ताइवान चीन से हार मान चुका था फिर ‘साइ इंग वेन’ आती हैं और अब दुनिया ताइवान के साथ खड़ी है

ताइवान की लेडी बॉस दूसरी बार राष्ट्रपति चुनी गई हैं, इनकी कहानी पढ़िए

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एक तरफ जहां दुनिया में चीन का दबदबा कम हो रहा है तो वहीं दूसरी तरफ इसका सबसे अधिक फायदा ताइवान को हो रहा है। कोरोना के बाद से ही ताइवान ने पूरी दुनिया में चीन की परछाई से ऊपर उठकर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इसमें सबसे बड़ा योगदान वहां का नेतृत्व कर रही राष्ट्रपति साइ इंग वेन की है। जिस तरह से उन्होंने चीन से टक्कर लिया है उससे न सिर्फ ताइवान को चीन से स्वतंत्र होने के आसार बढ़े हैं बल्कि उन्हें दोबारा राष्ट्रपति चुना गया है। बुधवार को उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में लगातार दूसरे कार्यकाल की शुरुआत की।

 

चीन से बात हो सकती है पर एक देश दो सिस्टम के तहत नहीं

ताइपे में उनके दूसरे कार्यकाल को लेकर आयोजित एक परेड के दौरान 63 साल की राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन ने कहा कि वह चीन के साथ बातचीत कर सकती हैं लेकिन एक देश-दो सिस्टम के मुद्दे पर नहीं। त्साई के पहले कार्यकाल के दौरान चीन ने ताइवान से सभी प्रकार के संबंधों को खत्म कर दिया था। इसके अलावा कई बार चीनी सरकार ने ताइवान पर सैन्य कार्यवाई की धमकी भी दी थी। एक तरह से देखा जाए तो ताइवान के अचानक से वैश्विक स्तर पर दिखाई देने का एक मात्र कारण राष्ट्रपति साइ इंग वेन हैं। उनके कार्यकाल से पहले ताइवान ने पूरी तरह से चीन को समर्पण कर दिया था और अपने आप को चीन का ही एक राज्य समझने लगा था।

1949 से ही ताइवान की अपनी सरकार है

बता दें कि वर्ष 1949 में चीनी गृह युद्ध के बाद से ताइवान की अपनी सरकार है लेकिन, चीन उसे अपना एक अलग हुआ हिस्सा मानता है जिसे एक दिन चीन के साथ मिलना है। उस दौरान कम्युनिज्म के बढ़ते प्रभाव के साथ ना केवल चीन का ओहदा बढ़ा, अपितु Taiwan का वैश्विक राजनीति पर प्रभाव भी कम हुआ। ताइवान के लिए 1971 के दौरान अमरीका की कमान राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के हाथों में जाने से नुकसान हुआ। उन्होंने चीन को पहचान दी और कहा कि ताइवान को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से हटना होगा।

1971 से चीन यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल का हिस्सा हो गया और 1979 में ताइवान की यूएन से आधिकारिक मान्यता खत्म हो गई। तभी से ताइवान का पतन शुरू हो गया। 70 के दशक के बाद से हमेशा से चीन की विदेश नीति में ‘वन चाइना पॉलिसी’ अहम रही है। 21 वीं सदी आते आते चीन ने अपना प्रोपेगेंडा ऐसा फैला दिया कि लोग ताइवान को चीनी ताइपे के नाम से संबोधित करने लगे थे, और ताइवान को ओलंपिक खेलों में अपना झंडा फहराने की अनुमति तक नहीं थी।

चीन ताइवान को हॉन्ग कॉन्ग की तरह बनाना चाहता है

चीन  चाहता है कि ताइवान हॉन्ग कॉन्ग और मकाओ की तरह ही ‘वन कंट्री, टू सिस्टम’ का हिस्सा बन जाए लेकिन ताइवान इसके लिए कभी तैयार नहीं हुआ। वर्ष 2016 तक जब  क्वामिनतांग पार्टी (केएमटी) का शासन था तब ताइवान चीन के चरणों में झुका हुआ था क्योंकि यह पार्टी चीन का समर्थन करती थी। ताइवान के इतिहास में ज्यादातर केएमटी का शासन रहा है।

2016 में ताइवान ने पहली बार साइ इंग वेन को राष्ट्रपति बनाया

परंतु वर्ष 2016 में ताइवान के इतिहास बदलने की शुरुआत हुई और चुनावों में देश की जनता ने पहली बार किसी महिला को राष्ट्रपति पद पर बैठाया। वह महिला कोई और नहीं बल्कि साइ इंग वेन थीं। उस चुनाव में उनकी पार्टी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी जीत के बाद ताइवान में चीन के खिलाफ वर्षों से दबा विरोध सामने आने लगा।

साइ इंग वेन ने आगे बढ़ कर चीन के खिलाफ अपने मोर्चे को वैश्विक स्तर पर नेतृत्व किया। यही नहीं उन्होंने अपने संबंध अमेरिका से भी बढ़ाए जिससे अगर चीन अपनी सैन्य ताकत का दुरुपयोग करता है तो उस स्थिति में अमेरिका की मदद ली जा सके। इसका फायदा उन्हें इसी वर्ष हुए दूसरे चुनाव में भी मिला और वे भारी बहुमत से दोबारा चुनाव जीत गयी।

अमेरिका से संबंध मजबूत किया जिसका फायदा आज मिल रहा है

दिसंबर 2016 की शुरुआत में, Tsai ने राष्ट्रपति पद पर चुने जाने वाले डोनाल्ड ट्रम्प के साथ एक टेलीफोन कॉल पर बातचीत किया था। वर्ष 1979 के बाद से यह पहली बार था जब ताइवान के राष्ट्राध्यक्ष ने संयुक्त राज्य अमेरिका के राष्ट्रपति या राष्ट्रपति के उम्मीदवार के साथ बात की थी। इसी से उन्होंने संकेत दिया कि अब ताइवान “नीतिगत बदलाव” करने जा रहा है। इसके बाद अमेरिका ने ट्रम्प के कार्यकाल में ताइवान को भरपूर समर्थन दिया और उनके लिए अपने सदन में तइपाइ कानून भी पारित कर लिया था।

 

साई ने लगातार चीनी कम्युनिस्ट सरकार को झटका दिया है

यही नहीं Tsai ने लगातार कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के ताइवान में हस्तक्षेप का विरोध किया और उन्हें बेनकाब किया है। जनवरी 2019 में जब चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव, शी जिनपिंग ने ताइवान के चीन के साथ एकीकरण के लिए one country two system का प्रस्ताव दिया था तब Tsai ने स्पष्ट तौर पर चीन के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था। Tsai ने कहा था, “ताइवान ने एक देश, दो प्रणालियों को अस्वीकार कर दिया है और ऐसा इसलिए है क्योंकि बीजिंग 1992 की सहमति को “एक देश, दो प्रणालियों” से तौलता है। परंतु अब ताइवान वर्ष 1992 की सहमति को भी अस्वीकार करता है।

यह चीन के लिए बहुत बड़ा झटका था जो Tsai ने दिया था। इससे ताइवान पूरी दुनिया की नजर में आ गया। इसके बाद जब से कोरोना ने दुनिया में अपने पाँव पसारे हैं तब फिर से ताइवान को मौका मिला कि वह चीन के झूठ को दुनिया के सामने रखे और पर्दाफाश करे। Tsai के नेतृत्व में ताइवान ने ठीक यही किया और इसमे उसे अमेरिका का भी सहयोग मिला।

कोरोना पर चीन और WHO को ताइवान ने एक्सपोज किया

ताइवान ने न सिर्फ चीन के कोरोना पर फैलाये जा रहे प्रोपोगेंडे को ध्वस्त किया बल्कि चीन और WHO की मिलीभगत को भी दुनिया के सामने एक्सपोज कर दिया. यही नहीं ताइवान ने चीन के मास्क डिप्लोमेसी को भी टक्कर देते हुए कई देशों को 10 मिलियन मास्क दान किया। एक तरफ जहां चीन के सभी मेडिकल समान खराब निकले तो वही ताइवान के सभी देशों को अच्छे मास्क देने से समर्थन भी बढ़ा।

ताइवान ने अपने प्रतिकूल वातावरण में चीन के दबाव को सहकर जिस प्रकार कोरोना से टक्कर ली है, उसकी जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है और इसमें सबसे बड़ा हाथ वहाँ की राष्ट्रपति Tsai का है। एक तरह से देखा जाए तो कोरोना ताइवान के लिए वरदान साबित हो रहा है, क्योंकि जिस तरह से इस देश को विश्व भर के देश से मान्यता मिल रही है वह कभी नहीं हुआ था.

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