फर्जी राष्ट्रवाद के बाद गोरखा सैनिकों पर गंदी राजनीति- नेपाल अब भारतीय सेना में झगड़ा लगाना चाहता है

कम्युनिस्ट ओली कितना गिरोगे, गोरखाओं पर तो राजनीति मत करो!

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भारत और नेपाल के बीच विवाद गहराता जा रहा है। नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार भारत के साथ अपने सम्बन्धों को खराब करने पर तुली हुई है। इस बार नेपाल के उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने विवादित बयान दिया है। पहले तो नेपाल की सरकार ने चीन के इशारे पर कालापानी के मामले को विवाद में बदल दिया और  फिर अब नेपाल के रक्षा मंत्री ने भारत में रह रहे गोरखाओं को सेना ने खिलाफ भड़काने वाला बयान दिया है।

दरअसल, कुछ दिनों पहले भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाने ने चीन के संदर्भ में कहा था कि नेपाल की सरकार किसी और के बहकावे में आकर कालापानी का मामला उठा रही है। इसी पर विवादित बयान देते हुए नेपाल के रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने कहा कि यह बयान अपमानजनक था।

उन्होंने आगे कहा, “यह अपमानजनक बयान नेपाल के इतिहास को दरकिनार करते हुए और हमारे सामाजिक विशेषताओं और स्वतंत्रता को अनदेखा करते हुए दिया गया। इसके साथ ही भारतीय सेना प्रमुख ने नेपाली गोरखा आर्मी के जवानों की भावनाओं को भी आहत किया है जिन्होंने भारत की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनके लिए अब गोरखा सैन्य बलों के सामने सिर उठाकर खड़े रहना मुश्किल हो गया है।

यह पहला मौका है जब नेपाल की कम्युनिस्ट सरकार ने इस तरह से गोरखाओं को किसी विवाद के बीच में घसीटा है। चीन के इशारे पर नाचने वाली यह सरकार अब भारत में रहने वाले गोरखाओं को भारतीय सेना के प्रति भड़काना चाहती है। जबकि सेना प्रमुख का बयान का उससे कोई लेना देना ही नहीं है।

गोरखाओं का भारतीय सेना में बलिदान और बहादुरी का इतिहास रहा है और सेना की गोरखा रेजिमेंट मुख्य रूप से नेपाल के गोरखा समुदाय के सैनिकों को भर्ती करती है। अब इस तरह से ओली सरकार का गोरखाओं को उकसाना दिखाता है कि अब वह किस तरह से चीन की धुन पर नाच रहे हैं।

भारत को लगातार इस तरह से उकसाने वाले बयानों के परिणाम के बारे में ओली सरकार बिल्कुल भी नहीं सोच रही है। इससे न सिर्फ नेपाल के लोगों के लिए मुश्किलें बढ़ेंगी, बल्कि भारत में रहने वाले नपाली नागरिकों को भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ेगा।

भारत ने अभी तक नेपाल से लगने वाली सीमा को बंद नहीं किया और इसका एक ही कारण है और वो है नेपाल का भारत के साथ सांस्कृतिक जुड़ाव। लेकिन फिर भी केपी ओली की सरकार एक के बाद एक भारत को भड़काने वाला बयान दे रही है जिसके कारण भारत की सुरक्षा को खतरा है। अब उसके रक्षा मंत्री ने तो भारतीय सेना में अंदर ही लड़ाई लगवाने की कोशिश की है।

अब ऐसा लगता है कि नई दिल्ली द्वारा बार्डर बंद करने का निर्णय लेने में ही भलाई है क्योंकि कोई भी देश किसी अन्य देश के इशारों पर नाचने वाला पड़ोसी नहीं चाहेगा जो उसके लिए सुरक्षा खतरा बने। एक तरफ लद्दाख में चीन भारत के साथ बार्डर विवाद को बढ़ा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ, नेपाल को भी भारत के साथ उलझने के लिए मजबूर कर रहा है। ऐसे में चीन के किसी साथी देश के साथ अपने बार्डर को बिना किसी लगाम के खुला रखने का कोई मतलब नहीं बनता है।

लाखों नेपाली प्रवासी भारत में रह रहे हैं, यहाँ की गयी कमाई को नेपाल भेजते हैं। यदि इस स्थिति में बदलाव होता है और भारत-नेपाल संबंधों में खटास आने से लोगों के संबंधों में समस्या आती है तो ये प्रवासी अंततः ओली को ही दोषी ठहराएंगे।

हालांकि, बार्डर खुला रहे या नहीं कम्युनिस्ट समर्थक और भारत विरोधी तत्व भारत को लगातार उकसाते रहेंगे। इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि भारत की सरकार और लोग नेपाली लोगों पर उतना ही भरोसा करते रहेंगे, जितना वे आज भी करते हैं।

सबसे बड़ी बात भारतीय सेना में गोरखाओं की भर्ती में भी समस्या खड़ी हो सकती है। यहां तक कि नेपाली मूल के गोरखा जो पीढ़ियों से भारत में रह रहे हैं, उन्हें ओली की वजह से भुगतना पड़ सकता है। अगर नेपाल फिर भी गोरखा समुदाय को भड़काना जारी रखता है, तो भारत की सरकार और सेना दोनों को निर्णय लेना होगा।

यही नहीं कई वर्षों से चली आरही पश्चिम बंगाल से गोरखालैंड की मांग भी खतरे में पड़ सकती है क्योंकि भले ही भाजपा ने अलग राज्य का वादा नहीं किया है, लेकिन वह गोरखाओं के प्रति सहानुभूति रखती है।

भारत में गोरखाओं को निशाना बनाने और उन्हें भारत के खिलाफ भड़काने से, नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार ने कई दशकों से उनकी अलग राज्य की मांग को खतरे में डाल दिया है। न सिर्फ नेपाली गोरखा, बल्कि भारत में रहने वाले गोरखाओं को भी अब यही लगेगा कि वे केवल एक व्यक्ति यानि केपी शर्मा ओली के कारण प्रभावित हो रहे हैं। यह ओली ही है जिसके कारण भारत को नेपाल के प्रति कड़ा रुख अपनाना पड़ सकता है जिसके कारण गोरखाओं को उनकी वजह से नुकसान उठाना पड़ेगा।

नेपाल के रक्षा मंत्री द्वारा गोरखाओं को भड़काने वाले बयान से पता चलता है कि कम्युनिस्ट सरकार को सिर्फ अपने हित साधने से मतलब है न कि गोरखाओं की चिंता है।

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