कोरोना के समय में चीन जिस तरह से क्राइसिस प्रोफिटियरिंग कर रहा है उससे कई देश प्रभावित हो सकते हैं और यह लजामी भी है क्योंकि चीन ने सभी देशों में निवेश कर रखा है। सबसे अधिक परेशान यूरोप और यूरोपीय संघ के देश हैं जिन्हें यह डर सता रहा है कि कहीं चीन उन देशों की कंपनियों में निवेश कर अधिग्रहण न कर ले। राजनीतिक अधिकारियों के साथ-साथ पूरा यूरोपीय संघ इसी बात से डर कर और चीनी कंपनियों को दूर रखने के लिए आर्थिक सेटअप के नियमों में संशोधन कर रहा है।
अधिकांश यूरोपीय देश में फ्री मार्केट इकॉनमी है और इन देशों में सरकार को न तो निजी कंपनियों के कामकाज में दखल देने की उम्मीद की जाती है और न ही इन कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने की। लेकिन, कुछ हफ़्ते पहले, यूरोपीय संघ के कंपीटीशन मुख्य मार्गेटे वेस्टेगर ने चीन को दूर रखने के लिए यूरोपीय संघ के सदस्य-देशों को पूंजी के लिए तड़प रहे कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने के लिए कहा है।
फाइनेंशियल टाइम्स के साथ एक साक्षात्कार में वेस्टेगर ने कहा, “हमारे पास बाजार सहभागियों के रूप में काम करने वाले देशों का कोई मुद्दा नहीं है, यदि वे किसी कंपनी में शेयर प्रदान करते हैं, या अगर वे चीन के द्वारा अधिग्रहण को रोकना चाहते हैं।“
उन्होंने कहा, “यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सभी को इस बात का पता होना चाहिए कि जो कंपनी व्यावसायिक रूप से कमजोर हैं वो अधिग्रहण के शिकार हो सकते हैं।”
बता दें कि चीनी कंपनियों के साथ-साथ चीन के खिलाफ यूरोपीय देशों में संदेह की स्थिति पैदा हो चुकी है। यूनाइटेड किंगडम और जर्मनी जैसे देशों ने पहले तो चीन के हुवावे के 5 जी कार्यक्रम को अनुमति दे चुके थे लेकिन, अब उन्होंने इस पर पुनर्विचार करना शुरू कर चुके हैं। लेकिन फिर भी चीन अब जर्मन लक्जरी कारों के लिए बाजार देने से इनकार करने कि धमकी जर्मनी की सरकार को दे रहा है। इसी तरह, यह ब्रिटेन और चेक गणराज्य की सरकारों को भी चीन इसी तरह की धमकी दे रहा है कि अगर चीनी मांगें पूरी नहीं हुई तो वह इन देशों को भी विशाल चीनी मार्केट में प्रवेश को प्रतिबंधित कर देगा।
बता दें कि कुछ सप्ताह पहले ही, यूरोपीय संघ ने कोरोनावायरस की चीन द्वारा हैंडलिंग से संबंधित जानकारी की आलोचना की थी लेकिन चीनी दबाव के बाद यूरोपीय संघ ने रिपोर्ट ही बादल दिया था। लेकिन फिर भी सदस्य देशों ने चीनी कंपनियों के खिलाफ पूरी तरह से संरक्षणवादी नीति का सहारा लिया है।
हमने पहले ही आपको बताया था कि कैसे चीन यूरोप के कुछ देशों जैसे फ्रांस और इटली में वित्तीय तौर पर कमजोर कंपनियों में हिस्सेदारी खरीद रहा है, और इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं को हाईजैक करने की कोशिश कर रहा है। उसके बाद ही जर्मनी, इटली और स्पेन जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं ने अपनी कंपनियों में चीनी निवेश को दूर करने के लिए अपने FDI कानूनों में संशोधन किया था।
#Gravitas | A new report claims that state-owned Chinese companies are looking for investment opportunities in Europe.
The countries fear hostile takeovers of businesses by China. @palkisu tells you how Italy, Germany and Spain are now tightening their foreign investment rules pic.twitter.com/eSWRL2BHwa— WION (@WIONews) April 8, 2020
इटली की सरकार ने नियमों में बदलाव कर किसी विदेशी कंपनी द्वारा बैंक, ट्रांसपोर्ट, बीमा, ऊर्जा और स्वास्थ्य क्षेत्रों की कंपनियों के टेकओवर पर प्रतिबंध लगा दिया था। कुछ इसी तरह के नियम स्पेन ने बनाए। स्पेन के नियमों के मुताबिक अगर किसी देश को स्पेन की कंपनी में 10 प्रतिशत से ज़्यादा निवेश करना है, तो उसे पहले स्पेन की सरकार से इजाज़त लेनी होगी। इसी तरह के नियम जर्मनी ने भी बनाए हैं जिसके बाद किसी विदेशी कंपनी द्वारा जर्मनी की कंपनी को टेकओवर करना मुश्किल हो चुका है। यूरोप में बढ़ती संरक्षणवाद के खिलाफ चीन कोई न कोई कदम फिर से उठाएगा लेकिन उसे पता है कि अब वह यह लड़ाई नहीं जीत सकता। क्योंकि चीन न केवल यूरोपीय संघ के साथ 62 बिलियन यूरो का ट्रेड सरप्लस चलाता है, बल्कि कई यूरोपीय कंपनियों के अपने मैन्युफैक्चरिंग यूनिट चीन में है जो लाखों चीनी लोगों को रोजगार प्रदान करते हैं। ऐसे में अगर वह इन कंपनियों को और अधिक नाराज करेगा तो वे अपना बोरिया बिस्तर उठा कर कोई अन्य ठिकाना ढूंढ लेंगे जिससे लाखों चीनी लोग बेरोजगार हो जाएंगे और चीन की कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ असंतोष बढ़ जाएगा।
भारत और अमेरिका जैमे देश पहले ही अपने FDI नियमों में बदलाव कर चीनी निवेश के खिलाफ कदम उठा चुके हैं इसी वजह से चीन यूरोप कि कमजोर कंपनियों को निशाना बना रहा है। पर अब यूरोप के देश भी चीन के इस एजेंडे को जान चुका है और सभी देश FDI के नियमों में बदलाव करना आरंभ कर चुके हैं। FDI नियमों को मजबूत करने के बाद यह स्पष्ट होता है कि यूरोपीय देशों ने सबक सीख लिया है, और वे फिर से चीन पर भरोसा नहीं करेंगे। अब यूरोपीय संघ की competition chief का यूरोपीय कंपनियों को बचाने के लिए सदस्य देशों को कमजोर कंपनियों में हिस्सेदारी खरीदने के लिए आग्रह करना दिखाता है कि यूरोप चीन के सभी जाल से बचने का प्रयास कर रहा
कोरोना के कारण चीन का प्रॉफ़िट कमाने का प्लान सिर्फ मास्क या मेडिकल सप्लाई बेचने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह इसके माध्यम से दुनिया पर अपना कब्जा करना चाहता है, फिर चाहे वह विदेशी कंपनियों पर कब्जा करके हो या फिर वहां हुवावे जैसी विवादित कंपनियों के पक्ष में ज़मीन तैयार करने के माध्यम से हो।