत से दोस्ती नहीं कर सकता।

 

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