Taiwan’s Tsai Vs Hong Kong’s Carrie: 2 नेताओं की कहानी, 1 दबाव में झुक गयी और दूसरी नेता ने दबाव डालने वाले की नाक में दम कर दिया है

ताइवान हाँग-काँग

PC: Macau Daily Times

हाँग-काँग और ताइवान, देखा जाये तो दोनों क्षेत्रों में बहुत समानताएँ हैं। चीन दोनों को ही अपना हिस्सा मानता है, लेकिन दोनों ही क्षेत्रों के लोग चीन को अपना देश नहीं मानते। चीन दोनों क्षेत्रों पर जल्द से जल्द अपना कब्जा जमाना चाहता है। हालांकि, दोनों क्षेत्रों के नेतृत्व में एक बहुत बड़ा फर्क है। एक तरफ जहां ताइवान की नेता साइ इंग वेन को एक साहसिक और ताकतवर नेता माना जाता है, तो वहीं हाँग-काँग की नेता कैरी लैम को दब्बू स्वभाव का माना जाता है। इसका ही एक उदाहरण तब देखने को मिला जब ताइवान की नेता साइ इंग ने दूसरी बार राष्ट्रपति की शपथ लेते वक्त यह साफ कर दिया कि उन्हें चीन के वन कंट्री, टू सिस्टम का प्रस्ताव स्वीकार नहीं है। हालांकि, जब चीन ने हाँग-काँग के बेसिक लॉ में बदलाव करने संबंधी प्रस्ताव को सबके सामने रखा, तो हाँग-काँग की नेता कैरी लैम ने चीन के सामने झुककर चीन के साथ पूरा सहयोग करने की बात कह डाली।

साइ के नेतृत्व में ताइवान को दुनियाभर से जमकर कूटनीतिक समर्थन मिल रहा है। ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और यहाँ तक कि सांकेतिक रूप से अब भारत ने ताइवान की स्वतन्त्रता का समर्थन कर दिया है। चीन का खुलकर विरोध करने में साइ ने कोई कसर भी नहीं छोड़ी है। देखा जाए तो ताइवान के अचानक से वैश्विक स्तर पर दिखाई देने का एक मात्र कारण राष्ट्रपति साइ इंग वेन हैं। उनके कार्यकाल से पहले ताइवान ने पूरी तरह से चीन के सामने समर्पण कर दिया था और अपने आप को चीन का ही एक राज्य समझने लगा था। हालांकि, आज ताइवान को वैश्विक स्तर अपने समर्थन का पूरा यकीन है। इसके लिए ताइवान ने साइ के नेतृत्व में बहुत मेहनत भी की है।

ताइवान ने अपनी मास्क डिप्लोमेसी के दम पर दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। ताइवान ने अमेरिका, कनाडा, भारत समेत दुनिया के कई देशों में अपनी राहत सामाग्री पहुंचाई, और बदले में इन देशों ने भी ताइवान का धन्यवाद किया, इस प्रकार ताइवान की अंतर्राष्ट्रीय स्वीकृति बढ़ती गयी। साइ के कुशल नेतृत्व के कारण ही कोरोना काल का फायदा उठाकर ताइवान अपनी वैश्विक पहचान को बढ़ाने में इस हद तक सफल रहा।

हाल ही में जब उन्होंने दूसरी बार राष्ट्रपति की शपथ ली थी, तो उन्होंने चीन को धमकी देते हुए कहा था “दोनों देशों (चीन और ताइवान) के संबंध ऐतिहासिक मोड़ पर पहुंच गए हैं। दोनों पक्षों का यह कर्तव्य है कि वह लंबे समय तक के लिए सह अस्तित्व का रास्ता खोजें और बढ़ती दुश्मनी और मतभेदों को जोरदार तरीके से रोके। मैं यह भी आशा करती हूं कि खाड़ी के उस पार के देश (चीन) का नेतृत्व भी इस बात की जिम्मेदारी लेगा और दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए काम करेगा।’’ ताइवान की नेता के इसी रुख के कारण आज ताइवान अपनी स्वतंत्रता की राह पर बढ़ता दिखाई दे रहा है।

अब जब चीन ने हाँग-काँग के बेसिक लॉ में बदलाव करने की बात कही है, तो ताइवान की नेता साइ ने भी चीन को सीधे शब्दों में धमकी दे दी है कि अगर चीन ऐसा कदम उठाता है, तो वह हाँग-काँग के special status से जुड़े क़ानूनों को रद्द कर Hong-Kong के क्रांतिकारियों को शरण देने के लिए नया कानून पारित करेंगी। यह ताइवान का सबसे नया और सबसे बड़ा चीन विरोधी कदम माना जा रहा है, जो दिखाता है कि ताइवान की नेता किसी भी मुद्दे पर चीन से भिड़-जाने को तैयार है।

दूसरी ओर हाँग-काँग की नेता कैरी लैम में चीन का विरोध करने की हिम्मत ही नहीं दिखाई देती। उन्हें शी जिनपिंग के इशारे पर काम करने वाला नेता माना जाता है। हाँग-काँग की आम जनता द्वारा चीन का विरोध किए जाने के बावजूद वे लोकतन्त्र-समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों से नदारद दिखाई दीं। पिछले वर्ष जब जून महीने से हाँग-काँग में लोकतन्त्र समर्थकों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किए थे, तो उन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की सराहना करते हुए कहा था “शी चाहते हैं कि कैसे भी करके हाँग-काँग में वन कंट्री टू सिस्टम सफल बना रहे, हम चीन के साथ पूरी तरह सहयोग करने के लिए तैयार हैं”।

अब जब चीन ने Sino-British joint declaration की धज्जियां उड़ाते हुए हाँग-काँग के बेसिक लॉ के अंदर बदलाव करने की बात कही है, तो कैरी लैम भी चीन का सहयोग करने के लिए तैयार हो गयी हैं, जिसके बाद हाँग-काँग में दोबारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं। इस वक्त जहां कैरी लैम को हाँग-काँग के लोगों के साथ खड़ा होना चाहिए था, वे चीन की सरकार के साथ खड़ी नज़र आ रही हैं। अगर वे चाहें तो ताइवान की नेता साइ इंग वेन से कुशल नेतृत्व के गुण सीखकर चीन की गुंडागर्दी को करारा जवाब दे सकती हैं।

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