‘Hong Kong के क्रांतिकारियों के साथ हैं हम’, चीन की गुंडई शांत करने के लिए ताइवान और Hong Kong साथ आए

ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग चीन को उसकी औकात बता रहे हैं

ताइवान

लगता है चीन के दिन अब लदने वाले हैं। कई महीनों से सुस्त पड़े हॉन्ग कॉन्ग के चीन विरोधी आंदोलन ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ी है। जब से चीन ने हॉन्ग कॉन्ग में नया कानून लागू करने की बात कही है तब से हॉन्ग कॉन्ग में चीन के विरुद्ध बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए जा रहे हैं। चीन समर्थित पुलिस राष्ट्रीय सुरक्षा कानून का विरोध कर रहे लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस के गोले दाग रही है, बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों को पुलिस गिरफ्तार कर रही है इसके बावजूद होंगकोंग के निवासियों के हौसले ज़रा भी पस्त नहीं हुए हैं। अब ताइवान की राष्ट्रपति ने होन्ग होन्ग के इस विरोध में सहयोग करने की बात कही है जिससे चीन को स्पष्ट संकेत भेजा गया है कि अब होन्ग कोंग और ताइवान चीन के खिलाफ एकसाथ होने जा रहे हैं।

क्या है पूरा मामला?

रविवार दोपहर से ही प्रदर्शनकारी हॉन्ग कॉन्ग के व्यस्त इलाके Causeway में जुटने लगे। इन लोगों ने ‘हॉन्ग कॉन्ग की आजादी, सिर्फ एक रास्ता’ के नारे लगाए। कुछ प्रदर्शनकारियों को आजादी वाले झंडे लहराते भी देखा गया। हॉन्कॉन्ग के लोग लंबे समय से अपनी आजादी की मांग कर रहे हैं। पिछले वर्ष भी लोकतंत्र समर्थकों ने कई महीने तक प्रदर्शन किया था।

परन्तु इस विरोध का वास्तविक कारण क्या है? दरअसल, हॉन्ग-कॉन्ग ब्रिटिश शासन से चीन के हाथ 1997 में ‘एक देश, दो व्यवस्था’ के तहत आया। हॉन्ग-कॉन्ग को कुछ अधिकार भी मिले जिसमें अलग न्यायपालिका और नागरिकों के लिए आजादी के अधिकार शामिल हैं। यह व्यवस्था 2047 तक के लिए है लेकिन चीन समय से पहले ही अब एक नया कानून ला रहा है जिसके तहत हॉन्ग कॉन्ग में देशद्रोह, आतंकवाद, विदेशी दखल और विरोध करने जैसी गतिविधियां रोकने का प्रावधान होगा। इसके तहत चीनी सुरक्षा एजेंसियां हॉन्कॉन्ग में काम कर सकेंगी।

इस कानून के घोषणा के बाद से ही लोग इसके खिलाफ हैं। कई मानवाधिकार संगठनों और अंतराष्ट्रीय सरकारों ने भी इस कानून का विरोध किया है। हॉन्ग कॉन्ग के लोगों का मानना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा देश के स्थायित्व का आधार है। इसमें छेड़छाड़ से उनके मौलिक अधिकारों का हनन होगा।

अब ताइवान भी आया साथ

परन्तु हॉन्ग कॉन्ग इस लड़ाई में अब अकेला नहीं है। उसके समर्थन में ताइवान भी खुलकर सामने आया है। ना केवल ताइवान ने प्रदर्शनकारियों को खुला समर्थन दिया है, अपितु हॉन्ग कॉन्ग से आ रहे शरणार्थियों को भी आश्रय देने का निर्णय लिया है।

ताइवान की राष्ट्रध्यक्ष  त्साई इंग-वेन ने अपने फेसबुक पर इस कानून की निंदा करते हुए एक पोस्ट डाली थी, जहां उन्होंने ना केवल इसे हॉन्ग कॉन्ग की स्वायत्तता के लिए खतरा बताया, अपितु हॉन्ग कॉन्ग के निवासियों को निस्संकोच ताईवान से सहायता मांगने को कहा।

इतना ही नहीं , राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने खुलेआम हॉन्ग कॉन्ग को अपना समर्थन देते हुए ट्वीट किया, जो भी इस समय हॉन्गकॉन्ग में अपना सब कुछ दांव पर लगाकर लोकतंत्र के लिए लड़ रहे हैं, उनके लिए ताइवान का समर्थन हमेशा उपलब्ध है”।

लगता है ताइवान हॉन्ग कॉन्ग के साथ मिलकर चीन के विरुद्ध वैश्विक स्तर पर मोर्चाबंदी करना चाहता है। दोनों ही देशों के साथ वर्षों तक चीन ने अन्याय किया है, और दोनों ही देशों की दलीलों को अनेक अंतरराष्ट्रीय महाशक्तियों ने अनदेखा किया है।

लेकिन अब ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग के पास अब एक सुनहरा अवसर है कि वे चीन को घेरकर उसे ना सिर्फ उसकी औकात दिखाए, अपितु उसका घमंड भी चूर चूर कर दें। दोनों ही देशों ने अपने यहां वुहान वायरस को नियंत्रित करने में ज़बरदस्त सफलता पाई है। जहां ताइवान में महज 441 लोग संक्रमित हुए हैं, तो वहीं हॉन्ग कॉन्ग में अभी तक केवल 1066 लोग संक्रमित हुए हैं, जबकि इस महामारी से महज 4 लोगों की मृत्यु हुई है।

ऐसे में अब ताइवान और हॉन्ग कॉन्ग की नई साझेदारी ना सिर्फ सम्पूर्ण विश्व के लिए एक बहुत शुभ संकेत है, अपितु चीन जैसे साम्राज्यवादी देश के लिए खतरे की घंटी भी है। वैसे भी अब ताइवान के समर्थन में कई देश हैं और होन्ग कोंग के कानून में बदलाव को लेकर कई देश चीन के खिलाफ एकजुट हो गए हैं। यही सही समय है कि चीन के कब्जे वाले होन्ग कोंग और ताइवान को उनके अधिकार मिलें और चीन के कब्जे से इन्हें आजादी मिल सके। इस समय चीन पर अंतर्राष्टरीय दबाव भी है ऐसे समय में अगर ताइवान और होन्ग कोंग एक साथ मिलकर चीन के खिलाफ खड़े होंगे तो चीन घुटनों के बल आ जायेगा।

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