ताइवान बनाने जा रहा है एक ‘नया संविधान’ जिसमें चीन का नामो-निशान नहीं होगा

इससे बढ़िया मौका क्या होगा, जब पूरी दुनिया चीन के खिलाफ है!

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कोरोना काल में ताइवान सबसे मजबूत देश बनकर दुनिया के सामने उभरा है. बिना किसी वैश्विक सहायता के ही इस देश ने कोरोना को लगभग खत्म कर दिया है। ताइवान शुरु से ही कोरोना को लेकर चीन की गलतियों को दुनिया के सामने उजागर करता आया है. पूरी दुनिया भी चीन से बेहद नाराज चल रही है. मौका देखते हुए ताइवान में भी चीन विरोध लहर उठती जा रही है.

अब ताइवान में आजादी समर्थक समूह के लोगों ने मांग की है कि नए संविधान के लिए देश में अब जनमत संग्रह हो, जिसमें चीन का कहीं कोई नामों निशान न हो. उनका कहना है कि देश में लोकतंत्र बहाल हो गया है लेकिन संवैधानिक रूप से आज भी हम चीन के कब्जे में हैं. ऐसे में यह वक्त सबसे बेहतर है जब चीन को पटखनी दी जाए।

बता दें कि ताइवान में इन दिनों जनता से लेकर सरकार तक जबरदस्त चीन विरोधी लहर है। ताइवान आज दुनिया के सम्पन्न देशों में शामिल है, लोगों की आय भी वहां पर चीन के मुकाबले ज्यादा है और सबसे बड़ी बात लोकतंत्र है। कम्युनिस्ट पार्टी को डर है कि अगर ताइवान पूरी तरह आजाद देश बन गया तो उसके यहां भी लोकतंत्र की मांग तेज हो सकती है, इसलिए वो हर हाल में ताइवान को चीन में मिलाने पर जुटा हुआ है.

इससे पहले चीन ने ताइवान को हॉन्ग कॉन्ग जैसे गुलाम राष्ट्र बनने का ऑफर दिया था लेकिन ताइवान ने यह कहते हुए ठुकरा दिया था कि एक देश और दो व्यवस्था का सिद्धान्त हम कत्तई नहीं स्वीकार करें। इसी वजह से चीन के खिलाफ ताइवान के लोग अपनी आवाज बुलंद किए हुए हैं.

दुनिया को चीन हमेशा यह बताता है कि ताइवान कोई देश नहीं है बल्कि वह हमारा ही हिस्सा है जिसका नाम रिपब्लिक ऑफ चाइना है। बीजिंग का दावा है कि लोकतांत्रिक रूप से शासित ताइवान उसके क्षेत्र का हिस्सा है और उसने पहले ही जनमत प्रस्ताव पर अपनी आपत्ति जता दी है, चेतावनी दी है कि ऐसी “अलगाववादी गतिविधियां” हुई तो इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. हालांकि ताइवान ने जब अपने देश में लोकतंत्र बहाल करवा लिया तो जनमत संग्रह किस खेत की मूली है आप समझ सकते हैं.

कू क्वांग-मिंग के ताइवान न्यू संविधान फाउंडेशन (टीएनसी) के अनुसार, जनमत संग्रह पहले से ही दो प्रस्तावों के लिए 3,000 से अधिक हस्ताक्षर एकत्र कर चुका है, जबकि कानूनन उसे मात्र 1931 हस्ताक्षर ही चाहिए थे.

आजादी समर्थक ग्रुप का कहना है कि प्रस्तावित जनमत संग्रह मतदाताओं से दो सवाल पूछेगा:

“क्या आप ताइवान के लिए एक संवैधानिक सुधार प्रक्रिया शुरू करने में राष्ट्रपति का समर्थन करते हैं?” और “क्या आप ताइवान के वर्तमान वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने वाले नए संविधान की स्थापना के लिए राष्ट्रपति का समर्थन करते हैं?”

दुनिया चीन के खिलाफ है इसी समय जोर लगाओ

ताइवान नए संविधान फाउंडेशन के कार्यकारी निदेशक लिन यी-चेंग ने VOA को बताया कि 30 साल के लोकतंत्रीकरण के बाद, ताइवान की राष्ट्रीय पहचान हासिल करने और विश्व मंच पर अपनी स्थिति बदलने का इससे बड़ा मौका नहीं आने वाला. ये बेहतर समय है जब ताइवान एक मजबूत राष्ट्र के रूप में दुनिया के सामने खुद को पेश करेगा.

उन्होंने कहा कि- “तीस साल पहले, केवल 13% लोग खुद को ताइवानी और गैर-चीनी मानते थे। 2020 में, यह संख्या 83% तक चढ़ गई।

उन्होंने आगे कहा कि संविधान के अनुसार, 1946 से ही चीन और ताइवान को चीन गणराज्य के अधिकार क्षेत्र में रखता है, जबकि वास्तव में दोनों पक्षों ने 60 वर्षों से अधिक समय तक अलग-अलग शासन किया है।

ताइवान में जनमत संग्रह कराने की प्रक्रिया में तीन चरणों में शामिल हैं: प्रस्ताव, समर्थन, और मतदान।

अब जिस तरह से दुनिया भर में ताइवान ने अपने मास्क डिप्लोमेसी से प्रभावित किया है और इसके साथ ही चीन और WHO को वैश्विक मंच पर नंगा किया है. उससे यही कहा जा सकता है कि चीन के खिलाफ मोर्चा खोलने का इससे बेहतर समय ताइवान को कभी नहीं मिलने वाला. दुनिया के बड़े-बड़े देश ताइवान के साथ खड़े हैं और जिस तरह का उत्साह ताइवान के भीतर देखने को मिल रहा है उससे साफ लगता है कि वह एक नया ताइवान बनकर दुनिया के सामने आएगा जिसमें चीन की कोई सहभागिता नहीं होगी.

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