“पुराने दोस्त-नए दुश्मन”, अमेरिका को सऊदी की अब कोई ज़रूरत नहीं इसलिए सऊदी को बर्बाद करने जा रहा है अमेरिका

सऊदी अरब, America

कोरोना वायरस ने दुनिया के अधिकतर देशों की आंतरिक राजनीति के साथ-साथ वैश्विक राजनीति पर भी गहरा प्रभाव डाला है। महामारी के समय में जहां कुछ देशों के आपसी संबंधो में मजबूती देखने को मिल रही है, तो वहीं  पुराने दोस्त एक दूसरे के दुश्मन भी बनते जा रहे हैं। ऐसा ही कुछ हमें सऊदी अरब (Saudi Arabia) और अमेरिका (America) के रिश्तों के साथ देखने को मिल रहा है। आमतौर पर अमेरिका और सऊदी एक दूसरे के घनिष्ठ मित्र और बेहद नजदीकी रणनीतिक साझेदार माने जाते हैं, लेकिन हाल ही की कुछ घटनाओं ने यह दिखाया है कि अब यह कई दशकों पुरानी दोस्ती टूटने की कगार पर पहुंच सकती है।

सऊदी अरब (Saudi Arabia) ऐतिहासिक तौर पर अमेरिका (America) को दो बड़े फायदे पहुंचाता आया है। एक तो बड़ी मात्रा में crude oil और दूसरा सऊदी अरब के जरिये पश्चिमी एशिया और खाड़ी के देशों पर नज़र रखने के लिए एक बढ़िया रणनीतिक ठिकाना। ट्रम्प इस साल यह पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि उन्हें अब “middle east के कच्चे तेल” की कोई ज़रूरत नहीं है और अमेरिका अब crude ऑयल के मामले में आत्मनिर्भर बन चुका है। इसके अलावा आने वाले भविष्य में Crude ऑयल की मांग में बड़ी कमी देखने को मिलने वाली है। ऐसे में अमेरिका को सऊदी के तेल से अब कोई खास फायदा होने वाला नहीं है।

दूसरा यह कि ट्रम्प प्रशासन के तहत अमेरिका (America) अब दुनियाभर के warzones में से अपने आप को बाहर निकालना चाहता है, और ट्रम्प शुरू से ही यह कहते आए हैं कि उन्हें दूसरों की लड़ाई लड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं है। इसका सीधा मतलब यह है कि अमेरिका अब सऊदी पर दबाव डालकर इरान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहेगा, बजाय इसके कि वह खुद किसी तनाव का हिस्सा बने। अमेरिका का प्लान साफ़ है, जब सऊदी अरब और इरान एक दूसरे के दुश्मन हैं ही, तो क्यों ना अमेरिका अपने पैर middle east से वापस खींचकर सऊदी अरब (Saudi Arabia) को इरान से लड़ने के लिए कहे, और बदलने में सऊदी को अमेरिका हथियार भी बेचे। ऐसे में अमेरिका सऊदी-इरान के तनाव से दूर रहकर भी इरान के खिलाफ अपना एजेंडा चला सकेगा। आज अगर अमेरिका सऊदी को अपने दम पर छोड़ भी देगा, तो इससे इरान-सऊदी अरब का विवाद तो सुलझ नहीं जाएगा, और इसी का अमेरिका अब सबसे ज़्यादा रणनीतिक फायदा उठाना चाहता है।

मतलब साफ़ है: अमेरिका को सऊदी के तेल की कोई ज़रूरत भी नहीं है और अमेरिका सऊदी का दोस्त न रहकर भी सऊदी का भरपूर रणनीतिक फायदा उठा सकता है। अमेरिका के दोस्त उसके assets के बराबर होते हैं जिसका वह भरपूर फायदा उठाने में विश्वास रखता है। हालांकि, सऊदी अमेरिका (America) के लिए Non-performing Asset बनता जा रहा है। सऊदी अरब का कोरोना ने बुरा हाल कर दिया है, और सऊदी अरब की सरकार के लिए देश को चलाये रखना बड़ा मुश्किल साबित हो रहा है। दुनिया भर में तेल का निर्यात कर मोटी कमाई करने वाले सऊदी अरब को कोरोना के संकट के चलते कच्चे तेल की कीमत में आई भारी गिरावट के कारण खर्च में बड़ी कटौती करने पर मजबूर होना पड़ा है। राजशाही शासन से चलने वाले सऊदी अरब (Saudi Arabia) ने 26 अरब डॉलर तक खर्च में कटौती करने का निर्णय लिया है। यही नहीं सऊदी अरब के नागरिकों को कॉस्ट ऑफ लिविंग अलाउंस भी नहीं मिल पाएगा, जिसे वहाँ की सरकार सालाना भत्ते के तौर पर देती है। गरीब सऊदी अरब अमेरिका के किसी काम का नहीं है और शायद यही कारण है कि सऊदी अरब और अमेरिका की बीच की दोस्ती पर आने वाले दिनों में खतरे के बादल मंडरा सकते हैं।

हाल ही में अमेरिका की जांच एजेंसी एफ़बीआई से “गलती से” लीक हुए डॉक्युमेंट्स से खुलासा हुआ कि सऊदी के अधिकारी का 9/11 आतंकी हमलों से सीधा जुड़ाव था। FBI ने 9/11 हमलों के पीड़ित एक परिवार के मुकदमे के जवाब में यह खुलासा किया कि हमलों का सऊदी के दूतावास के एक अधिकार का सीधा संबंध था। यह खुलासा वाकई “गलती से” हुआ हो, इसके आसार बहुत कम हैं। इसका सऊदी अरब और अमेरिका के आपसी रिश्तों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह भी देखना दिलचस्प रहेगा।

अमेरिका और सऊदी के बीच तबाव बढ़ने का यह एकमात्र कारण नहीं होगा। हाल ही में सऊदी ने अमेरिका (America) के पश्चिमी तटों की ओर कच्चे तेल से भरे 30 बड़े-बड़े टैंकरों को रवाना किया है, जिसे पहले हुए करारों के तहत मई महीने के अंत में या जून महीने में अमेरिका पहुंचाया जाना है। इससे डर बढ़ गया है कि अगर सऊदी के ये tankers अमेरिका पहुँचते हैं, तो इससे दोबारा अमेरिका की ऑयल मार्केट भयंकर तरीके से crash हो जाएगी और अगर अमेरिका (America) से तेल का एक्सपोर्ट नहीं बढ़ता है और अगर अमेरिका में घरेलू मांग में इजाफा नहीं होता है, तो अमेरिका में तेल की सप्लाई जरूरत से कई गुणा बढ़ जाएगी जिसके कारण अमेरिका की ऑयल इकॉनमी दोबारा crash हो जाएगी। अगर अमेरिका अपने किए हुए करार को तोड़कर सऊदी के इन tankers को वापस लौटाता है, तो इससे सऊदी-अमेरिका का तनाव बढ़ने की संभावना है।

अमीर अमेरिका और अमीर से गरीब होते सऊदी की यह दोस्ती खात्मे की ओर अग्रसर है और कोरोना के बाद इन दो देशों के बीच के हालात तनावपूर्ण हो सकते हैं। कोरोना के दौरान कई दोस्त एक दूसरे के दुश्मन बनते नज़र आ रहे हैं और अब सऊदी अरब (Saudi Arabia) और अमेरिका की दोस्ती भी इसी महामारी की बलि चढ़ सकती है।

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