ताइवानी निवेशकों पर FPI के नए नियम लागू नहीं होंगे, ‘वन चाइना पॉलिसी’ को भारत ने कूड़े में फेंका

चीन मुक्त ताइवान को समर्थन देने की शुरुआत हो चुकी है

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कोरोना के समय में चीन की गुंडागर्दी भी सातवें आसमान पर पहुंच चुकी है। एक तरफ वह दक्षिणी चीन सागर में दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को धमका रहा है, तो वहीं भारत की उत्तरी और पूर्वी सीमाओं पर भी भारतीय सैनिकों के साथ तनाव बढ़ा रहा है। इतना ही नहीं, China के खिलाफ और ताइवान के समर्थन में लेख लिखने वाली भारतीय मीडिया को भी China खुलेआम धमकी दे रहा है।

अभी तक चीन ताइवान के समर्थन में खबर दिखाने के लिए भारत के न्यूज़ चैनल “WION”, अखबार “द हिन्दू” और “टाइम्स ऑफ इंडिया” को कड़ी फटकार लगा चुका है और इन्हें “वन चाइना पॉलिसी” का पालन करने की नसीहत दे चुका है। हालांकि, अब ऐसे समय में भारत सरकार ने China के पेट में दर्द करने वाला एक बड़ा कदम उठाया है।

दरअसल, भारत सरकार चीनी कंपनीयों द्वारा FPI निवेश को लेकर बनाए जा रहे नए कानूनों के दायरे से ताइवान को बाहर रखने जा रही है। यानि भारत मेनलैंड चाइना के लोगों को भारत में निवेश करने से रोकेगी, लेकिन ताइवान के लोगों पर निवेश से संबन्धित कड़े कानून लागू नहीं होंगे। यह पहली बार होगा जब केंद्र सरकार वन चाइना पॉलिसी को कूड़े के ढेर में फेंककर ताइवान के समर्थन में यह बड़ा सांकेतिक कदम उठाएगी।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वर्ष 1949 में भारत सरकार ने China की “वन चाइना पॉलिसी” को स्वीकृति दी थी। इसके बाद भारत ने तिब्बत और ताइवान को चीन का हिस्सा मान लिया था, और तब से भारत चीन द्वारा सभी द्विपक्षीय संधियों की धज्जियां उड़ाए जाने के बावजूद इस नीति का ईमानदारी से पालन करता आ रहा है।

इसके अलावा भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नहरु ने ही वर्ष 1954 में चीन के साथ पंचशील समझौते पर भी हस्ताक्षर किए थे। इस समझौते की प्रस्तावना में पाँच सिद्धांत थे। पहला सिद्धान्त था एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना, दूसरा सिद्धान्त था परस्पर अनाक्रमण, तीसरा था एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना, चौथा था समान और परस्पर लाभकारी संबंध, और पांचवा सिद्धान्त था शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व!

इस समझौते के महज़ 8 साल बाद ही चीन ने वर्ष 1962 में भारत पर हमला बोल दिया था, हालांकि भारत की सरकारों में तब इतनी हिम्मत नहीं थी कि पंचशील समझौते को कूड़े के ढेर में फेंक सके।

भारत में समय-समय पर ना सिर्फ पंचशील समझौते को रद्द करने की मांग उठती रहती है, बल्कि देश में वन चाइना पॉलिसी को नकारने की बातें भी की जाती रही हैं। अब कोरोना के समय में जब China की गुंडागर्दी असहनीय स्तर तक पहुंच चुकी है, तो भारत ने चीन को वन चाइना पॉलिसी को लेकर कड़ा संकेत दे दिया है। कोरोना के समय जहां सब देश चीन पर सीधी उंगली उठा रहे हैं, तो वहीं ऐसे समय में भारत ने चीन के साथ शांतिप्रिय ढंग से ही बर्ताव किया है।

इसके बावजूद चीन द्वारा सीमाओं पर भारत को उकसाना और कोरोना के बीच में ही कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ देना भारत को रास नहीं आ रहा है। यही कारण है कि अब की बार भारत सरकार ताइवान और चीन को दो अलग-अलग मान्यता प्रदान करने वाला फैसला लेने की तैयारी में है। इसका अर्थ यह है कि भारत सरकार जल्द ही ताइवान को लेकर कोई बड़ा कदम उठा सकती है।

ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देश तो पहले ही ताइवान के मुद्दे पर भारत से समर्थन मांग रहे हैं। भविष्य में भारत सरकार के कदम चीन के रुख द्वारा निर्धारित होंगे। अगर चीन ऐसे ही भारत को उकसाने से बाज़ नहीं आता है, तो जल्द ही भारत सरकार की ओर से ताइवान को लेकर ऐतिहासिक फैसला देखने को मिल सकता है।

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