चीन से वफादारी दिखाने के लिए यूरोपीय संघ ने विश्व के देशों के पीठ में छुरा घोंपा

ग्लोबल टाइम्स ने तो सीधा लिख दिया, ऑस्ट्रेलिया के मुंह पर 'तगड़ा तमाचा' पड़ा है

यूरोपीय संघ

कुछ दिनों पहले तक चीन की वाह-वाही करने वाला यूरोपीय संघ अचानक से चीन के खिलाफ WHA यानि World Health Assembly में प्रस्ताव लाता है जिसे सभी देश चीन के खिलाफ जांच मान कर समर्थन देते हैं। लेकिन इस प्रस्ताव में कहीं पर भी चीन पर केन्द्रित जांच की बात नहीं लिखी थी जो कई दिनों से ऑस्ट्रेलिया तथा अन्य देश करने के लिए कह रहे थे।

यानि यहाँ देखा जाए तो यूरोपीय संघ ने एक बार फिर से चीन को बचाने के लिए ऑस्ट्रेलिया सहित सभी देशों को धोखा दिया है और चीन केन्द्रित जांच को सिर्फ कोरोना की जांच में बदल दिया। इस प्रस्ताव को ग्लोबल टाइम्स ने चीन की बड़ी जीत और ऑस्ट्रेलिया के मुंह पर करारा तमाचा बताया है।

दरअसल, चीन के खिलाफ जांच का प्रस्ताव सबसे पहले ऑस्ट्रेलिया ने रखा था जिसका ड्राफ्ट EU ने बनाया था। ऑस्ट्रेलिया का जांच प्रस्ताव चीन केन्द्रित था जिसमें कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन से होने की जांच की जानी थी। परंतु जब EU ने फाइनल ड्राफ्ट तैयार किया तब उसमें से चीन या फिर वुहान का नामोनिशान नहीं था। इसी ड्राफ्ट में ऑस्ट्रेलिया द्वारा दिये गए सुझाव को हटा कर एक सामान्य जांच में परिवर्तित कर दिया गया था। हालांकि, तब भी ऑस्ट्रेलिया ने यह कहते हुए समर्थन किया कि यह ड्राफ्ट अभी भी चीन के खिलाफ जांच के लिए इसमें “a proper and thorought investigation” जैसे कड़े शब्द का इस्तेमाल किया गया है। ऑस्ट्रेलियाई अधिकारियों का कहना है कि इस प्रस्ताव का दायरा अभी भी चीन की पर्याप्त जांच की अनुमति देता है।

लेकिन यहाँ यह ध्यान देने वाली बात है कि यूरोपीय संघ ने किस तरह से चालाकी दिखा कर प्रस्ताव को चीन विरोधी होने से बचा लिया। दूसरे शब्दों में कहे तो यूरोपियन यूनियन ने चीन के साथ अपनी वफादारी दिखाते हुए दुनिया के सभी देशों के साथ भयंकर धोखा किया है।

EU की इस करतूत के बाद चीन में खुशियाँ मनाई जा रही है और वहाँ की मीडिया इसे ऑस्ट्रेलिया के मुंह पर तमाचा कह रही है। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख छापते हुए लिखा है कि ऑस्ट्रेलिया के “चेहरे पर थप्पड़” पड़ा है। यही नहीं ग्लोबल टाइम्स ने खुले तौर पर स्वीकार किया है कि यूरोपीय संघ के प्रस्ताव को चीन ने प्रायोजित किया था।

वहीं चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने कहा, “यह ऑस्ट्रेलियाई पक्ष की ओर से तथाकथित स्वतंत्र जांच से बिलकुल अलग है।”

यह विडम्बना ही है कि कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित होने के बाद भी यूरोपीय संघ चीन का साथ दे रहा है और उसके द्वारा फैलाये गए इस वायरस के कारणों को छिपाने में चीन की मदद कर रहा है। यह कहना गलत नहीं होगा कि इस तरह से चीन का साथ देकर EU ने सभी देशों के पीठ में छुरा घोंपा है।

यही नहीं अब WHO से अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा समर्थन वापस लिए जाने के बाद यूरोपीय संघ ने WHO का भरपूर समर्थन करने का वादा किया है।

यह पहली बार नहीं जब EU ने इस तरह से चीन का समर्थन किया हो या फिर उसके खिलाफ कड़े शब्दों का प्रयोग करने से पीछे हटा हो। यह तब से हो रहा है जब से चीन के ऊपर कोरोना फैलाने का आरोप लग रहा है।

कुछ दिनों पहले चीन में मौजूद यूरोपीय संघ के 27 सदस्य देशों के राजदूतों ने कोरोना वायरस पर चीन की प्रतिक्रिया की सराहना करते हुए एक पत्र लिखा था और उस पत्र में कम्युनिस्ट पार्टी का बखान किया गया था।

हालांकि, इस पत्र के एक पैराग्राफ में कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर चीन का नाम लिखा गया था जो चीन को पसंद नहीं आया और चीन की मीडिया ने उस पत्र में से उस विशेष पैराग्राफ को हटाकर उस पत्र को सेंसर करके छाप दिया।

चीन की इस हरकत पर यूरोपीय संघ ने भी कोई आपत्ति नहीं जताई। यहां तक कि यूरोपियन यूनियन के प्रवक्ता ने एक बयान देकर कहा कि थोड़े बहुत बदलाव के बाद EU  के सभी देश उसे ऐसे ही छापने पर राजी हो गए थे। यही नहीं इससे पहले जब यूरोपीय संघ ने अपनी एक खुफिया रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें चीन को लेकर काफी कड़वी बातें लिखी हुई थी और चीन ने हस्तक्षेप करने के बाद उस रिपोर्ट को काफी हद तक बदल दिया था और उस रिपोर्ट में से चीन के खिलाफ कई बातों को हटवा दिया था।

EU कहने को तो 27 मजबूत देशों का एक समूह है लेकिन असल में आज की तारीख में इसमें कोई रीड की हड्डी नहीं बची है। यह चीन के एक दास की तरह बर्ताव कर रहा है। जो चीन इसे कहता है वही EU भी कहता है। यूरोपीय संघ को यह लगता है कि अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते खराब होने से चीन उसके साथ अपने व्यापार बढ़ाएगा और इसी चाहत में वह चीन के धुन पर नाच रहा है। जिस तरह से EU बर्ताव कर रहा है उससे यह कहा जा सकता है कि UK ने यूरोपीय संघ से बाहर होने का सही फैसला किया था। जब यह संस्था अपने नागरिकों के हितों की रक्षा नहीं कर सकती तो उसका सदस्य रहना बेकार है।

EU के इस तरह से चीन के हितों को नागरिकों के हितों से ऊपर रखने और कोरोना के जांच में चीन केन्द्रित न होने देने का खामियाजा पूरे विश्व को भुगतना पड़ सकता है।

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