ऐसा लगता है कि अब नेपाल पूरी तरह से चीन के इशारों पर काम करने लगा है. और भारत को पूरी तरह से भड़काने वाला काम कर रहा है। नेपाल ने अपने नए राजनीतिक नक्शे को मंजूरी दे दी है और इस नक्शे में तिब्बत, चीन और नेपाल से सटी सीमा पर स्थित भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया है।
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने इस नए नक्शे की घोषणा करते हुए कहा कि राजनयिक पहल के माध्यम से भारत के साथ सीमा मुद्दे को हल करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं नेपाल के वित्त मंत्री युबराज खाटीवाडा कहा कि नए नक्शे को मंत्रिपरिषद की बैठक में रखा गया, जहां इसे मंजूरी दे दी गई। इस नक्शे को सभी सरकारी डॉक्युमेंट्स और देश के प्रतीक चिन्हों प्रकाशित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि किताबों में यही नक्शा पढ़ाया जाएगा और आम लोग भी इसका ही इस्तेमाल करेंगे।
लिम्पियाधुरा, लिपुलेक र कालापानीसहितका भूभाग समेट्दै ७ प्रदेश, ७७ जिल्ला र ७५३ स्थानीय तहको प्रशासनिक विभाजन खुल्ने गरी नेपालको नक्सा प्रकाशित गर्ने मन्त्रिपरिषदको निर्णय । आधिकारिक नक्सा भूमिव्यवस्था मन्त्रालयले छिटै सार्वजनिक गर्दैछ ।
— Pradeep Gyawali (@PradeepgyawaliK) May 18, 2020
नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी के सांसदों ने एक कदम और बढ़ते हुए संसद में एक विशेष प्रस्ताव पेश किया है जिसमें कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख में नेपाल के क्षेत्र की वापसी की मांग की गई है।
कैबिनेट से प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के बाद नेपाल की राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने कहा–
“लिंपियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी इलाके नेपाल में आते हैं और इन इलाकों को वापस पाने के लिए मजबूत कूटनीतिक कदम उठाए जाएंगे। नेपाल के सभी इलाकों को दिखाते हुए एक आधिकारिक मानचित्र जारी होगा।”
बता दें कि कुछ दिनों पहले ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने धारचूला से लिपुलेख तक बनाई गयी नई रोड का उद्घाटन किया गया था। हालांकि इस रोड पर नेपाल ने तुरंत आपत्ति जताते हुए भारत के राजदूत विनय मोहन क्वात्रा को तलब कर लिया था। लेकिन तब भी भारत ने कहा था कि ‘उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में हाल ही बनी रोड पूरी तरह भारत के इलाके में हैं।
वहीं नेपाल के पीएम केपी शर्मा ओली ने संसद में बयान दिया कि भारत का राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तम्भ सत्य मेव जयते है न कि सिंह मेव जयते? उन्होंने आगे कहा कि, “वह ‘सत्यमेव जयते‘ में विश्वास करते हैं और ऐतिहासिक गलतफहमी को दूर कर हम भारत के साथ अपनी दोस्ती को गहरा करना चाहते हैं।“
विवाद थम गया था लेकिन चीन ने उकसाया और फिर….
बता दें कि नेपाल ने सिर्फ उत्तराखंड से लगती 805 किमी सीमा में ही बदलाव किया है। लद्दाख, हिमाचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और सिक्किम के साथ ही चीन से लगती सीमा में कोई भी बदलाव नहीं किया गया है।
यहाँ यह जानना जरूरी है कि जब दो नवंबर 2019 को भारत ने अपना नया नक्शा जारी किया तब लिंपियाधुरा, लिपुलेख व कालापानी को अपने हिस्से में दिखाया था। उस दौरान नेपाल ने ऐतराज जताया और इसे वास्तविक नक्शे के विपरीत बताया। हालांकि दोनों देशों के बीच बातचीत के बाद विवाद थम गया था।
लेकिन अब यह मामला फिर से उठ चुका है और यह स्पष्ट तौर पर दिख रहा है कि चीन के उकसावे में आकर नेपाल इस तरह से भारत विरोधी कदम उठा रहा है। कुछ दिनों पहले सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने संकेत देते हुए कहा था कि बेपल का इस तरह से लिपुलेख मामले को उठाने के पीछे किसी विदेशी ताकत का हाथ है। उनका स्पष्ट इशारा चीन के तरफ ही था।
नुकसान नेपाल को ही होगा
नेपाल की राजनीति से लेकर अब विदेश नीति तक चीन जिस तरह से हस्तक्षेप कर रहा है और नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की तरह काम कर रही है उससे सबसे अधिक नुकसान नेपाल को ही होने वाला है। कुछ ही समय पहले चीन ने नेपाल की राजनीति में हस्तक्षेप करते हुए केपी ओली की सरकार गिरने से बचाई थी।
ऐसा लगता है कि अब नेपाल की यह सत्ताधारी पार्टी चीन के पालतू कुत्ते की तरह उसी का कहना मान रही है। इस बार नेपाल ने सीधे भारत की अखंडता पर चोट करते हुए भारत के हिस्से को अपना बता दिया है। यह भारत कभी स्वीकार नहीं करेगा और जल्द ही नई दिल्ली की ओर से प्रतिक्रिया देखने को मिल सकती है।