United Nations की विश्वसनीयता पूरी तरह खत्म हो चुकी है, अब सिर्फ भारत ही इसे बचा सकता है

UNSC में permanent seat का सही समय आ चुका है

जब पहला विश्व युद्ध समाप्त हुआ था तब जीतने वाले देशों के लीग ऑफ नेशन की नींव रखी गई थी, लेकिन वह इतना एकतरफा था कि फिर से विश्व युद्ध शुरू हो गया। इसके बाद जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ तब एक नए वैश्विक संगठन संयुक्त राष्ट्र का गठन हुआ। यह संगठन आज भी जारी है तो ऐसे में कहा जा सकता कि UN थोड़ा सफल हुआ, लेकिन यह भी निष्पक्ष नहीं  है। अब जिस तरह से चीन ने UN और उससे जुड़े संगठनों का फायदा उठाते हुए कोरोना फैलाया है उससे अब एक बार फिर से UN की विश्वसनीयता अपने निचले स्तर पर है। विश्व में UN और चीन के प्रति बढ़ते विरोध के बाद अगर संयुक्त राष्ट्र को प्रासंगिक रहना है तो उसे संस्थागत रिफॉर्म करने ही होंगे।

UNSC में स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाए जाने से लेकर WHO में परिवर्तन और तमाम तरह के बदलाव की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है। दरअसल, 17 जून 2020 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के 74वें सत्र की शुरुआत होने वाली है। साथ ही इस सत्र में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद यानि UNSC के अस्थाई सदस्यों के लिए चुनाव कराया जाना है। ऐसे में भारत का एशिया पेसिफिक ग्रुप की ओर से अस्थाई सदस्य के तौर पर निर्विरोध चुना जाना तय है।

यह भारत के लिए सुनहरा मौका होगा कि वह संयुक्त राष्ट्र और UNSC में 30 वर्षों से अटके सुधार के मामलों को UNGA में उठाए जिससे स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाई जा सके। सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि जर्मनी, जापान और ब्राज़ील जैसे देश भी स्थायी सदस्यता के लिए तैयार हैं और वे सभी UNSC के ढांचे में बदलाव चाहते हैं।

जैसे द्वितीय विश्व युद्ध के बाद लीग ऑफ नेशन को संयुक्त राष्ट्र में बदल दिया गया था वैसे कोरोना ही एक ऐसी घटना है जिसके बाद सभी देशों को मिल कर संयुक्त राष्ट्र में संस्थागत सुधार करना चाहिए।

वर्ष 1945 में इस संगठन की स्थापना महायुद्ध हालात पैदा होने से बचाने के लिए किया गया था। लेकिन आज कोरोना ने युद्ध से भी विकराल रूप धारण किया हुआ है। इस महामारी से 3 लाख 62 हजार लोग मारे जा चुके हैं। इसमें चीन और WHO की मिलीभगत के बारे में आज सभी देशों को पता है। चीन सिर्फ WHO से ही नहीं बल्कि अन्य वैश्विक संगठनों जैसे UNHRC से भी मिलीभगत की खबर सामने आई है।

कोरोना ने चीन और UN की कई संस्थाओं की साँठ-गांठ की पोल खो दी है। जहां जापान के उप प्रधानमंत्री तारो आसो ने WHO को चीनी स्वास्थ्य संगठन कहने की बात करी, तो वहीं ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने वुहान वायरस को फैलाने में चीन की भूमिका पर एक स्वतंत्र जांच की मांग की।

ऐसे में ये कहना ग़लत नहीं होगा कि UN और उससे संबंधित संगठन, जैसे WHO में या तो बदलाव किया जाए या इसका विघटन कर दिया जाए।

अगर अभी भी संयुक्त राष्ट्र में रिफॉर्म नहीं होगा तो फिर इस संगठन का कोई अर्थ नहीं बचेगा। अगर अपनी प्रासंगिकता को बचानी है तो UN को रिफॉर्म करने ही होंगे और सभी क्षेत्रों को बराबर मौका देते हुये UNSC में स्थायी सदस्यों की सख्या भी बढ़नी होगी।

यहाँ यह जानना आवश्यक है कि भारत तथा अन्य देशों  की सदस्यता के लिये चार्टर में संशोधन की आवश्यकता होगी। इसीलिए यह आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र एक नया चार्टर ही बना ले  जिसे सभी देश अपना समर्थन दें।

आज के दौर में कुछ एक देश छोड़ कर कोई भी ऐसा देश नहीं होगा जो भारत, जर्मनी ब्राज़ील और जापान की स्थायी सदस्यता का विरोध करेगा। पिछले वर्ष ही इन चारो देशों ने एक संयुक्‍त वक्‍तव्‍य में चारों देशों ने विस्‍तारित सुरक्षा परिषद में एक-दूसरे की उम्‍मीदवारी को समर्थन देने की प्रतिबद्धता दोहराई थी। बयान में कहा गया है कि अंतरराष्‍ट्रीय शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए चारों देश बड़ी जिम्‍मेदारियां लेने के लिए तैयार और सक्षम हैं।

कोरोना ने जिस तरह से चीन की पोल खोली है उससे आज कोई भी देश उस पर भरोसा नहीं करना चाहता। इसलिए यह आवश्यक है कि चीन के विरोध के बावजूद सुरक्षा परिषद का विस्तार हो।

बता दें कि अभी UNSC में 5 स्थायी और 5 अस्थायी सदस्य होते हैं। वैश्वीकरण के पश्चात भू-राजनीतिक संरचना में काफी परिवर्तन हुआ है। इसी कारण से विश्व में कई देशों का उदय हुआ जिन्हें सुरक्षा परिषद में स्थान देने के लिए UN में सुधार की मांग उठती रही है।

अक्सर यह देखा जाता है स्थायी सदस्य अपने वीटो पावर का दुरुपयोग करते हैं। उदाहरण के लिए चीन ने भारत के खिलाफ कई बार वीटो का इस्तेमाल किया है। वर्ष 1990 के बाद से, अमेरिका ने इजरायल-फिलिस्तीनी संबंधों को लेकर 16 बार परिषद प्रस्तावों पर वीटो लगाया तो वहीं, रूस ने ऐसा 17 बार किया है। इन सभी कारकों के कारण, संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान ने कहा कि सुरक्षा परिषद को या तो सुधार करना चाहिए नहीं तो यह संस्था अप्रासंगिक हो जाएगी।

इसीलिए कोरोना ही वो समय है जब संयुक्त राष्ट्र अपने अंदर भारी सुधारों की प्रक्रिया जल्द से जल्द करे नहीं तो इस संगठन की रही सही प्रासंगिकता भी मिट्टी में मिल जाएगी।

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