चीन के चाटुकारों में शुमार नेपाल के वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली किस तरह से भारत के विरुद्ध काम करते हैं, ये किसी से छुपा नहीं है। हाल ही में नेपाल ने एक विवादित मानचित्र दिखाया था, जिसमें भारत का लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा क्षेत्र को नेपाली क्षेत्र में शामिल किया गया था।
परन्तु इससे पहले कि नेपाली मुंगेरीलाल के हसीन सपने परवान चढ़ पाते, उन्हें नेपाली संसद से ही ज़बरदस्त झटका मिला। संसद ने इस विवादित मानचित्र को जारी करने के मंसूबों को ध्वस्त करते हुए विशेष संशोधन हेतु होने वाली सभा को स्थगित कर दिया।
विपक्ष के पुरजोर विरोध के पश्चात संसद को यह निर्णय लेने के लिए विवश होना पड़ा था। वैसे भी, इस बिल को पारित करने के लिए सत्ताधारी नेपाली कम्यूनिस्ट पार्टी को दो तिहाई बहुमत चाहिए थी, जो विपक्ष के विरोध के चलते नहीं मिलने वाली थी।
इसके अलावा न्यूज़ 18 के रिपोर्ट के अनुसार मधेश समुदाय आधारित पार्टी – समाजवादी जनता पार्टी नेपाल और राष्ट्रीय जनता पार्टी नेपाल ने भी इस बिल पर अपनी सहमति नहीं जताई है, और वे चाहते हैं कि पहले केपी शर्मा ओली उनकी मांगों को पूरा करे।
सच कहें तो केपी शर्मा ओली ने फालतू में यह मुसीबत मोल ले ली। वर्तमान प्रशासन पूरी तरह से चीन के इशारों पर काम करने लगा है और भारत को पूरी तरह से भड़काने वाला काम कर रहा है। नेपाल ने अपने नए राजनीतिक नक्शे को मंजूरी दे दी , और इस नक्शे में तिब्बत, चीन और नेपाल से सटी सीमा पर स्थित भारतीय क्षेत्र कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को नेपाल का हिस्सा बताया गया।
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने इस नए नक्शे की घोषणा करते हुए कहा कि राजनयिक पहल के माध्यम से भारत के साथ सीमा मुद्दे को हल करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। वहीं नेपाल के वित्त मंत्री युबराज खाटीवाडा कहा कि नए नक्शे को मंत्रिपरिषद की बैठक में रखा गया, जहां इसे मंजूरी दे दी गई।
इतना ही नहीं, नेपाल ने ओछेपन की सारी सीमा लांघते हुए पहले भारत को वुहान वायरस के लिए दोषी बताया, और उसके बाद गोरखा समुदाय पर अपनी घृणित राजनीति भी जगजाहिर की।
कुछ दिनों पहले भारतीय सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवाने ने चीन के संदर्भ में कहा था कि नेपाल की सरकार किसी और के बहकावे में आकर कालापानी का मामला उठा रही है। इसी पर विवादित बयान देते हुए नेपाल के रक्षा मंत्री ईश्वर पोखरेल ने कहा कि यह बयान अपमानजनक था।
उन्होंने आगे कहा, “यह अपमानजनक बयान नेपाल के इतिहास को दरकिनार करते हुए और हमारे सामाजिक विशेषताओं और स्वतंत्रता को अनदेखा करते हुए दिया गया। इसके साथ ही भारतीय सेना प्रमुख ने नेपाली गोरखा आर्मी के जवानों की भावनाओं को भी आहत किया है जिन्होंने भारत की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। उनके लिए अब गोरखा सैन्य बलों के सामने सिर उठाकर खड़े रहना मुश्किल हो गया है”।
लेकिन जिस तरह से नेपाल के वर्तमान प्रशासन की हेकड़ी उन्हीं के संसद में फुस्स पड़ गई, उससे एक बात तो साफ है – कि दोनों देश के बीच संबंध खराब हो ये खुद नेपाल के अन्य नेता भी नहीं चाहते। नेपाल के प्रशासन की हेकड़ी पर एक डायलॉग बिल्कुल फिट बैठता है, “भाई, ये तो शुरू होते ही खत्म हो गया”।